साल 2021 में अजय देवगन, सोनाक्षी सिन्हा, संजय दत्त और नोरा फ़तेही स्टारर Bhuj: The Pride of India फ़िल्म रिलीज़ हुई थी. ये फिल्म 1971 के ‘भारत-पाकिस्तान युद्ध’ पर आधारित थी. फ़िल्म में इस युद्ध के हीरो रहे भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के साहस और जज़्बे की कहानी दिखाई गई थी. इस किरदार को अजय देवगन ने निभाया था. संजय दत्त ने भी फ़िल्म में भारतीय सेना के ‘स्काउट’ रणछोड़दास पागी नाम का एक असल किरदार निभाया था. आज हम आपको इसी रणछोड़दास पागी के बारे में बताने जा रहे हैं.
चलिए जानते हैं आख़िर ये शख़्स कौन था जिसे 1971 के ‘भारत-पाकिस्तान युद्ध’ के दौरान ‘भारतीय सेना’ का सबसे बड़ा हथियार माना गया था.
रणछोड़दास पागी (Ranchordas Pagi) का जन्म गुजरात के बनासकांठा ज़िले की सीमा से लगे पाकिस्तान के पथपुर गथरा (पिथापुर गांव) के एक ‘रबारी’ परिवार में हुआ था. सन 1947 में भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर उनका परिवार गुजरात के बनासकांठा में बस गया. रणछोड़दास पागी का जीवन तब बदल गया जब 58 वर्ष की आयु में उन्हें बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला द्वारा ‘पुलिस गाइड’ नियुक्त किया गया.
ये भी पढ़ें: JFR Jacob: इंडियन आर्मी का वो शूरवीर जिसने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के पराजय की पटकथा लिखी
बात साल 1965 की है. पाकिस्तानी सेना ने गुजरात में ‘कच्छ की सीमा’ पर स्थित विद्याकोट थाने पर कब्ज़ा कर लिया था. इस दौरान जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना के 100 सैनिक शहीद हो गए थे. इसके बाद भारतीय सेना ने 10 हज़ार सैनिकों की दूसरी टुकड़ी विद्याकोट के लिए रवाना कर दी. इस दौरान सैनिकों को 3 दिन में छारकोट तक पहुंचना ज़रूरी था. लेकिन वहां तक पहुंचना बेहद मुश्किल था. ऐसे में तब रणछोड़दास ने सेना का मार्गदर्शन किया था जिसके परिणाम स्वरूप सेना की दूसरी टुकड़ी निर्धारित समय पर मोर्चे पर पहुंच पाई थी.
दरअसल, रणछोड़दास इस क्षेत्र से पूरी तरह परिचित थे. इस दौरान उन्होंने इलाक़े में छुपे 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की स्थिति का पता लगाकर ये जानकारी भारतीय सेना तक पहुंचाई थी, जो भारतीय सेना के लिए बेहद अहम साबित हुई. रणछोड़ दास के द्वारा मिली जानकारी की मदद से सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों पर धावा बोल दिया था. इसके बाद भारतीय सेना ने रणछोड़दास रबारी सेना में स्काउट के रूप में शामिल कर लिया. जंग के दौरान गोला-बारूद खत्म होने पर रणछोड़ दास ने सेना को बारूद पहुंचाने का काम भी किया. भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ इस जंग में जीत हासिल की थी.
रणछोड़दास ने केवल 1965 के युद्ध में ही नहीं, बल्कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना को कई प्रमुख चौकियों पर कब्ज़ा करने में मदद की थी. पाकिस्तान के ‘पालीनगर’ शहर पर तिरंगा फहराने में भी ‘पागी’ की भूमिका अहम थी. इस दौरान सैम साहब ने स्वयं अपनी जेब से 300 रुपये का नकद पुरस्कार दिया था. कहा जाता है कि 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान रणछोड़दास के प्रयासों ने हज़ारों भारतीय सैनिकों को भी बचाया था. रणछोड़दास को सन 1965 और 1971 के युद्धों में उनकी भूमिका के लिए उन्हें संग्राम मेडल, पुलिस मेडल और समर सेवा स्टार सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था.
रणछोड़दास को क्यों कहा जाता था ‘पागी’
गुजरात में ‘मार्गदर्शक’ को ‘पागी’ कहा जाता है. इसका असल मतलब एक ऐसे आम इंसान से है जो दुर्गम क्षेत्रों में पुलिस और सेना के लिए पथ प्रदर्शक यानी रास्ता दिखाने का काम करता है. रणछोड़दास रबारी को ये नाम 1971 युद्ध के हीरो रहे फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने दिया था. सैम मानेकशॉ अपने आख़िरी वक्त में भी ‘पागी’ को ही याद करते रहे.
दरअसल, साल 2008 में फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को जब तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इस दौरान वो अपनी अस्वस्थता और अर्धचेतन अवस्था में वो अक्सर ‘पागी-पागी’ नाम पुकारते रहते थे. ऐसे में डॉक्टरों ने एक दिन उनसे पूछा, ‘सर, ये पागी कौन है?.
आगे की कहानी ख़ुद फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ द्वारा कही गई बातों पर आधारित है. सन 1971 में भारत ने युद्ध जीत लिया था. जनरल मानेकशॉ ढाका में थे. इस दौरान उन्होंने रात के खाने के लिए ‘पागी’ को भी आमंत्रित करने का आदेश दिया. उनके लिए एक हेलीकॉप्टर भेजा गया था. चॉपर पर चढ़ते समय ‘पागी’ का एक बैग ज़मीन पर पड़ा रह गया और उसे लेने के लिए हेलिकॉप्टर को वापस घुमा दिया गया था. अधिकारियों ने सुरक्षा नियमानुसार बैग को हेलीकॉप्टर में रखने से पहले खोल दिया. इसे देख सभी दंग रह गए क्योंकि उसमें दो रोटियां, प्याज और बेसन की एक डिश थी. इस भोजन का आधा हिस्सा सैम मानेकशॉ ने और दूसरा ‘पागी’ ने रात के भोजन में खाया था.
रणछोड़दास पागी बनासकांठा पुलिस में ‘पागी’ के रूप में सेवारत रहे. जुलाई 2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी. इसके बाद जनवरी 2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़भाई का निधन हो गया था. गुजरात के अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में स्थित बनासकांठा ज़िले के सुइगाम की एक सीमा चौकी का नाम ‘रणछोड़दास पोस्ट’ रखा गया. ये पहला मौका था जब सेना की चौकी का नाम किसी आम आदमी के नाम पर रखा गया. इस चुकी में उनकी एक मूर्ति भी लगाई गई है.
ये भी पढ़ें: कहानी भारतीय सेना के उस वीर जवान की, जिसका पार्थिव शरीर 38 साल बाद भी मिला सही सलामत