Alluri Sitarama Raju and Komaram Bheem : ‘बाहुबली’ जैसी धमाकेदार फ़िल्म बनाने के बाद एस.एस. राजामौली भारत के सबसे लोकप्रिय डायरेक्टर में शामिल हो गए हैं. हाल ही में यानी 25 मार्च को उनकी फ़िल्म RRR (Rise Roar Revolt) रिलीज़ हुई है, जिसने पहले दिन में ही 200 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया था. वहीं, रिलीज़िंग से अब तक इस फ़िल्म ने वर्ल्डवाइड 565 करोड़ का बिज़नेस कर लिया है.

फ़िल्म में राम चरण अल्लूरी सीताराम राजू के किरदार में हैं और वहीं, जूनियर एनटीआर कोमाराम भीम के रोल में हैं. इसके अलावा, फ़िल्म में एक्टर अजय देवगन और आलिया भट्ट भी नज़र आएंगे. वहीं, फ़िल्म की स्टोरी आपको भारत के इतिहास में लेकर जाएगी. 
ये फ़िल्म भारत के दो गुमनाम फ़्रीडम फ़ाइटर्स ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ और ‘कोमाराम भीम’ पर बनी हैं, जिनके बारे में मुश्किल से ही अधिकतर लोगों को पता हो. हालांकि, फ़िल्म में दिखाई गई स्टोरी काल्पनिक है. आइये, इस ख़ास लेख में जानते हैं कि कौन थे अल्लूरी सीताराम राजू’ और ‘कोमाराम भीम’ और क्या है उनकी असल कहानी.  

आइये, अब विस्तार से जानते हैं राजामौली की फ़िल्म RRR के दो मुख्य किरदारों (Alluri Sitarama Raju and Komaram Bheem) की असल ज़िंदगी के बारे में.  

कौन थे कोमाराम भीम?  

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Alluri Sitarama Raju and Komaram Bheem : भले ही एस.एस राजामौली की फ़िल्म काल्पिनक है, लेकिन उनकी फ़िल्म के दो मुख्य किरदार असल ज़िंदगी के हैं. उनमें एक हैं कोमाराम भीम. कोमाराम भीम तेलंगाना के वीर योद्धा के रूप में जाने जाते हैं. उनका जन्म 22 अक्टूबर 1901 को आदिलाबाद ज़िले के संकपल्ली गांव एक गोंड आदिवासी जनजाति में हुआ था. उनके पिता का नाम कोमाराम चिन्नू और माता का नाम सोम बाई था. ग़रीब परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें शिक्षा न मिल सकी और बाकी गौंड जनजाति के लोगों की तरह बाहरी दुनिया से दूर रहें. बचपन से उन्होंने ज़मीदार, व्यापारियों से अपने लोगों को शोषण होते देखा और साथ ही ये भी देखा कि जीने के लिए संघर्ष कितना ज़रूरी है. 

जल, जंगल और ज़मीन  

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बड़े होते-होते उन्होंने अपने लोगों पर होती अन्यायपूर्ण प्रथाओं को देखा. अपने लोगों का दुख देखकर उनके अंदर विद्रोह की ज्वाला फूटी. कहा जाता है कि कोमाराम भीम शहीद भगत सिंह से काफ़ी प्रेरित थे, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी. साथ ही अन्य गोंड नेताओं से भी, जिन्होंने अपने लोगों के लिए बलिदान दिया. इसी प्रेरणा से उन्होंने “जल, जंगल जमीं” का नारा दिया, जिसका अर्थ है कि जंगलों में रहने वाले लोगों को सभी वन संसाधनों पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए.  

कोमाराम भीम की गुरिल्ला आर्मी 

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Alluri Sitarama Raju and Komaram Bheem : एक क्रांतिकारी नेता के रूप में कोमाराम भीम ने आदिवासियों की स्वतंत्रता के लिए आसफ़ जाही राजवंश के खिलाफ़ जंग छेड़ दी थी. ऐसा कहा जाता है कि आदिवासियों के हक़ के लिए जब उनके पिता ने आवाज़ उठाई थी, तो उनकी हत्या कर दी गई थी. वहीं, कहते हैं कि एक बार निजाम का एक पट्टेदार सिद्दीकी टैक्स के लिए आदिवासियों को तंग कर रहा था. जब बात बहुत बढ़ गई, तो भीम के हाथों सिद्दीकी की मौत हो गई थी. इसकी वजह से भीम को वहां से भागना पड़ा था. 

वहां, से निकलकर वो असम के चाय बगानों में काम करने लगे थे. वहां, भी उन्होंने मज़दूरों के हक़ के लिए आवाज़ उठाई. लेकिन, इस वजह से उन्हें जेल में डाल दिया गया था. जेल से छूटे, तो वो वापस अपने लोगों के पास आ गए और अपनी गुरिल्ला आर्मी के साथ निज़ाम के खिलाफ़ लड़ते रहे. निज़ाम के खिलाफ़ उनका गुरिल्ला युद्ध 1928 to 1940 तक चलता रहा. 
वहीं, जब निज़ाम को लगा कि भीम की विद्रोह बढ़ते जा रहा है, तो उन्होंने अपने खिलाफ़ विद्रोह को शांत करने के लिए अपना एक दूत भेजा. लेकिन, भीम ने किसी तरह की बातचीत करने से मना कर दिया. इसके बाद निजाम ने अपने सैनिकों की टुकड़ी विद्रोहियों को मारने के लिए भेज दी. इस लड़ाई में कोमाराम भीम अपने साथियों के साथ शहीद हो गए. वहीं, ऐसा भी कहा जाता है कि जब निज़ाम की आर्मी भीम को आत्मसमर्पण कराने में नाकाम रही, तो उन्हें उनके साथियों को 1940 में मार दिया गया था.  

कौन थे अल्लूरी सीताराम राजू?  

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Alluri Sitarama Raju and Komaram Bheem : अल्लूरी सीताराम राजू एक स्वतंत्रता सेनानी और ‘रम्पा विद्रोह के मुख्य नेता थे. उनका जन्म 4 जुलाई 1897 को आंध्र प्रदेश में भीमावरम के पास मोगल्लु गांव में हुआ था. शुरुआती शिक्षा ग्रहण करने के बाद वो 15 साल की उम्र में आगे की पढ़ाई के लिए विशाखापट्टनम चले गए थे. यहां एक बात जानना ज़रूरी है कि 1882 में अंग्रेज़ों ने मद्रास वन अधिनियम 1882 लागू किया था, जिसने आदिवासियों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था. साथ ही एक एक्ट ने आदिवासियों की पारंपरिक कृषि करने के तरीक़े को भी बुरी तरह प्रभावित किया था. कई सालों तक आदिवासी लोग अंग्रेज़ों का उत्पीड़न सहते रहे. लेकिन, अल्लूरी के विद्रोह ने अंग्रेज़ों की नींव हिलाने का काम किया. 

अल्लूरी को अंग्रेज़ों के खिलाफ़ ‘रम्पा विद्रोह’ का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है. इसमें उन्होंने विशाखापत्तनम और पूर्वी गोदावरी जिलों के आदिवासी लोगों को विदेशियों के खिलाफ़ विद्रोह करने के लिए संगठित किया था. ‘रम्पा विद्रोह’ 1922 और 1924 के बीच लड़ा गया था. इस विद्रोह के अंतर्गत अल्लूरी ने कई पुलिस स्टेशनों पर धावा बोला और कई ब्रिटिश अधिकारियों को मार डाला था. साथ ही लड़ाई के लिए अंग्रेज़ों के हथियार और गोला-बारूद भी चुरा लिए थे. 
उन्हें स्थानीय समर्थन प्राप्त था और वह लंबे समय तक अंग्रेज़ों से बचते रहे थे. वहीं, अंत में अंग्रेज़ों ने उन्हें पकड़ लिया था और 7 मई 1924 को पेड़ के बांधकर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी.