आज मैं उस विषय पर लिख रहा हूं, जिसे जानने की यात्रा में कई लोग ख़ुद एक विषय बन गए. एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हमने ज़िन्दगी को नहीं चुना, इस ज़िन्दगी ने हमें चुना है. बात यहीं से शुरु करते हैं. ज़िन्दगी…यानि हमारा अस्तित्व. हमारे होने न होने का अस्तित्व. हमें अपने अस्तित्व के होने का ज्ञान हमारे घर से ही मिलने लगता है. जहां हम किसी के बेटे, बेटी, भाई, बहन के रुप में अपने अस्तित्व को समझ रहे होते हैं. इस अस्तित्व को समझने की यात्रा में हम जीवन में कहीं न कहीं इस पड़ाव पर ज़रूर पहुंचते हैं कि भगवान या ईश्वर, अल्लाह या मौला, जीसस का भी अस्तित्व सच में है या नहीं?
आप भी मेरी तरह इस संसार में अपना एक स्वतंत्र वजूद रखते हैं. आपकी राय में इस सवाल के व्यक्तिगत जवाब हो सकते हैं. पर मैं अपने अनुभवों से आज आपको बताना चाहता हूं कि मेरा भगवान, आपका मौला या जीसस या जिस नाम से भी आप उसे पुकारना पसन्द करें, उसका अस्तित्व होता है.
अब ज़माना ऐसा आ गया है कि तार्किकता इतने चरम पर है, तो मुझे भी इस पक्ष में आपको अपने कुछ अनुभव तो बताने ही होंगे.
1. ईश्वर है प्रकृति के रुप में…
14.92 करोड़ किलोमीटर दूर एक सूरज है, जिसकी ऊर्जा से यह पृथ्वी नाम का ग्रह चलायमान बना रहता है. रोज सूरज आता है, जाता है. जहां पहाड़ों को होना चाहिए, वहां पहाड़ हैं, जिससे वो सर्द हवाओं से हमें बचा सकें. जहां नदियों को होना चाहिए, वहां नदियां हैं, जिससे वो हमें और हमारे खेतों को पानी दे सकें. पेड़-पौधे, हजारों रंगों के फूल हमें एहसास दिलाते हैं कि हमारे अलावा भी बहुत-सी चीज़ों का अस्तित्व है. इन सभी चीज़ों को अगर विज्ञान प्रकृति का नाम देता है, तो उसमें मै अपने ईश्वर का वजूद देखता हूं.
विज्ञान उसी को मानता है, जिसे कोई साबित कर पाए. मध्य काल तक यूरोप यह मानता था कि इंसान दिल से सोचता है. आज विज्ञान यह साबित कर चुका है कि हम दिल से नहीं, दिमाग से सोचते हैं. अब यह आप ही बताइए कि जिसे साबित नहीं किया जा सकता, क्या उसका अस्तित्व नहीं होता है?
2. ईश्वर है विश्वास के रुप में…
आप अपने विश्वास कभी बना ही नहीं पाते हैं. बचपन से ही आपको यह बता दिया जाता है कि आप इस धर्म या सम्प्रदाय के हैं. उसके बाद सामाजिक ताने-बाने में आपको इतना उलझा दिया जाता है कि आप अपने जीवन को एक संघर्ष बना डालते हैं. जब भी आप इस संघर्ष में होते हैं, तो किसी ऐसी शक्ति की तलाश करते हैं, जो आपकी मदद करे. यही शक्ति ईश्वर है. बस आपको उसे थोड़ा समय देना होता है. यह बात वैसी ही है कि दुनिया में नाई के अस्तित्व के होने के बावजूद सबके बाल नहीं कटे हुए होते हैं. आपको उसके पास जाना ही होता है. बस अगली बार कोई भी मुसीबत आये, आप अपने ईश्वर पर विश्वास करके थोड़ा समय देना, फिर देखना आप में उस मुसीबत से लड़ने की कैसे ताकत आती है.
3. ईश्वर है इंसानियत के रुप में…
जब भी हम मुसीबत में पड़े किसी इन्सान की मदद करते हैं, तो उस व्यक्ति के लिए हम उस पल उसके ईश्वर बन जाते हैं. जब कभी हमारी कोई मदद करता है, तो उस पल हमें उसमें एक ईश्वर नज़र आता है.
4. ईश्वर है आस्था के रूप में…
मक्का-मदीना से लेकर कुम्भ मेले तक आपको करोड़ों लोगों की सामूहिक आस्था देखने को मिलती है. हर साल वहां हादसों में कई लोग मर जाते हैं, फिर भी वहां जाने वालों की तादाद कम नहीं होती. यह उसी तरह है, जैसे लाखों प्यार करने वाले प्रेम में सफ़ल नहीं हो पाते. कुछ ख़ुद मर जाते हैं, कुछ मार दिए जाते हैं, फिर भी प्रेम करने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आती है. प्रेम को ईश्वर का दूसरा रुप भी शायद इसीलिए कहा गया है. आस्था किसी भी वस्तु के वजूद को महान बना देती है. आप अपने ऑफिस के काम में आस्था रखोगे, तो वो भी आपके लिए ईश्वर बन सकता है.
5. ईश्वर एक अलौकिक ऊर्जा स्रोत के रुप में…
विज्ञान कहता है दुनिया एनर्जी से चलती है. एनर्जी को यहां हमें गहराई में समझना होगा. जिस तरह हमारे शरीर को चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसी तरह हमारे मन का काम करने के लिए भी हमें एक ऊर्जा की ज़रूरत होती है. यह ऊर्जा ही हमें जीवन को जीने के लिए प्रेरित करती है. बारिश में निकल कर भीगने के लिए, छोटे बच्चों को देख कर उनके साथ दौड़ने के लिए, मां को पास देख कर बेफिक्र होने के लिए. धर्म का सारा ताना-बाना भी इसी पर खड़ा है. यह किसी फ़िल्म का डायलॉग ही नहीं, बल्कि संसार की सबसे बड़ी हकीक़त है कि ‘आप किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो, तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने के लिए जुट जाती है’. धर्म में भी एक साथ करोड़ों लोग अल्लाह या राम में अपनी एनर्जी लगाते हैं और उनका जन्म हो जाता है. आप भी अपनी एनर्जी लगा कर अपना ईश्वर ख़ुद बना सकते हैं. यकीन न हो तो करके देखिए.
6. ईश्वर सकारात्मक ऊर्जा के रुप में …
एक पल के लिए सोचिए, इस संसार में ईश्वर नाम की कोई चीज़ नहीं है. आपको मुसीबत से निकालने वाला कोई नहीं है. आधे से ज़्यादा लोग तो यह सोच कर ही घबरा जायेंगे. यहां ईश्वर काम करता है एक सकारात्मक ऊर्जा के रुप में. किसी भी काम को करने के लिए मेहनत हमें ही करनी होती है, लेकिन उस मेहनत को कार्य के पूर्ण होने तक बनाये रखने के लिए ज़रुरी है ‘आत्मविश्वास’, जो हमें ईश्वर के वजूद के पास ले जाता है.
7. ईश्वर आध्यात्मिक एहसास के रुप में…
हर किसी के सोचने का तरीका अलग-अलग होता है. मगर सब लोगों में एक समानता ज़रूर होती है कि वे सभी सोचते हैं. जब हम भौतिक गुणों से साक्षात्कार कर लेते हैं, तो हमें एक खालीपन नज़र आता है. हम सबकी ज़िन्दगी में ऐसा कभी न कभी ज़रूर होता है. उस खालीपन को भरने का सबसे उचित माध्यम ईश्वर से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने कहा था ‘कल्पना ज्ञान से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है.’ बस उस कल्पना को उड़ान दीजिए, आप अपने ईश्वर तक पहुंच ही जायेंगे.
8. ईश्वर धर्म के रुप में…
सबको जीवन में एक मानसिक शान्ति चाहिए. जब यह मानसिक शान्ति किसी के जीवन से छिन जाती है, तो जन्म होता है उसे वापस प्राप्त किए जाने वाले प्रयासों का. कुछ उसके लिए अनुचित प्रयास करते हैं और कुछ उचित. जब आप साधनों और मान्यताओं का प्रयोग करके उसे पा लेते हैं, तो उस दिन आप ईश्वर को भी पा लेते हैं. जब आप किसी और की मान्यताओं का अनुसरण करके उसे पाते हैं, तो आप सम्बंधित धर्म के अनुयायी कहलाते हैं. जब आप व्यक्तिगत अनुभवों से उसे पाते हैं, तो आप ख़ुद एक नया धर्म बना चुके होते हैं. जैसा बुद्ध, महावीर, पैगम्बर साहब के साथ हुआ. इसीलिए धर्म के होने का वजूद हमें ये बताता है कि कहीं न कहीं ईश्वर है.
9. ईश्वर हादसों से पहले मिलने वाले संकेतों के रुप में…
आपने कभी-कभी यह महसूस किया होगा कि जब भी कुछ गलत होने वाला होता है, तो हमारा कोई सेंस हमें आगाह करने की कोशिश करता है. कुछ लोग उन संकेतों को समझ कर हादसों से बच जाते हैं. ईश्वर का भी तो यही काम है, हमें हादसों से बचाना.
10. ईश्वर एक मनोविज्ञान के रुप में…
मेरे इस तर्क से तो नास्तिक और ईश्वर को न मानने वाले भी ईश्वर के वजूद का समर्थन करेंगे. एक बार एक मनोवैज्ञानिक ने एक प्रयोग किया, जिसमें उसने एक पार्क में एक कुत्ते की मूर्ति लगा कर यह घोषणा करवा दी कि वह एक चमत्कारिक कुत्ते की मूर्ति है. लोग वहां आकर अपने जीवन से जुड़ी समस्याओं को लेकर प्रार्थना करते. एक महीने बाद यह निष्कर्ष निकला कि जिन लोगों ने माना कि वह चमत्कारिक कुत्ता है, वो अपनी समस्याओं से लड़ने की हिम्मत जुटा कर उनका सामना करने लगे. वो लोग अपनी समस्याओं से बाहर आ चुके थे. इसलिए ईश्वर को मानना ईश्वर को न मानने से कई गुना बेहतर है.
मन्दिरों, मस्जिदों में जाने के बाद मैंने यह पाया है कि ईश्वर वो उम्मीद है, जो आपको जीना सिखाती है. ईश्वर वो है, जो आपको मुसीबत में धैर्य बनाए रखने की ताकत देता है. आपकी आस्था और आपका विश्वास हर शब्द को मंत्र बना देता है. आपकी मेहनत जब उस आस्था से मिल जाती है, तो फिर जन्म होता है सफलता के रुप में असीम आनन्द का. यह चमत्कार ही इस भौतिक संसार में लोगों को ईश्वर के होने का एहसास कराता है.