History of the Treadmill: आजकल सभी स्लिम-ट्रिम बॉडी चाहते हैं. इसके लिए घंटों जिम में पसीना बहाते हैं. ख़ासकर, ट्रेडमिल पर. आपने भी ख़ुद इसका इस्तेमाल किया होगा या फिर लोगों को करते देखा होगा. एक ही जगह पर दौड़ते रहना काफ़ी थका देने वाला प्रोसेस है. मगर फिर भी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. 

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हालांकि, आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस ट्रेडमिल का इस्तेमाल आप पतले होने के लिए करते हैं, उसका आविष्कार जेल में बंद कै़दियों को सज़ा देने के लिए हुआ था.

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जी हां, ये सच है. दो सौ साल पहले, इंग्लैंड में जेल रिहैबलिटेशन डिवाइस के तौर पर ट्रेडमिल का आविष्कार हुआ था. इसके ज़रिए क़ैदियों को टॉर्चर करना और उनसे मेहनत करवाना था. साथ ही, बोनस में अनाज की पिसाई और पानी को पंप भी करवाया जाता था.

History of the Treadmill-

क़ैदियों को सज़ा देने के लिए इस्तेमाल होती थी ट्रेडमिल 

दरअसल, एक मिल मालिक के बेटे सर विलियम क्यूबिट ने 1818 में अनाज को कुचलने के लिए ट्रेडमिल डिज़ाइन किया था. हालांकि, बाद में उन्होंने सुझाव दिया कि इसका इस्तेमाल इंग्लैंड में निष्क्रिय कैदियों को दंडित करने के लिए किया जा सकता है.

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उसके पहले ट्रेडमिल को ‘ट्रेडव्हील्स’ के रूप में जाना जाता था. सबसे पहले इसे लंदन के ब्रिक्सटन जेल में स्थापित किया गया था. इसमें चौड़े पहिये लगे रहते थे. एकसाथ कई क़ैदी इस पर खड़े होकर चलते थे. नीचे की ओर अनाज होता था, जो पिसता रहता था. इससे क़ैदियों को सज़ा भी मिलती रहती थी और अनाज भी पिसता रहता था.

इस मशीन के ज़रिए एकसाथ 24 क़ैदियों को व्यस्त रखा जाता था. गर्मियों में लगातार 10 घंटे और सर्दियों में 7 घंटे तक क़ैदी इस पर चलते थे. इससे उन्हें अनुशासित रखा जाता था. दरअसल, पहले क़ैदियों को जेल में सारी सुविधाएं मिल जाती थीं. उन्हें कुछ काम नहीं करना होता था, तो लोग जानबूझकर अपराध कर जेल आ जाते थे, ताकि उन्हें खाना-पीना मिलता रहे. मगर इस तरह से मेहनत करने के चलते लोग जेल जाने के नाम से डरने लगे. 

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इसके असर ने इसे लोकप्रिय बना दिया. इतिहासकार डेविड एच. शैत के अनुसार, 1842 तक इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड की 200 जेलों में से 109 में ट्रेडमिल लगवाई जा चुकी थीं. हालांकि, जल्द ही इसके ख़तरे भी सामने आने लगे. क़ैदी इस पर गिरकर चोट खा जाते थे. दिल के मरीज़ों की लगातार चलने से मौत हो जाती थी. ऐसे में 1898 में इस पर रोक लगा दी गई. उस वक़्त महज़ 39 ट्रेडमिल जेलों में बची थीं. वहीं, साल 1901 में इनकी संख्या घटकर महज़ 13 रह गई.

हालांकि, उस वक़्त तक ट्रेडमिल का ये कॉन्सेप्ट अमेरिका पहुंच चुका था. साल 1822 में वहां की जेल भी इनका इस्तेमाल करने लगीं. मगर नतीजे वहां भी ब्रिटेन के जैसे ही निकले. बाद में थोड़े-बहुत सुधार के साथ ये प्रक्रिया जारी रही. History of the Treadmill

यातना मशीन बनी फ़िटनेस इक्यूपमेंट

क़ैदियों को लगातार चलाने से उन्हें चोट और दूसरी परेशानियां हो रही थीं. मगर ये भी पाया गया कि कुछ वक़्त तक रोज़ाना इस पर चलने से शरीर फ़िट रहता है. वैसे ही जैसे साइकिल चलाने या स्विमिंग करने से. 1960 के दशक में Dr. Kenneth Cooper सेना में डॉक्टर थे. उन्होंने 1968 में प्रकाशित अपनी क़िताब  Aerobics में ट्रेडमिल एक्सरसाइज़ के फ़ायदों के बारे में बताया. 

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हालांकि, उस वक़्त ये मशीन काफ़ी बड़ी थी. ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे. मगर अमेरिकी मैकेनिकल इंजीनियर विलियम स्टाब ने उस वक़्त इसका हल निकाल लिया. उन्होंने पेसमास्टर 600 नाम से एक घरेलू फ़िटनेस मशीन बनाई. उन्होंने न्यू जर्सी में घरेलू ट्रेडमिल का निर्माण शुरू किया. इसे कोई भी अपने घर के कमरे में इस्तेमाल कर सकता था. 

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उसके बाद से तो ट्रेडमिल बहुत से घरों और जिमों में पहुंच गई. आज लगभग हर जिम में आपको ये मिल जाएगी. आज भी लोग इस पर कभी-कभी चोट खा जाते हैं. मगर ख़ुद को फ़िट रखने के लिए इस बोरिंग मशीन का इस्तेमाल करना नहीं छोड़ते. इसके अलावा, शायद ही उन्होंने कभी सोचा होगा कि जिस ट्रेडमिल का वो ख़ुद को फ़िट रखने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, उसका इतिहास इतना क्रूर है. History of the Treadmill