सन 1971 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में भारतीय सेना की विजय हुई थी. भारतीय सेना के इस पराक्रम से दुनिया को बांग्लादेश के रूप में एक नया राष्ट्र मिला था. भारतीय सेना की इस जीत पर साल 1997 में बॉलीवुड निर्देशक जेपी दत्ता ने ‘बॉर्डर’ फ़िल्म बनाई थी. ये फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर सुपरहिट साबित हुई थी. इस फ़िल्म में सुनील शेट्टी ने ‘भैरोसिंह’ का यादगार किरदार निभाया था. फ़िल्म में इस किरदार को शहीद दिखाया गया था, लेकिन असल ज़िंदगी में भैरोसिंह राठौर (Bhairon Singh Rathore) आज भी ज़िंदा है.

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Real Bhairon Singh Rathore

भारत-पाक युद्ध के रियल हीरो भैरोसिंह राठौर का जन्म जोधपुर ज़िले के शेरगढ़ स्थित सोलंकियातला गांव में हुआ था. भैरोसिंह सन 1963 में बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स (BSF) में भर्ती हुए थे. सन 1971 के ‘भारत-पाक युद्ध’ में भाग लेने के 16 साल बाद सन 1987 में वो भारतीय सेना से रिटायर हुए थे. आज 76 साल के हो चुके भैरोसिंह राठौर अपनी ही सरज़मीं पर गुमनामी की ज़िंदगी जीने को मज़बूर हैं. बावजूद इसके उनकी वीरता की ये कहानी देश की आने वाली पीढ़ियों को यूं ही पीढ़ी प्रेरित करती रहेगी. 

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भैरोसिंह राठौर सन 1971 के ‘भारत-पाक युद्ध’ के दौरान जैसलमेर की ‘लोंगेवाला पोस्ट’ पर BSF की ’14वीं बटालियन’ में तैनात थे. भारत-पाक सीमा पर स्थित ‘लोंगेवाला पोस्ट’ वही जगह है जहां पर भारतीय सेना के मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में 120 सैनिकों की टुकड़ी ने हज़ारों की संख्या वाली पाक सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. इस दौरान भारतीय सेना के इन 120 वीर जवानों ने अपनी सूझबूझ और बहादुरी से पाकिस्तानी सेना के सैकड़ों टैंक ध्वस्त कर दिए थे. 

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भैरोसिंह राठौर बताते हैं कि-

सन 1971 में ‘भारत-पाक’ के बीच युद्ध छिड़ चुका था. BSF की ’14वीं बटालियन’ की ‘डी कंपनी’ को लोंगेवाला में तैनात कर दिया गया था. इंडियन आर्मी की ’23 पंजाब’ की एक कंपनी ने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में ‘लोंगेवाला’ का ज़िम्मा संभाल लिया था. बॉर्डर पोस्ट यहां से क़रीब 16 किमी दूरी पर था. इसके बाद BSF की हमारी कंपनी को दूसरी पोस्ट पर भेज दिया गया. मुझे पंजाब बटालियन के गाइड के तौर पर ‘लोंगेवाला पोस्ट’ पर तैनाती के आदेश मिले. मैंने ही सेना को पैट्रोलिंग के दौरान इलाका दिखाया था. आधी रात को संदेश मिला कि पाकिस्तानी सैनिक पोस्ट की ओर बढ़ रहे हैं और उनके पास बड़ी संख्या में टैंक भी थे. भारतीय सेना ने हवाई हमले के लिए एयरफ़ोर्स से मदद मांगी, लेकिन रात होने के कारण मदद नहीं मिल सकी.  

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7 घंटे तक करते रहे फ़ायरिंग

रात के क़रीब 2 बजे पाकिस्तानी सेना ने टैंक से गोले बरसाने शुरू कर दिए. ऐसे में दोनों देशों की सेनाओं के बीच भयंकर लड़ाई छिड़ चुकी थी. इस बीच LMG से गोलियां दाग रहा हमारा एक सैनिक घायल हो गया. मैंने समय गवाएं बिना LMG संभाल ली और लगातार 7 घंटे तक फ़ायरिंग करता रहा. सुबह एयरफ़ोर्स के विमानों ने भयंकर बमबारी की जिसमें पाक को भारी नुकसान हुआ. अंततः पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा.

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शेरगढ़ के सूरमा लांस नायक भैरोसिंह राठौर ने सन 1971 के ‘भारत-पाक युद्ध’ में LMG से क़रीब 300 पाकिस्तानी दुश्मनों को ढेर कर दिया था. भैरोसिंह राठौर के पराक्रम के चलते राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह ख़ान ने उन्हें ‘सेना मेडल’ से सम्मानित किया था. हालांकि, अभी उन्हें BSF द्वारा सैन्य सम्मान के रूप में मिलने वाले लाभ और पेंशन अलाउंस भी सही से नहीं मिल पा रहे हैं. बावजूद इसके आज 76 साल की उम्र में भी भैरोसिंह राठौर की दिनचर्या एक जवान की तरह ही है.

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शौर्यवीर भैरोसिंह राठौर की वीरता व पराक्रम से प्रेरित होकर साल निर्देशक 1997 जेपी दत्ता ने ‘बॉर्डर’ फ़िल्म बनाई थी. इस फ़िल्म में सनी देओल ने 1971 युद्ध के हीरो मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी का किरदार निभाया था, जबकि सुनील शेट्टी इस युद्ध के रियल हीरो भैरोसिंह राठौर के किरदार में नज़र आये थे. फ़िल्म में भैरोसिंह राठौर (सुनील शेट्टी) की डायलॉगबाज़ी ने देश के युवाओं में जोश भरने का काम किया था. लेकिन फ़िल्म में भैरोसिंह को शहीद दिखाना थोड़ा अचंभित करता है. असल ज़िंदगी में भैरोसिंह पूरी तरह से स्वस्थ हैं और आज भी उनमें वो ही देश भक्ति का भाव है.

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साल 2021 में जैसलमेर में आयोजित 154th बटालियन कैंपस समारोह के दौरान भैरोसिंह राठौर को भी आमंत्रित किया गया था. इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने उनसे मुलाक़ात की थी. बातचीत में भैरोसिंह राठौर ने कहा था कि, 1971 का युद्ध एक ऐतिहासिक जीत थी, लेकिन आज की पीढ़ी इस बात से वाकिफ़ ही नहीं है कि ‘लोंगेवाला’ है कहां? मैं चाहता हूं कि जिस तरह आज़ादी के क्रांतिकारियों की कहानियां बच्चे-बच्चे को मालूम है. ठीक उसी तरह आज़ाद भारत के सैनिकों की दास्तां भी हर किसी को मालूम होनी चाहिए.

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राजस्थानी कवि और लेखक मदन सिंह राठौड़ सोलंकियातला ने भारतीय सेना के शूरवीर भैरोसिंह राठौर के पराक्रम पर ‘शेरगढ़ के सूरमा’ नाम की एक किताब भी लिखी है.