इंडिया और पाकिस्तान के बीच जंग सालों से चली आ रही है. लेकिन ये जंग सिर्फ़ सरहद पर ही नहीं लड़ी जाती है. क्योंकि क्या है न, जवान सिर्फ़ सरहद पर ही नहीं शहीद होते. कुछ जवान ऐसे होते हैं जिनका आपको न ही कभी नाम पता लगेगा, न ही ये कि वो करते क्या हैं. वो हैं भारत के लिए काम करने वाले जासूस, जो दुश्मन की सरज़मीं में घुस कर, इकठ्ठा करते हैं ज़रूरी सबूत और दस्तावेज़. हिंदी फिल्मों में जासूसों को बहुत ही ख़तरनाक और बलशाली दिखाया जाता है, लेकिन सच्चाई में ये जासूस आपकी और हमारी तरह ही होते हैं. बस फ़र्क ये है कि इनका परिवार, बीवी-बच्चे, मां-पिता सालों उनका इंतज़ार करते हैं. ये कहानियां हैं उन 12 हिन्दुस्तानी जासूसों की जिनमें से कुछ को पकड़ लिया गया था, सालों तक उनका उत्पीड़न किया गया और फिर छोड़ दिया. और कुछ कभी वापस नहीं आये.

1. रामराज

इंटेलिजेंस एजेंसी के साथ काम करते हुए रामराज को 18 साल हो गए थे. उनका काम जासूसों को शहर के बारे में जानकारी देना था. फिर 18 सितम्बर, 2004 को उन्हें जासूसी करने पाकिस्तान भेजा गया लेकिन अगले ही दिन उन्हें पकड़ लिया गया. 2 साल पाकिस्तानी ख़ूफ़िया एजेंसी की प्रताड़नाएं झेलने के बाद उन्हें 6 साल के लिए पाकिस्तान की जेल में डाल दिया गया. 8 साल बाद जब वो वापस हिंदुस्तान आये तो उन लोगों से मिले जिन्होंने उसे जासूस बना कर पाकिस्तान भेजा था. लेकिन रामराज के अनुसार, उन लोगों ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया.

2. गुरबक्श राम

1988 में अपनी ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद गुरबक्श को पाकिस्तान भेजा गया. उसका काम पाकिस्तानी आर्मी के पास कौन-कौन से हथियार हैं, उसकी जानकारी इकट्ठा करना था. काम पूरा होने के 2 साल बाद वो वापस हिंदुस्तान आ रहे थे कि तभी पाकिस्तानी आर्मी ने उन्हें बॉर्डर पर पकड़ लिया. गुरबक्श को सियालकोट की गोरा जेल में पूछताछ के लिए ले जाया गया, जहां ढाई साल तक उनसे जानकारी निकालने की कोशिश की गयी. गुरबक्श ने जितने भी सबूत और ज़रूरी दस्तावेज़ इकट्ठा किये थे वो ज़ब्त कर लिए गए और उन्हें 14 साल के लिए जेल में डाल दिया गया. गुरबक्श 2006 में जेल से छूठ कर वापस इंडिया आये.

3. राम प्रकाश

एक साल तक फ़ोटोग्राफी में ट्रेनिंग लेने के बाद, 1994 में इंटेलिजेंस एजेंसी ने राम प्रकाश को जासूसी करने पाकिस्तान भेजा. 1997 में इंडिया वापस आते वक़्त, उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और सियालकोट की गोरा जेल में भेज दिया. एक साल वहां कैद में रहने के बाद 1998 में पाकिस्तानी अदालत ने उन्हें 10 साल की सज़ा सुनाई. 59 साल के राम प्रकाश बताते हैं कि पकड़े जाने से पहले उन्होंने 3 साल में करीब 75 बार बॉर्डर पार किया था. उन्हें 7 जुलाई, 2008 को वापस हिंदुस्तान भेज दिया गया.

4. कमल कुमार, ओम प्रकाश के बेटे

कमल कुमार बताते हैं कि उनके पिता, ओम प्रकाश 1998 में जासूसी करने पाकिस्तान गए थे. इस बारे में उन्हें तब पता लगा जब, ओम प्रकाश का एक ख़त, पाकिस्तानी जेल से उनके पास पहुंचा. उसके बाद से ओम प्रकाश जेल से ही अपने परिवार को चिट्ठी भेजते रहते लेकिन उनकी आखरी चिट्ठी 14 जुलाई, 2014 को इंडिया पहुंची. उसके बाद से ओम प्रकाश का कोई पता नहीं है कि वो ज़िंदा हैं कि नहीं.

5. विनोद साहनी

61 साल के विनोद साहनी Jammu Ex-Sleuths (जासूस) Association के अध्यक्ष हैं और बताते हैं कि ये संस्था उन्होंने उन जासूसों के हितों के लिए शुरू की थी, जिन्हें पाकिस्तान भेजा गया था, लेकिन पकड़े जाने के बाद उन्हें ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दिया. साहनी खुद भी इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए एक जासूस थे और उससे पहले वो टैक्सी चलाया करते थे. एक इंटेलिजेंस अधिकारी ने उन्हें जासूस बनने का प्रस्ताव दिया और सरकारी नौकरी के प्रलोभन में आ कर विनोद तैयार हो गए. 1977 में उन्हें पाकिस्तान भेजा गया और उसी साल वो गिरफ़्तार भी हो गए. पूछताछ और मुक़दमे के बाद उन्हें 11 साल की सज़ा हुई. मार्च, 1988 में वो वापस भारत आ गए और तबसे अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं.

6. सुराम सिंह

सुराम सिंह ने 1974 में पाकिस्तान में घुसने की कोशिश की थी लेकिन बॉर्डर पर ही उन्हें पकड़ लिया गया. 4 महीनों की पूछताछ के बाद वो सियालकोट की गोरा जेल में करीब 13 साल 7 महीनों तक कैदी रहे. 1988 में सिंह को वापस भारत भेज दिया गया.

7. जसवंत सिंह, बलवीर सिंह के बेटे

जसवंत सिंह अपने पिता, बलवीर सिंह को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं जिनकी मृत्यु 1.5 साल पहले हो चुकी है. बलवीर सिंह को 1971 में पाकिस्तान भेजा गया था और 1974 में उन्हें पकड़ लिया गया. 12 साल जेल में रहने के बाद, बलवीर को 1986 में वापस भारत भेज दिया गया. अधिकारियों और एजेंसी से जब उन्हें कोई सहायता नहीं मिली तब उन्होंने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया. 1986 में हाई कोर्ट ने उन्हें मुआवज़ा देने का आदेश सुनाया लेकिन आज तक वो मुआवज़ा, बलवीर सिंह के परिवार तक नहीं पहुंचा है.

8. देवत

देवत को 90 के दशक में पाकिस्तान भेजा गया था लेकिन उन्हें वहां गिरफ़्तार कर लिए गए. 23 दिसंबर, 2006 को देवत वापस भारत आये लेकिन अप्रैल में वो लकवाग्रस्त हो गए. तबसे उनकी पत्नी, वीना उनके हक़ के लिए लड़ रही हैं.

9. सुनील

सुनील अभी भी पाकिस्तान की जेल में हैं. उनकी पत्नी, सीमा के अनुसार, सुनील को अप्रैल, 2011 में पाकिस्तान भेजा गया था, जिसका पता उन्हें तब लगा जब तीन महीने बाद उनके पति की जेल से एक चिट्ठी आयी.

10. डेनियल

डेनियल ने 1992 से भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए काम करना शुरू किया था और 1993 में बॉर्डर पार करते वक़्त वो पकड़े गए थे. अपनी सज़ा काटने के बाद वो 1997 में भारत वापस आ गए. डेनियल अब रिक्शा चलाते हैं.

11. राम चंद, तिलकराज के पिता

86 साल की उम्र में भी राम चंद अपने बेटे तिलकराज की राह देख रहे हैं. तिलक पिछले 14 साल से पाकिस्तानी जेल में अपनी सज़ा काट रहे हैं.

12. सुरिंदर, सतपाल के बेटे

1999 में जब कारगिल युद्ध चल रहा था, तब सतपाल को जासूस के तौर पर पाकिस्तान भेजा गया था, लेकिन वो पकड़े गए और एक साल बाद, पाकिस्तान की जेल में उनकी मृत्यु हो गयी. सतपाल का शव वापस भारत भेज दिया गया. सुरिंदर के हिसाब से उनके पिता के शरीर पर टॉर्चर के निशान थे. पिता की मौत के बाद सुरिंदर को सरकार ने आश्वासन दिया था कि उन्हें मुआवज़ा और सरकारी नौकरी मिलेगी, लेकिन अभी तक ये दोनों ही वादे पूरे नहीं किये गए हैं. पिता की मृत्यु के बाद सुरिंदर की माता की भी मृत्यु हो गयी जिसके बाद दो बहनों की ज़िम्मेदारी सुरिंदर पर आ गयी. अब वो अकेले ही अपना घर संभालने की कोशिश कर रहे हैं. सुरिंदर जब भी विरोध प्रदर्शन में जाते हैं तो अपने पिता के खून से लथपथ भारतीय झंडा साथ ले जाते हैं.

तो ये थी कुछ अंजानी कहानियां, जिनके बारे में हमें कभी सुनने को नहीं मिलता. ये जासूस, सालों तक अपने परिवार से छुपा कर, देश के लिए, दुश्मन की मांद में घुस जाते हैं और ज़रूरी जानकारी ले कर आते हैं. आप समझ ही सकते हैं कि इस काम में कितना ख़तरा है और बुरा तब लगता है जब इन्हें अपने देश से ही इंसाफ़ नहीं मिलता. न जाने कितनी प्रताड़नाएं इन्होनें पाकिस्तान की जेलों में झेली होंगी. ज़रूरी है कि हम इन अनजान देशभक्तों की कहानी लोगों तक पहुंचाए. इसीलिए अनुरोध है कि इस आर्टिकल को जितना हो सके शेयर करें.

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Feature Image Source: patriotsforum