Chambal Dacoit Ramesh Singh Sikarwar in Hindi: चंबल का नाम आते ही सीधा ध्यान चंबल के डाकुओं की तरफ़ जाता है. इसमें कोई दो राय नहीं कि कभी चंबल की घाटी ख़तरनाक डकैतों का गढ़ हुआ करती थी. यहां के डाकुओं के ख़ौफ़ लोग थर-थर कांपता था. चंबल की घाटी से कई डाकू निकले, जिसमें डाकू मान सिंह, निर्भय सिंह गुज्जर व फूलन देवी शामिल हैं. वहीं, यहां से एक और डैकेत निकला जिसका नाम था रमेश सिंह सिकरवार.   

ऐसा कहा जाता है कि कभी रमेश सिंह सिकरवार चंबल के बीहड़ों में डकैतों के एक बड़े ग्रुप का नेतृत्व करता था. लेकिन, जानकर हैरानी होगी कि आज रमेश सिंह (Ramesh Singh Sikarwar) ने अफ़्रीकी चीतों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाया है. 

आइये, अब विस्तार से पढ़ते हैं ये आर्टिकल और खंगालते हैं रमेश सिंह सिकरवार (Ramesh Singh Sikarwar Former Dacoit) की ज़िंदगी को. 

 क़त्ल और अपहरण के 91 मुक़दमें 

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History of Ramesh Singh Sikarwar Former Dacoit: 1970-1980 के दशक में रमेश सिंह सिकरवार (Ramesh Singh Sikarwar) का मध्य प्रदेश के लोगों में ख़ौफ़ था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो रमेश सिंह सिकरवार पर क़त्ल और अपहरण के 91 मुक़दमें दर्ज थे. 

वहीं, उन्होंने अपनी गैंग के साथ मिलकर एक दिन में 27 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि, वक़्त सभी को बदलने का मौक़ा देता है और रमेश सिंह सिकरवार भी बदले. उन्होंने 27 अक्टूबर 1984 को अपनी गैंग के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था.  

Dinner with Dons की एक डॉक्टुमेंट्री में सिकरवार बताते हैं कि जब पूरे क्षेत्र की जनता ने उनसे कहा कि आपको 10 साल हो गए जंगल में रहते-रहते अब आप सरेंडर कर दो. हम सब बहुत परेशान हैं. वहीं, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने भी उनसे कहा था कि आप सरेंडर कर दें, सरकार आपको सब सुख-सुविधाएं देगी. सरकार के सामने 18 शर्ते रखी गईं थी, जिन्हें पूरा किया गया था, तब जाकर रमेश सिंह सिकरवार ने आत्मसमर्पण किया था. 

जब हाथों से एक निर्दोश मारा गया

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Who was Ramesh Singh Sikarwar: Dinner with Dons डॉक्युमेंट्री में ही सिकरवार बताते हैं कि एक बार शिवपुरी का व्यक्ति उनके हाथों मारा गया था. पुराना क़िस्सा याद करते हुए वो कहते हैं कि एक बार गैंग के सदस्यों को रात के वक़्त पानी की प्यास लगी. तो पास में ट्यूबवेल पर पानी पीने गए. लेकिन, वहां मौजूद व्यक्ति ने पानी पीने नहीं दिया और झगड़ने लगा. लड़ाई इतनी बढ़ गई कि उस व्यक्ति को मारना पड़ गया, जिसका बाद में उन्हें बहुत अफ़सोस भी हुआ. 

कैसे बने डकैत 

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How Ramesh Singh Sikarwar Became Dacoit: ये बात बिल्कुल सही है कि कोई भी मां के पेट से चोर या डाकू बनकर नहीं निकलता. इसके पीछे वक़्त और हालात ज़िम्मेदार होते हैं. रमेश सिंह सिकरवार की भी अपनी अलग कहानी है कि वो कैसे एक बाग़ी और डकैत बन गए.  दरअसल, सिकरवार श्योपुर के रहने वाले हैं और कभी उनके चाचा ने उनकी ज़मीन उनके पिता से हड़प ली थी. ये वो वक़्त था जब रमेश 7वीं कक्षा मे थे. उनके पिता ने ख़ूब मिन्नते की, लेकिन ज़मीन नहीं मिली.

वहीं, जब रमेश सिंह सिकरवार बड़े हुए, तो उन्होंने अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए अपने चाचा को गोलियों से भून दिया और फिर कभी घर वापस नहीं आए. क़रीब 10 सालों तक वो जंगलों में रहे थे. 

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आत्मसमर्पण के बाद बदल डाला ख़ुद को

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Ramesh Singh Sikarwar Life in Hindi: मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो उन्होंने क़रीब 8 साल जेल में बिताए और उसके बाद खेती शुरू की. एक लंबा समय बागी के रूप में बिताने के बाद सिकरवार अब एक आम ज़िंदगी जी रहे हैं. वहीं, गांव में उनका प्रभाव और प्रतिष्टा अब भी बरकरार है. 

अब ‘चीता मित्र’ बने सिकरवार 

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Chambal Dacoit Ramesh Singh Sikarwar Became Chitra Mitra: ये तो आपको पता ही होगा कि अफ़्रीका से भारत चीते लाए गए हैं और उन्हें मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में रखा गया है. साथ ही एक ‘चीता मित्र’ नाम की एक टीम भी बनाई गई है, जो लोगों में चीता संबंधी जागरुकता फ़ैलाने का काम करेगी. 

चीता मित्र वो लोग हैं, जो चीतों के जीवन और उनकी सुरक्षा के लिए काम करेंगे. वो लोगों के बीच जाकर चीतों के बारे में लोगों को जागरूक करेंगे. उन्हें बताएंगे कि चीते से डरने की ज़रूरत नहीं है. वहीं, अगर कोई चीता इंसानी इलाक़ों में आ जाए, तो तुरंत वन विभाग को सूचना दें. 

इसमें रमेश सिंह सिकरवार भी शामिल हो गए हैं, यानी वो भी लोगों को चीतों के बारे में जागरूक करेंगे.  

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