186 Years Old Lucknow Royal Kitchen Story: लखनऊ अपने सपन्न संस्कृति और इतिहास के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है. दूर-दराज से लोग यहां के शाही अंदाज़, विविधता, प्राचीन धरोहर और खान-पान का लुत्फ़ उठाने आते हैं. अगर खाने के बात करें तो लखनऊ के एक शाही रसोई में 186 वर्षों से लंगर चलता आ रहा है. जहां हर धर्म, जाति और समुदाय के लोग खाना खा सकते हैं. चलिए इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको विस्तार से उस शाही रसोई की कहानी बताएंगे, जहां 24 घंटे लोगों को मुफ़्त खाना दिया जाता है.
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चलिए जानते हैं लखनऊ के शाही रसोई की ऐतिहासिक कहानी (186 Years Oldest Lucknow Kitchen) –
ये रसोई अंग्रेज़ों के पास जमा कराए 26 लाख रुपयों से चल रही है
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रिपोर्ट्स के मुताबिक, इतिहासकर डॉ. रवि भट्ट बताते हैं कि मोहम्मद अली शाह ने लखनऊ के प्रसिद्ध स्मारक छोटा इमामबाड़ा को बनवाने के लिए अंग्रेज़ों के पास 26 लाख रुपये जमा करवाए थे. लेकिन जब भारत पर से अंग्रेज़ों की हुकूमत ख़त्म हुई तो वो सारा पैसा हुसैनाबाद ट्रस्ट में चला गया. आज, इन्हीं पैसों से ये शाही रसोई चल रही है.
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शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलता है
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यहां के सेवादार ने बताया कि ये नवाबों के वक़्त की रसोई है, इसीलिए इसे शाही रसोई भी कहा जाता है. अगर हम खाने की बात करें तो यहां शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलता है. इसी ख़ास वजह से यहां सभी धर्मों के लोग आते है और मुफ़्त में खाना खाते हैं. यहां से हुसैनाबाद ट्रस्ट में आने वाली मस्जिदों में भी खाने को भेजा जाता है.
अवध के नवाब मोहम्मद अली शाह द्वारा बनाई गई इस रसोई की शुरुआत 1837 में हुई थी. इस रसोई में पहले दावत होती थी. जहां हर मज़हब का इंसान आ सकता था, तबसे लेकर आज तक ये रसोई चलती आ रही है.
(Royal Kitchen Of Lucknow)
रमज़ान के वक़्त 24 घंटे रसोई में खाना बनता है
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रमज़ान का पाक महीना चल रहा है और रोज़ लोग अपना रोज़ा खोलने के लिए यहां आते हैं. जहां रोज़ 50 किलो पकौड़ी बनती है. साथ ही यहां रोटियां, आलू की सब्ज़ी और चने की दाल भी ज़्यादा मात्रा में बनाई जाती है. इस रसोई की ख़ास बात ये भी कि यहां लोगों को खाने के रोका नहीं जाता है. जो जितना खाना चाहे, वो उतनी मात्रा में खाना ले सकता है. साथ ही यहां रोज़ेदार और ज़रूरतमंद लोग खाना खाते भी है और साथ पैक करा के ले भी जाते हैं.
कहा ये भी जाता है कि रमज़ान के दौरान यहां खाना खाने वालों की लंबी भीड़ लगती है.