फ़ारुख शेख़ को हिंदी सिनेमा के बेहतरीन कलाकारों में गिना जाता है. उन्होंने शरतरंज के खिलाड़ी, उमराव जान, चश्मे बद्दूर, क्लब 60 जैसी कई बेहतरीन फ़िल्मों में सादगी भरा अभिनय कर लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई थी. इसके अलावा वो थिएटर में भी सक्रिय रहते थे. इसमें उनका साथ देती थीं, उनकी दोस्त शबाना आज़मी. शबाना और उनकी दोस्ती की इंडस्ट्री में मिसाल दी जाती है.
शबाना आज़मी ने एक इंटरव्यू में अपनी और फ़ारुख शेख़ की दोस्ती के बारे में बताया है. हेडलाइन टूडे को दिए इस इंटरव्यू में उन्होंने फ़ारुख की ज़िंदगी से जुड़ी कई बातों से पर्दा उठाया है. उन्हीं में से एक दिलचस्प क़िस्सा आज हम आपके लिए लेकर आए हैं.
शबाना आज़मी और फ़ारुख शेख़ की दोस्ती कॉलेज के दिनों में हुई थी. कॉलेज के दिनों में फ़ारुख थिएटर में काफ़ी एक्टिव थे. शबाना भी कॉलेज के दिनों में अभिनय की तरफ आकर्षित हो गईं थीं और वो उनके साथ थिएटर करने लगीं. दोनों की दोस्ती काफ़ी गहरी थी. दोनों की पसंद और नापसंद भी काफ़ी मिलती थी.
फ़िल्मों में आने के बाद भी उनकी इस दोस्ती में कोई फ़र्क नहीं आया. उन्होंने एक साथ लोरी, अंजुमन, तुम्हारी अमृता जैसी कई फ़िल्मों में काम किया है. पर्दे पर उनकी जोड़ी खूब जमती थी. मशहूर एक्टर फिरोज़ ख़ान ने तो एक बार मज़ाक-मज़ाक में ये तक कह दिया था कि आप दोनों की जोड़ी ख़ूब जमती है, इसलिए आपको शादी कर लेनी चाहिए.
ख़ैर, ये तो मज़ाक था, लेकिन क्या आप जानते हैं फ़ारुख शेख भी बहुत ही मज़ाकिया थे. एक दिन शबाना और वो थिएटर से वापस आ रहे थे. रास्ते में सड़क किनारे बैठे एक भिखारी को देखकर फ़ारुख ने उसे जेब से अठन्नी यानि 50 पैसे निकालकर दे दिए.
उस भिखारी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा-“ख़ुदा आप दोनों की जोड़ी सलामत रखे.” इस पर फ़ारुख ने उसे डाटते हुए कहा- “मेरे पैसे वापस कर दो अगर ऐसी ही बद-दुआ देनी है तो.”
ये देख कर शबाना भी कुछ समझ न पाईं, लेकिन जैसे ही फ़ारुख बाद में मुस्कुराने लगे तो वो समझ गई कि वो मज़ाक कर रहे हैं. एक और बात का ज़िक्र करते हुए शबाना ने ये भी बताया कि 45 साल की दोस्ती में वो हमेशा उनके साथ खड़े रहे. फिर चाहे हालात कितने ही मुश्किल या फिर कितने ही अच्छे क्यों न रहे हों.
दोनों के परिवारों के बीच भी अच्छे ताल्लुकात थे. फ़ारुख शबाना के पिता कैफ़ी आज़मी के फ़ैन थे. न सिर्फ़ एक लेखक के रूप में, बल्कि एक इंसान के तौर पर भी वो उनके प्रशंसक थे. शायद यही कारण है कि फ़ारुख के गुज़र जाने के बाद उन्हें कैफ़ी आज़मी की कब्र के पास ही दफ़नाया गया था.
फ़ारुख जैसे लोग इस दुनिया से भले ही चले जाते हों, लेकिन वो हमारे दिलों में सदा ज़िंदा रहते हैं.
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