KGF-2 Machine Gun: भारत में इन दिनों मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक बस ‘KGF-2’ फ़िल्म की ही चर्चाएं हैं. कन्नड़ सुपरस्टार यश स्टारर ये फ़िल्म सिनेमाघरों में सफ़लता के झंडे गाड़ रही है. इस फ़िल्म ने कमाई के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं. KGF-2 (हिंदी) ने बॉक्स ऑफ़िस पर सबसे अधिक कमाई करने वाली ‘बाहुबली’ को भी पीछे छोड़ दिया है. सुपरस्टार यश की इस फ़िल्म ने केवल 1 हफ़्ते में ही 255 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया है. ये फ़िल्म अब तक वर्ल्डवाइड 600 करोड़ रुपये से भी अधिक की कमाई कर चुकी है.

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दर्शकों को ‘KGF-2’ में रॉकी भाई का एक्शन और डायलॉग ख़ूब पसंद आ रहे हैं. फ़िल्म में रॉकी भाई (यश) को अधीरा (संजय दत्त) से कड़ी टक्कर मिल रही है. लेकिन इन दोनों योद्धाओं के बीच जिस चीज़ ने सबसे अधिक सुर्ख़ियां बटोरने का काम किया है वो है रॉकी भाई की ‘डोडम्मा’ मशीन गन (KGF-2 Machine Gun). कन्नड़ भाषा में रॉकी ‘डोडम्मा’ का मतलब होता है ‘बड़ी मां’. फ़िल्म में रॉकी भाई इसे ‘डोडम्मा’ बुलाते हैं क्योंकि यही उनकी रक्षा करती है. रॉकी इसी गन से लगातार 10 मिनट तक गोलियां बरसाकर अपने दुश्मनों का सर्वनाश कर देता है.

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चलिए जानते हैं इस विनाशकारी (KGF-2 Machine Gun) की असली ताकत क्या है?

अगर आपने अब तक ‘KGF-2’ नहीं देखी हो तो बता दें कि इसमें 80 के दशक की कहानी दिखाई गई है. फ़िल्म में दिखाई गई मशीन गन उस दौर में कई सेनाएं और विद्रोही संगठनों के पास हुआ करती थी. इस मशीन गन का असल नाम ब्राउनिंग M1919 (Browning M1919) है. इसे अमेरिकन इंजीनियर जॉन ब्राउनिंग ने सन 1919 में बनाया था. ये पॉइंट 30 कैलिबर की एक मीडियम मशीन गन है. इसका इस्तेमाल ‘द्वितीय विश्व युद्ध’, ‘भारत-चीन युद्ध’, ‘कोरियन युद्ध’ और ‘वियतनाम युद्ध’ समेत कई अन्य योद्धों में भी हो चुका है.

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26 सालों में बने इसके कुल 8 वैरिएंट्स

ब्राउनिंग M1919 (Browning M1919) मशीन गन का उत्पादन 1919 से 1945 तक किया गया था. इस दौरान अमेरिका ने दुनियाभर में कुल 4.38 लाख से अधिक Browning M1919 गन बेचीं थीं. इन 26 सालों में इसके कुल 8 वैरिएंट्स बने. इसका वजन 14 किलोग्राम था. इसके बैरल की लंबाई 24 इंच थी. इस विनाशकारी मशीन गन को स्टैंड के सहारे या ज़मीन पर ट्राइपॉड पर रखकर भी चलाया जा सकता है. इसके अलावा इसे टैंक, हेलिकॉप्टर पर भी तैनात किया जा सकता है. आज के दौर में आप इसे ‘एंटी-एयरक्राफ्ट गन’ के रूप में फ़ाइटर जेट मार गिराने में इस्तेमाल कर सकते हैं.

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दागी जा सकती थीं 10 प्रकार की गोलियां

ब्राउनिंग M1919 (Browning M1919) मशीन गन की सबसे ख़ास बात ये थी कि इससे 10 प्रकार की गोलियां दागी जा सकती थीं. इस मशीन गन के शुरुआती वैरिएंट्स 1 मिनट में 400 से 600 गोलियां दागते थे. इस मशीन गन के अंतिम वैरिएंट AN/M2 की फ़ायरिंग कैपेसिटी 1200 से 1500 गोली प्रति मिनट थी. इसकी मजल वेलोसिटी यानी गोलियों के निकलने की गति 853 मीटर प्रति सेकेंड थी मतलब 1 किमी प्रति सेकेंड. इस गन की रेंज क़रीब डेढ़ किलोमीटर थी. इसके कार्टिरेज यानी मैगज़ीन में 250 गोलियों की बेल्ट लगाई जाती थी. इसीलिए इस मशीन गन का इस्तेमाल कई युद्धों में बेहद शानदार तरीके से किया गया. (KGF-2 Machine Gun)

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दुनिया की पहली सफल मशीन गन

ब्राउनिंग M1919 (Browning M1919) मशीन गन को गोलियां दागने की उसकी प्रणाली के कारण ‘क्लोज्ड बोल्ट शॉर्ट रिकॉयल ऑपरेशन’ नाम दिया गया था. इसी की वजह से ये गन बेहद गर्म हो जाया करती थी. ‘KGF-2’ फ़िल्म में आपने रॉकी भाई को इसकी बैरल से सिगार जलाते हुये भी देखा होगा. इसलिए लगातार इसके नये वैरिएंट बनाए गये थे. ये दुनिया की पहली ऐसी सफल मशीन गन थी जिसे जीप, ट्रक, बख्तरबंद वाहनों, टैंक्स, लैंडिंग क्राफ्ट्स, ज़मीन, चढ़ान या ढलान पर लगाकर फ़ायर की जा सकती थी. (KGF-2 Machine Gun)

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‘द्वितीय विश्व युद्ध’ में अमेरिका को दिलाई थी सफलता 

ब्राउनिंग M1919 (Browning M1919) मशीन गन के A4 वैरिएंट ने अमेरिका को ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ में सफलता भी दिलाई थी. ‘कोरियन युद्ध’ और ‘वियतनाम युद्ध’ में भी इस बंदूक ने झंडे गाड़े थे. इसके A6 वैरिएंट को बेहद हल्का बनाने का प्रयास किया गया था. इस दौरान इसके बैरल का वजन 3.8 किलोग्राम से घटाकर 1.8 किलोग्राम कर दिया गया था. अमेरिकी नौसेना ने A4 वैरिएंट को बदलकर उसे 7.62 मिलीमीटर की NATO चैंबरिंग करके उसे MK-21 MOD0 नाम दिया था. इसी बदली हुई ब्राउनिंग मशीन गन ने ‘वियतनाम युद्ध’ में अमेरिकी सेना की मदद की थी. ये मशीन गन उस समय दुनिया भर में इतनी मशहूर हुई कि कई देश इसके अपने वर्जन बनाने लगे. इस दौरान इंग्लैंड ने पॉइंट 303 कैलिबर की गन बनाई थी.

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भारत में कितनी थी इसकी क़ीमत?

भारत में शुरूआती दौर में इसकी क़ीमत 667 डॉलर्स यानी 50,854 रुपये के क़रीब थी. लेकिन बाद में उत्पादन बढ़ने से इसकी क़ीमत 142 डॉलर्स यानी 10,826 रुपये कर दी गई थी. बता दें कि इस मशीन गन को 80 के दशक में अमेरिका में आम नागरिक भी उपयोग करते थे. लेकिन 1986 में बंदूक क़ानून में बदलाव के बाद अमेरिका ने इसकी ख़रीद-फ़रोख़्त पर रोक लगा दी. (KGF-2 Machine Gun)

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 क्यों अब जान गये न रॉकी भाई की ‘डोडम्मा’ (KGF-2 Machine Gun) कितनी पावरफ़ुल है?