आज के दौर में बॉलीवुड के ज़्यादातर स्टार हॉलीवुड फ़िल्म्स करके अपने करियर को नये पड़ाव पर ले जाना चाहते हैं. पर एक समय वो भी था जब स्टार्स को हॉलीवुड में जाने का मौक़ा मिलता था पर वो जाते नहीं थे. यहां बात दिलीप साहब की हो रही है. वो समय था जब दिलीप साहब बॉलीवुड में अपने पैर जमा चुके थे और कामयाबी उनके कदम चूम रही थी. 

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उनकी इसी स्टारडम को देखते हुए उन्हें ‘लॉरेन्स ऑफ़ अरेबिया’ में काम करने का ऑफ़र दिया गया था. पर दिलीप साहब को हॉलीवुड फ़िल्मों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इसलिये उन्होंने इस फ़िल्म में रोल करने से मना कर दिया. फ़िल्म का निर्देशन डेविड लीन कर रहे थे और वो चाहते थे कि प्रिंस शेरीफ़ अली का किरदार दिलीप साहब निभायें. डेविड लीन को हिंदी सिनेमा में काफ़ी रूचि थी, जिस वजह से वो दिलीप साहब की एक्टिंग को भी बख़ूबी जानते थे. 

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दिलीप साहब के इंकार करने के बाद ये रोल ओमार शरीफ़ की झोली में जा गिरा और किस्मत का खेल देखिये फ़िल्म ने 1962 में 7 ऑस्कर अवॉर्ड जीत लिये. ऐसा कहा जाता है कि दिलीप कुमार को हिंदी सिनेमा से इतना प्रेम था कि वो कभी हॉलीवुड फ़िल्मों की ओर आकर्षित नहीं हुए. उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी में भी इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं लिखा गया है. वहीं सायरा बानो का भी यही कहना है कि दिलीप साहब को हॉलीवुड फ़िल्मों में भी ज़्यादा रूचि नहीं थी. 

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वहीं हिंदी सिनेमा के प्रति लगाव रखते हुए डेविड लीन ने अपनी चौथी शादी हैदराबाद की लीला वेलिंगक से की थी. शादी के बाद बॉलीवुड की ओर उनका लगाव और बढ़ गया. 

इस बारे में हम क्या ही कहें… अंदाज़ अपना-अपना. 

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