Controversy Related to Mahatma Gandhi: हिन्दुस्तान जैसी संपन्न भूमि पर हमेशा से ही विदेशियों नज़र रही है. मुग़लों के साथ-साथ यहां डच, पुर्तगाली, फ़्रांसिसी व ब्रिटिश का भारत में आगमन हुआ, लेकिन भारत पर अपना अधिकार जमाने में ब्रिटिश कामयाब रहे. विभिन्न खंडों में विभाजित हिन्दुस्तान पर धीरे-धीरे अंग्रेज़ों ने अपने पैर पसारने शुरू किए और पलासी की लड़ाई (1757) और बक्सर की लड़ाई (1764) तक अंग्रेज़ों ने भारत को अपने अधीन कर लिया था. 

इसके बाद अंग्रेज़ों ने भारत पर अपने ज़ुल्मों का सिलसिला शुरू किया. अपने हित के लिए भारत को अपनी तरह से चलाने लगे. इसके बाद शुरू हुआ भारतीयों का अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ाई का दौर, लेकिन शुरुआती समय में अंग्रेज़ों के खिलाफ़ आंदोलन के लिए नेताओं का अभाव रहा. 

वहीं, भारत के पास कोई बड़ा संगठन भी नहीं था, जो अंग्रेज़ों के सामने खड़ा हो सके. यही वजह थी 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई. अब आज़ादी की मांग करने वाले पढ़े लिखे नेता मौजूद थे. लेकिन, इनके बीच 1915 में एक शख़्स ऐसा दाखिल हुआ, जिसने आज़ादी की लड़ाई की दिशा ही बदल दी. उसका नाम था मोहनदास करमचंद गांधी. पेशे से वक़ील और वकालत विदेश से पढ़कर आए थे. उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ाई में अपना सूट-बूट उतार आजिवन धोती-कुर्ता पहनने का फैसला किया. 

अहिंसा के बल उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ कई आंदोलन चलाए और भारतीय के बीच अपना कद बढ़ाया.गांधी को रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा कहकर संबोधित किया. वहीं, देश के लिए उनके योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया. लेकिन, गांधी से राष्ट्रपति बनने के बीच के सफर में कई विवाद (Mahatma Gandhi controversy in Hindi) उनसे जुड़े रहे, जिनके बारे में हम आपको नीचे क्रमवार बताते हैं.  

आइये, अब विस्तार से पढ़ते हैं (Controversy Related to Mahatma Gandhi) आर्टिकल

1. असहयोग आंदोलन को बीच में रोक देना 

mahatma gandhi
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Controversy Related to Mahatma Gandhi: अंग्रेज़ों के खिलाफ़ 5 सितंबर 1920 को असहयोग आन्दोलन को प्रारंभ किया गया. इस आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए पूरा भारत एक हो गया था. इस आंदोलन ने इंग्लैंड में बैठी ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था. लेकिन,  1922 के चौरा-चौरी कांड की वजह से महात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन में बीच में ही रोकना पड़ा. इसकी वजह से उन्हें विरोध भी झेलना पड़ा था. 

2. भगत सिंह की फांसी को न रुकवाने की कोशिश 

bhagat singh
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Mahatma Gandhi controversy in Hindi: बहुत कम उम्र में ही भगत सिंह आज़ादी की लड़ाई में कूद गए थे. लेकिन, गांधी अहिंसा को मानने वाले थे, जबकि भगत सिंह इसके विपरित. गांधी ने 5 मार्च 1931 को हुए इरविन समझौते में भगत सिंह की फांसी को टालने की शर्त को शामिल नहीं किया था. जबकि पूरे देश सहित कांग्रेस के कुछ सदस्य भगत सिंह की फ़ांसी रुकवाने के पक्ष में थे. भगत सिंह की फांसी अंग्रेज़ों के लिए जीत साबित हुई, लेकिन इस घटना ने महात्मा गांधी पर विवाद का एक काला धब्बा लगा दिया. 

3. गांधी और आंबेडकर विवाद 

Gandhi and Ambedkar
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डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 1932 में चुनाव में आरक्षण के बजाय दलितों को अपना प्रतिनिधि अलग से चुनने (Separate Electorates)का प्रस्ताव रखा था, ताकि व्यवस्था में दलितों की हिस्सेदारी बढ़ सके. वहीं, दूसरी ओर महात्मा गांधी इसके पक्ष में नहीं थे और इसका विरोध अनशन के रूप में किया. गांधी के विरोध की वजह से ही अम्बेडकर पर दवाब बढ़ा और उन्हें अपनी मांग पीछे हटानी पड़ी. 

4. गांधी और सुभाष चंद्र बोस के मध्य विवाद

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Controversy Related to Mahatma Gandhi: महात्मा गांधी का नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच भी विवाद रहा था. 1938 में हरिपुरा अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. अपने कार्यकाल में उन्होंने पार्टी में अच्छा प्रभाव बना लिया था. वहीं, द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से ब्रिटेन परेशानियों में घिरा हुआ था और सुभाष चंद्र बोस इस फायदा उठाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ अपनी जंग और आक्रामक बनाना चाहते थे. लेकिन, गांधी इसके पक्ष में नहीं थे. 

वहींं, जब अगले साल यानी 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष के लिये चुनाव हुए, तो सुभाष चंद्र बोस के सामने गांधी ने पट्टाभि सीतारमैया को खड़ा किया, लेकिन चुनाव में नेताजी की जीत हुई. पट्टाभि की हार को गांधी ने अपनी हार समझा. वहीं, आगे चलकर महात्मा गांधी के अलग रवैये की वजह से नेताजी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.  

5. प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना

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Controversy Related to Mahatma Gandhi: एक बड़ी लड़ाई के बाद जब देश आज़ाद हुआ और बात देश के प्रधानमंत्री को बनाने की आई, तो गांधी ने इसके लिए जवाहरलाल नेहरु को चुना. वहीं,  अधिकतर नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल को इस पद के लिए सबसे उपयुक्त मानते थे.   

6. पाकिस्तान को 55 करोड़ दिलाने के लिए अनशन

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देश के विभाजन के समय देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे. ऐसे समय में महात्मा गांधी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने की मांग रखी. साथ ही इस मांग के लिए सरकार पर दवाब बनाने के लिए अनशन भी रखा. इस बात पर कई लोगों ने गांधी का विरोधी भी किया था.