जूही चतुर्वेदी एक ऐसी स्क्रीनराइटर, जो किरदार को नहीं, बल्कि कहानी को फ़िल्म का हीरो बनाने की ताक़त रखती हैं. 2012 में वो एक ऐसी कहानी विक्की डोनर के रूप में लेकर आई, जिसपर कोई बात भी नहीं करता था. इस फ़िल्म के ज़रिए उन्होंने आयुष्मान खुराना को भी फ़िल्मों में डेब्यू कराया. ये फ़िल्म जूही और आयुष्मान दोनों की डेब्यू फ़िल्म थी. इस फ़िल्म ने जूही को एक लेखिका के तौर पर पहचान दिला दी. इसके बाद जूही ने तीन और फ़िल्में लिखीं और तीन में दो फ़िल्मों ने दर्शकों और क्रिटिक्स के बीच ख़ासी जगह बनाई.
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12 जून को Amazon Prime Video पर जूही की गुलाबो-सिताबो रिलीज़ हुई है, जिसे लोग काफ़ी पसंद कर रहे हैं. जूही चतुर्वेदी ने अभी तक सिर्फ़ चार फ़िल्में की हैं, जो भले ही आज के हिंदी सिनेमा के अनुसार न हों, लेकिन जूही की फ़िल्मों ने बहुत वाहवाही लूटी है. जूही ने अपनी इन चार फ़िल्मों से सबकुछ हासिल किया है, जिसकी एक लेखक सिर्फ़ कल्पना करता है.
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जूही की ‘विक्की डोनर’ को भले ही लोग एक स्पर्म डोनर की कहानी के तौर पर जानें, लेकिन इस फ़िल्म में तलाक़ और पुनर्विवाह, वर्किंग वुमन और इसके अलावा पंजाबी और बंगाली परिवार के लड़के-लड़की के बीच की एक प्यारी सी लव स्टोरी दिखाई गई थी.
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तो वहीं पीकू में एक पिता और बेटी के रिश्ते को बहुत ही शानदार तरीक़े से लिखा गया था. इसमें भी एक महिला को ऑफ़िस में काम करने के साथ-साथ घर के कामों में भी परिपक्व दिखाया गया. साथ ही वो इतनी स्ट्रॉन्ग है कि अपने पिता की मृत्यू के बाद अपनी ज़िंदगी को जीना नहीं भूलती है.
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जूही चतुर्वेदी की कहानियों में कहीं न कहीं आप अपने आपको आसानी से शामिल कर पाएंगे. उसके किसी हिस्से में आपको ऐसा ज़रूर महसूस होगा कि अरे ये तो मेरे साथ भी होता है. अब गुलाबो-सिताबो को ही ले लीजिए. मकान मालिक और किराएदार पर बनी ये फ़िल्म हर उस इंसान की कहानी है, जो किराए के मकान में रहता है.
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‘विक्की डोनर’ अगर दिल्ली की तेज़ भागती ज़िंदगी को दिखाती है, तो ‘पीकू’ बंगाली कल्चर को छूती है और ‘गुलाबो सिताबो’ का लखनवी अंदाज़ तो बहुत उम्दा है, वहीं ‘अक्टूबर’ एक प्यारी सी लव स्टोरी है. अगर इन फ़िल्मों की कहानी दमदार है तो उस कहानी को शानदार तरीक़े से कहने का श्रेय शुजीत सरकार को जाता है.
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जूही ने शूजीत सरकार के साथ सबसे पहले एक विज्ञापन में काम किया था. इसके बाद विक्की डोनर पर उनके साथ काम करने से पहले, जूही ने उनकी Shoebite फ़िल्मों के डायलॉग लिखे, लेकिन ये फ़िल्म रिलीज़ नहीं हुई. इस जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को चार शानदार, अद्भुत, दिल को छू लेने वाली कहानियां दी हैं.
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जूही अपनी कहानियों के ज़रिए एक स्ट्रॉन्ग, आज़ाद और कॉन्फ़ीडेंट महिला का किरदार लिखती हैं. आशिमा, डॉली, पीकू, विद्या, गुड्डो, और फ़त्तो बेगम इन सभी किरदारों ने कभी न मिटने वाली छाप छोड़ी है.
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जूही की लिखी फ़िल्में हमें बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी और बसु भट्टाचार्य की तिकड़ी की याद दिला देती हैं. उनकी फ़िल्मों की कहानियां भी ऐसी ही होती थीं.
फ़िलहाल जूही चतुर्वेदी लियो बर्नेट मुंबई में कार्यकारी क्रिएटिव डायरेक्टर हैं.
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