दीना पाठक फ़िल्मी दुनिया का वो नाम जिन्होंने अपने रोल के दम पर एक ऐसी पहचान बनाई जिसके कई रूप हैं. उन्हें कभी भी कोई एक रोल में नहीं बांध पाया. उन्होंने अगर रुलाया तो अगले ही पल हंसाया और एक सीख भी दी. वो बाकी अभिनेत्रियों की तरह बेचारी और अबला नारी के एक किरदार से ही बंधकर नहीं रहीं और न ही उन्हें कोई बांध पाया. फ़िल्मी पर्दे का एक सशक्त चेहरा थीं दीना पाठक. उनकी आंखें, उनके हाव-भाव और एक अलग सी आवाज़ ने लोगों के दिलों को छू लिया. वो फ़िल्मी पर्दे की दूसरी मांओं से बिलकुल अलग थीं.
4 मार्च, 1922 को गुजरात के अमरेली में जन्मीं दीना पाठक को बचपन से ही एक्टिंग का शौक था. इसके चलते उन्होंने कम उम्र में ही इंडियन नेशनल थियेटर जॉइन किया और प्ले में एक्टिंग करना शुरू कर दिया.
इसके साथ ही बॉम्बे में पढ़ाई के दौरान दीना ने ख़ुद को छात्रों से जुड़े मुद्दों से भी जोड़ लिया. उस समय भवाई थियेटर में छात्रों को जागरुक करने के लिए नाटक किए जाते थे. ऐसे ही नाटक दीना के थियेटर में भी होने शुरू हो गए, जिसके चलते उन्हें गुजराती थियेटर में एक महत्वपूर्ण रोल निभाने का मौक़ा मिला.
दीना पाठक ने अपने करियर की शुरुआत थियेटर से की थी. उन्होंने थियेटर में शानदार काम किया और सफ़लता के आयाम छुए. थियटेर के समय में ‘मीना गुर्जरी’ दीना पाठक का सबसे यादगार रोल था.
इसके बाद 1948 में गुजराती फ़िल्म ‘करियावर’ से दीना पाठक ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की. मगर वो अपनी थियेटर की दुनिया में वापस चली गईं और उन्होंने शांति बर्धान का बैले ट्रूप और इंडियन पीपल का थियेटर एसोसिएशन जॉइन कर लिया. कुछ समय के बाद उन्होंने अहमदाबाद में नतमंडल नाम का अपना थियेटर ग्रुप खोला.
Veteran film actress Dina Pathak’s ability to portray a mixed range of emotions, be it anger, compassion or tragedy earned her an image of a ‘lovable mother and grandmother’.
— Shemaroo (@ShemarooEnt) March 4, 2019
Here’s a #rarepic of her with legendary actor #SanjeevKumar. pic.twitter.com/KxNIgLH4Ex
दीना ने फिर फ़िल्म ‘उसकी कहानी’ से फ़िल्मों में वापसी की, जिसके लिए उन्हें बंगाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन अवॉर्ड भी मिला था. इसके बाद उन्होंने ‘सत्यकाम’, ‘सात हिंदुस्तानी’ और ‘गुरु’ जैसी फ़िल्मों में काम किया. 1970 के दशक में दीना आर्ट और व्यवसायिक फ़िल्मों के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम बन चुकी थीं. कई फ़िल्मों में उनकी मां और दादी की भूमिकाओं ने उन्हें हिंदी फ़िल्मों की ग्रैंड-ओल्ड-मदर का ख़िताब दिलाया.
इन्होंने ‘कोशिश’ में जया भादुड़ी की मां का किरदार निभाया. इसमें ‘जया भादुड़ी’ ने एक दिव्यांग का रोल दा किअया था. इसके बाद गुलज़ार साहब की ‘मौसम’, ‘किनारा’ और ‘किताब’ में अपने अभिनय से सबको हिला दिया.
मौसम’ में ‘गंगू रानी’ के किरदार ने लोगों के दिलों को छुआ. गुलज़ार साहब की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक उनके प्रदर्शन ने इस फ़िल्म की सुंदरता को और अधिक बढ़ा दिया.
श्याम बेनेगल की ‘भूमिका’ (1977) में अपने दमदार अभिनय से दीना पाठक ने फ़िल्म इंडस्ट्री में सबसे बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक के रूप में ख़ुद को स्थापित किया. फ़िल्म चितचोर में एके हंगल की पत्नी और ज़रीना वहाब की मां का किरदार भी काफ़ी चर्चित रहा. जेन ऑस्टेन की Pride And Prejudice में Mrs. Bennet के किरदार में उनके हास्य रूप को भी देखा गया.
इसके अलावा ऋषिकेश मुखर्जी की ‘गोलमाल’ और ‘ख़ूबसूरत’ भी उनकी बेहतरीन फ़िल्मों में से ही हैं. इतना ही नहीं उन्होंने कई दशकों तक अपनी पहचान को कायम रखा. ‘देवदास’, ‘परदेस’, और ‘पिंजर’ जैसी शानदार फ़िल्मों में बेहतरीन अभिनय से लोगों को चौंका दिया.
दीना पाठक ने अपने करियर में कई यादगार रोल किए, जिनमें उमराव जान, ड्रीम गर्ल, सच्चा-झूठा, प्रेमरोग और गोलमाल जैसे रोल शामिल हैं. दीना की रील लाइफ़ जितनी सफ़लता की चांदनी से भरी थी. उनकी रियल लाइफ़ में भी प्यार ने पैर पसारा. दीना ने बलदेव पाठक नाम के एक शख़्स से प्यार कर उनसे शादी की. वो पेशे से टेलर थे. उस ज़माने में वो राजेश खन्ना के कपड़े बनाते थे. वो ख़ुद को इंडिया का पहला डिज़ाइनर मानते थे. हालांकि राजेश खन्ना के करियर में आने वाली गिरावट ने बलदेव के भी हुनर को गिराना शुरू कर दिया.
इसके बाद उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ी और 52 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. 120 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम करने वाली दीना पाठक का अभिनय करियर क़रीब 60 साल तक चला. फ़िल्मों के साथ वो गुजराती थियेटर में भी काफ़ी सक्रिय थीं. उन्हीं के प्रभाव के चलते दीना पाठक की दोनों बेटियां रत्ना पाठक और सुप्रिया पाठक आज इंडस्ट्री का जाना-माना नाम हैं.
अभिनय की ऊंचाइयों को छूने वाली दीना पाठक को आज तक किसी अवॉर्ड से नहीं नवाज़ा गया. उन्होंने भले ही अवॉर्ड नहीं जीते, लेकिन अपने अभिनय से लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी है.
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