Camel Contingent History : भारत में 74वें गणतंत्र दिवस (Republic Day 2023) की तैयारियां ज़ोरों-शोरों से हो रही हैं. इस बार 26 जनवरी कई मायनों में ख़ास होने वाली है. इस बार परेड में प्रदर्शित होने वाले सभी हथियार ‘मेड इन इंडिया’ के होंगे. वहीं, पहली बार सीमा सुरक्षा बल (BSF) की महिला जवान ऊंट दस्ते में शामिल होंगी.

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लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऊंट दस्ता सेना में काफ़ी लंबे समय से शामिल है? आइए आज आपको ऊंट दस्ते के रोचक इतिहास के बारे में बता देते हैं.

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1971 के युद्ध में निभाई थी काफ़ी अहम भूमिका

इतिहास में ऊंट भारतीय सेना की ग्रेनेडियर यूनिट्स में शामिल हो रहे थे. 1948 और 1965 के युद्ध का भी ये यूनिट्स हिस्सा रही थीं. 1971 के युद्ध के दौरान भी भारतीय सेना में ऊंटों ने काफ़ी अहम भूमिका निभाई थी. साल 1976 में वो पहली बार था, जब बीएसएफ़ ने गणतंत्र दिवस परेड में ऊंट दस्ते के साथ हिस्सा लिया था. उसने थलसेना की ऐसी ही एक टुकड़ी का स्थान लिया था, जो 1950 से भी पहले गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल हो रही थी.

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किस चीज़ में काम आता है ऊंट दस्ता?

ऊंट के दस्ते की 1986 से लेकर 1989 तक कड़ी ट्रेनिंग हुई थी. इसके बाद इसे 1990 में कर्तव्य पथ पर कैमल माउंटेड बैंड में शामिल किया गया था. ऊंट का दस्ता मरुस्थल में दुश्मनों को पकड़ने से लेकर हेल्थ के मिशन तक काम में आता है.

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हर साल रहा है 26 जनवरी की परेड का हिस्सा

बीएसएफ की ऊंट टुकड़ी हर साल 26 जनवरी को राजपथ पर परेड का हिस्सा रही है. इसमें दो टीम होती हैं. पहली टीम 54 सदस्य जवानों की होती है, जबकि दूसरी टीम 36 सदस्यीय बैंड टीम होती है. इसकी पहली टीम में बीएसएफ जवान हथियार लेकर ऊंट पर सवार होते हैं. वहीं, दूसरी टीम के सदस्य रंग-बिरंगे कपड़ों में होते हैं और सामरिक धुन बजाते रहते हैं.

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