बचपन से अब तक हम कई तरह के नोट और सिक्के देखते आए हैं. अगर आपकी उम्र 16-17 साल से ज़्यादा है, तो आपने चार आने और आठ आने के सिक्के भी इस्तेमाल किए होंगे. अब ये चवन्नी-अट्ठन्नी देखने को नहीं मिलती. हमने एक का बड़ा सिक्का भी देखा है और आज-कल चल रहा छोटा एक का सिक्का भी. हमने मुस्कुराते हुए गांधी जी की तस्वीर वाले नोट भी देखे हैं और नोट के एक तरफ बनी नांव वाले नोट भी. हो सकता है आपके दादा-दादी ने आपको चौकोर और बीच में छेद वाले सिक्के भी दिखाए हों. भारतीय मुद्रा का इतिहास इतना पुराना है, शायद आपकी सोच भी वहां तक न जाए. चलिए आपको बताते हैं कि कितने सालों का सफर तय किया है हमारी मुद्रा ने.

भारत, चीन कुछ उन देशों में से हैं जिन्होंने सबसे पहले दुनिया को सिक्के दिखाए. सबसे पहले भारतीय सिक्कों को पुराण, कर्शपना या पना कहा जाता था. इसे छठी शताब्दी में प्राचीन भारत के महाजनपद में बनाया जाता था. इसमें गांधार, कुटाला, कुरु, पंचाल, शाक्या, सुरसेना और सुराष्ट्र शामिल हैं. इन सिक्कों का आकार अलग-अलग था और इन पर अलग-अलग चिह्न बने थे. जैसे सुराष्ट्र पर बैल, दक्षिण पांचाल पर स्वास्तिक और मगध के सिक्कों पर कई चिह्न बने होते ​थे.

इसके बाद मौर्य साम्राजआया, जिसमें चंद्रगुप्त मौर्य चांदी, सोने, तांबे और सीसे के सिक्के लोगों के बीच लाए. इस समय चांदी के सिक्के को रुप्यारुपा, सोने के सिक्के को स्वर्णरुपा, ताम्ररुपा तांबे का सिक्का और सीसे के सिक्के को सीसारुपा कहा जाता था.

इसके बाद इंडो-ग्रीक कुषाण राजाओं ने सिक्कों पर तस्वीरें छापने की शुरुआत की. ये तरीका अगली आठ सदियों तक चलता रहा. इससे प्रभावित हो कर कई जनजातियों, राजवंशों, और राज्यों ने अपने खुद के सिक्के बनाने शुरू कर दिए. इन सिक्कों पर एक तरफ राजा की तस्वीर छपी होती थी और दूसरी तरफ उन देवताओं की, जिन्हें वो मानते थे.

गुप्ता साम्राज्यों ने सबसे ज़्यादा सोने के सिक्के जारी किए. इसमें कई किस्म के सिक्के शामिल थे, जिन पर संस्कृत में कुछ लिखा होता था.

12वीं शताब्दी में दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने सिक्कों से राजाओं की तस्वीरें हटा कर इस्लामी कैलिग्राफी में लिखना शुरू कर दिया. इस वक्त भी सोने, चांदी और तांबे के सिक्के लोगों के बीच थे. अब इन सिक्कों को ‘टंका’ कहा जाता था और कम मूल्य वाले सिक्कों को ‘जितल’. इस वक्त मुद्रा का मापदंड तय होने लगा था. दिल्ली सल्तनत ने अलग-अलग मूल्य के सिक्कों को बाज़ार में उतारा.

मुगल साम्राज्य के प्रारंभ से यानि 1526 ईसवी से पूरे साम्राज्य के लिए एक संयुक्त और मज़बूत मौद्रिक प्रणाली सामने आई.

शेर शाह सूरी ने सबसे पहले जारी किया था रुपया

हुमायूं को हराने के बाद शेर शाह सूरी ने नये नागरिक और सैन्य प्रशासन की स्थापना की. शेर शाह ने एक चांदी का सिक्का जारी किया जिसका वज़न 178 ग्रेन्स था यानि करीब 11.5 ग्राम. इस सिक्के का नाम रुपया रखा गया. एक रुपया में उस वक्त 40 पैसे हुआ करते थे. एक पैसा उस वक्त तांबे का होता था. ये चांदी के सिक्के मुगल काल के दौरान चलते रहे.

साल 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से पहले शेर शाह का चांदी का सिक्का प्रसिद्ध हो चुका था. ब्रिटिश सरकार ने भारत में पाउंड लाने की कोशिश की लेकिन रुपये के आगे ऐसा हो न सका.

साल 1717 में अंग्रेज़ों ने मुगल राजा फारुख़ सियार से ब्रिटिश मुद्रा को बॉम्बे मिंट में बनाने की इजाज़त ले ली. ब्रिटिश राज के सोने के सिक्कों को ‘Carolina’, चांदी के सिक्कों को ‘Angelina’ और तांबे के सिक्कों को ‘Cupperoon’ और छोटे-छोटे सिक्कों को ‘Tinny’ कहा जाता था.

18वीं शताब्दी में सबसे पहले कागज़ की मुद्रा को छापा गया था.

कागज़ की मुद्रा को सबसे पहले Bank of Hindostan, General Bank in Bengal और The Bengal Bank ने जारी किया. भारत का सबसे पुराना नोट, दो सौ पचास सिक्का रुपये का Bank of Bengal ने जारी किया था. नोट पर 3 सितंबर 1812 की तारीख़ लिखी है.

1857 के आंदोलन के ​बाद ब्रिटिश सरकार ने रुपये को औपचारिक रूप से सरकारी मुद्रा घोषित कर दिया. इन नोट और सिक्कों पर किंग जॉर्ज VI की तस्वीर छपी थी.

1862 में रानी विक्टोरिया के सम्मान में उनकी तस्वीर वाले बैंक नोट छपे, उसके बाद कई और राजाओं की तस्वीरें छपती रहीं. सुरक्षा के नज़रिए से रानी की तस्वीर वाले नोट को दो भागों में फाड़ दिया जाता था. पहले आधे नोट को पोस्ट से भेजा जाता था, फिर जब आधे नोट के सही व्यक्ति तक पहुंचने की पुष्टी होती थी, उसके बाद दूसरा भाग भेजा जाता था.

औपचारिक रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक 1935 में स्थापित हुआ और भारतीय सरकार की मुद्रा छपने लगी. RBI ने अब तक सबसे ज़्यादा मूल्य का नोट 10,000 रुपये का जारी किया, जिसे आज़ादी के बाद बंद कर दिया गया. जनवरी 1938 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सबसे पहला नोट पांच रुपये का जारी किया गया था. इस नोट पर किंग जॉर्ज VI की तस्वीर छपी थी.

आज़ादी के बाद भारत की मौद्रिक प्रणाली नहीं बदली और एक रुपये का नोट छपा. उस वक्त एक रुपये में 64 पैसे होते थे. 

15 अगस्त 1950 को ‘आना सिस्टम’ सामने आया. इस वक्त ब्रिटिश राजा की तस्वीर को सारनाथ के अशोक स्तंभ से बदल दिया गया और एक के सिक्के पर छपे बाघ को भुट्टे से बदल दिया गया.

शुरुआत में इसे ‘नया पैसा’ कहा जाता था. 1955 में Indian Coinage (Amendment) Act के बाद 1 अप्रैल 1957 से ‘Decimal Series’ पेश की गई. अब एक रुपये में 100 पैसे होन लगे थे. अब 16 आने या 64 पैसे जैसा कुछ नहीं बचा था. इनका आकार ऐसा रखा गया कि नेत्रहीन लोग भी इसे पहचान लें. जैसे एक नया पैसा छोटे गोल आकार का, दो नया पैसा दबा और उभरा हुआ, पांच पैसे का सिक्का चौकोर और दस पैसे भी दबा उभरा हुआ. पर दो पैसे से थोड़ा बड़ा.

1959 में हाजियों के लिए एक स्पेशल दस रुपये का नोट जारी किया गया. जिससे कि साउदी अरब में मुद्रा बदलने में उन्हें आसानी हो जाए.

1969, में रिज़र्व बैंक ने गांधी जी की जन्म शताब्दी के मौके पर एक खास नोट जारी किया. 

इसके बाद साल 1996 से ‘Mahatma Gandhi Series’ के नोट जारी होना शुरू हो गए. इसमें सुरक्षा और नेत्रहीन लोगों के नज़रिए से कई फीचर्स थे. बाद में साल 2005 में सुरक्षा के पैमाने को और बेहतर करते हुए ‘MG Series’ के नोट जारी हुए.

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साल 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान 2 और 5 रुपये के सिक्के जारी हुए. जिसमें एक तरफ कॉमनवेल्थ गेम्स का Logo और दूसरी तरफ अशोक स्तंभ था. 

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साल 2010 के बाद स्मरणीय सिक्के निरंतर जारी होने लगे. संसद की 60वीं वर्षगांठ पर, स्वामी विवेकानंद के 150वें जन्मदिन पर और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर भी सिक्के जारी हुए. इसी के साथ 15 July 2010 को रुपये को अपनी नई पहचान और चिह्न मिला. IIT Guwahati के एसोसिएट प्रोफेसर डी उदय कुमार द्वारा डिज़ाइन किये हुए रुपये का चिह्न ‘₹’ वित्त मंत्री द्वारा स्वीकार लिया गया. 

The Hindu

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