पानी पूरी वो डोर है, जो इतनी विभिन्नताओं के बाद भी हमें आपस में जोड़े हुए है. किसी भी राज्य में चले जाएं, आपको वहां के फ़ूड मार्केट में पानी पूरी के स्टॉल ज़रूर मिल जाएंगे. भले ही वहां उन्हें किसी और नाम से पुकारा जाता हो. गोलगप्पा, पानी-बतासे, फुचका, गुचचुप, पानी टिक्की या फुल्की सब एक ही हैं.
आटा या सूजी से बनने वाली कुरकुरी पूड़ी और उसके साथ इमली-पुदीने का पानी. आलू के मसाले के साथ ये संपूर्ण हो जाता है. सभी राज्यों ने इसके नाम के अलावा स्वाद को भी अपने हिसाब से ढाला है, ये आपको एक पानी पूरी खाते ही पता चल जाएगा.
पानी पूरी पूरी तरह से देसी है.
इतिहास के पन्नों में इसको बनाने वाले का ज़िक्र तो नहीं है, लेकिन इसमें दो राय नहीं है कि ये भारत की ही ख़ोज है.
ग्रीक इतिहासकार Megasthenes और चीनी बौद्ध यात्री Faxian और Xuanzang की किताबों में पाया जाता है कि पानी पूरी के पूर्वज फुल्की सबसे पहले गंगा के किनारे बसे मगध साम्राज्य में बनाए गए थे. तब और भी अन्य स्थानीय खाद्य पदार्थ तैयार हो रहे थे, मसलन- पिट्ठो, तिलवा, चिवड़ा आदी. जिस जगह की बात हो रही है, आज उसे बिहार कहा जाता है.
पानी पूरी की महाभारत
पानी पूरी की एक कहानी महाभारत से भी जुड़ी है. नई नवेली बहू द्रौपदी जब पहली बार घर आई थी, तो कुंती ने परीक्षा लेने के लिए उसे एक पकवान बनाने को कहा. सामग्री के तौर पर बचे हुए आलू की सब्ज़ी और बस इतना आटा, जिससे एक पूरी बनाई जा सके. कुंती ने ये भी कह रखा था कि खाना ऐसा हो, जिसे खा कर उसके पांचों बेटों का मन संतु्ष्ट हो जाए. इस परीक्षा के माध्यम से कुंती ये जांचना चाहती थी कि द्रौपदी मुश्किल परिस्थितियों में घर संभाल सकती है या नहीं.
द्रौपदी ने अपनी पाक कला और ज्ञान का इस्तेमाल कर पानी पूरी बनाया. पानी पूरी से खु़श हो कर कुंती ने उसे अमरता का वरदान दिया.
आगे से जब भी फुचका खाना, अपने मन में ही द्रौपदी को धन्यवाद ज़रूर देना.
Feature Image Source: Monish Gujral