Datia Palace History: भारत शुरुआत से ही वास्तुकला की रचनाओं को अपने अंदर समेटे है, जिसकी झलक यहां की प्राचीन धरोहरों में साफ़ देखने को मिलती है. मध्य प्रदेश भी हमारे देश का एक ऐसा ही राज्य है, जो आलीशान महलों और क़िलों से भरपूर है. इन इमारतों में उकेरी गई अद्भुत कला की छवि का दीदार करने कई पर्यटक हर साल यहां आते हैं. इन्हीं में से एक दतिया महल (Datia Mahal) है, जो इस राज्य के ऐतिहासिक ज़िले में अपने गौरवशाली अतीत को संजोए क़रीब 400 सालों से अडिग खड़ा है. हैरानी की बात ये है कि इन 400 सालों में ये महल में सिर्फ़ 1 रात के लिए उपयोग किया गया था.
आज हम आपको इसी ऐतिहासिक दतिया महल की कहानी और इतिहास (Datia Palace History) विस्तार से बताएंगे.
Datia Palace History
ये भी पढ़ें: दिल्ली का वो महल जिसमें भटकती है एक रानी की आत्मा, सूरज ढलते ही इस महल में जाना है वर्जित
सलीम ने किया था अपने पिता के खिलाफ़ विद्रोह
कहा जाता है कि ग्वालियर पर सिंधिया के शासन से काफ़ी समय पहले, ये क्षेत्र मुग़ल साम्राज्य के अधीन था. धीरे-धीरे मुग़ल अपने शासन का विस्तार करते जा रहे थे. वहीं, दूसरी तरफ़ अकबर की उम्र धीरे-धीरे ढल रही थी. इसी बीच अकबर की अपने बड़े बेटे सलीम से थोड़ी खिट-पिट चल रही थी. एक समय ऐसा आया, जब सलीम ने अपने पिता के खिलाफ़ विद्रोह किया और एक कोर्ट की स्थापना की, जिसे हम वर्तमान में इलाहाबाद कोर्ट के नाम से जानते हैं. सलीम के द्वारा ऐसा कदम उठाए जाने के बाद, अकबर ने उन्हें मनाने के लिए अपने प्रधानमंत्री अबुल फ़ज़ल को दिल्ली भेजा.
कहा जाता है कि अबुल फ़ज़ल युवराज सलीम को राजगद्दी पर नहीं बिठाना चाहते थे, इसलिए वो इस मौके का फ़ायदा उठाकर सलीम की हत्या करना चाहते थे. सलीम को अबुल फ़ज़ल के इलाहाबाद आने की भनक लग गई. ये सुनकर वो ख़ुद को बुरी से बुरी परिस्थिति में मज़बूती से खड़े रहने के लिए तैयार करने लगे. तभी बीर सिंह देव उनके पास अकबर के वज़ीर को मारने का प्रस्ताव लेकर आए. (Datia Palace History)
बीर सिंह देव और सलीम की दोस्ती
बीर सिंह देव का उस दौरान सियासत में इतना अहम रोल नहीं था. वो महज़ एक ज़मींदार थे, लेकिन सलीम की तरह वो भी शहंशाह की नीतियों के प्रशंसक नहीं थे. उन्होंने अकबर के खिलाफ़ कई विद्रोहों का नेतृत्व भी किया था. ये भी कहा जाता है कि सलीम उनके पास ख़ुद मदद मांगने के लिए पहुंचे थे. बीर सिंह देव ने इस मिशन को जारी रखा और अबुल फ़ज़ल को मार गिराया. इस बात का सबूत सलीम को देने के लिए उन्होंने वजीर के कटे सिर को युवराज के सामने पेश किया था.
जहां एक ओर सलीम उनके इस काम के लिए एहसानमंद थे, वहीं इस हरकत से वो मुग़ल सम्राट अकबर की नज़रों में आ गए थे. अकबर उनके इस कारनामे से गुस्से से खौले हुए थे और किसी भी हालत में बीर सिंह देव को धर दबोचना चाहते थे. वहीं, सलीम अपने ख़ास मित्र बन चुके बीर सिंह देव को राजमहल के ख़तरों से बचने के लिए अहम जानकारी देकर बचा रहे थे. बीर सिंह ने अपनी ज़िंदगी के कई साल अकबर के सिपाहियों के साथ लुकाछिपी खेलने में गुज़ारे.
ये भी पढ़ें: ब्रिटेन में नीलाम होने जा रहा है सिखों के अंतिम राजा का महल, जानिए उससे जुड़ी 9 दिलचस्प बातें
जब सलीम ने अपने पुराने मित्र का एहसान किया चुकता
इस बीच अकबर की मृत्यु हो गई. तब तक सलीम ने अपने पिता से सुलह कर ली थी और उनके निधन के तुरंत बाद ही वो युवराज से राजा बन गए. इस दौरान सलीम ने अपना नाम बदलकर जहांगीर रख लिया था. सिंहासन पर बैठने के बाद उन्होंने बीर सिंह देव का एहसान चुकता करते हुए उन्हें ओरछा के सिंहासन पर बैठा दिया. सालों बाद जहांगीर ने अपने पुराने मित्र से मिलने की घोषणा की और अपने साम्राज्य में 52 इमारतों के निर्माण के लिए हरी झंडी दे दी. इसमें से एक जगह दतिया थी, जिसे उन्होंने बीर सिंह देव को उपहार के रूप में दिया था.
दतिया महल को ‘बीर सिंह देव महल’ और ‘सतखंडा महल’ के नाम से भी जाना जाता है. प्लान के मुताबिक शहंशाह महल में आए और ओरछा जाने से पहले एक रात उन्होंने इस महल में गुज़ारी. हालांकि, उपहार होने के चलते न ही बीर सिंह देव और न ही उनकी फ़ैमिली ने इसे कभी यूज़ किया. यही वजह है कि 400 सालों तक दतिया पैलेस वीरान पड़ा है और इसे किसी ने भी आज तक यूज़ नहीं किया है.
काफ़ी रोचक है इसकी कहानी.