Lahore Central Jail: जब भी भारत मां को आज़ाद कराने की बात की जाएगी तो शहीद भगत सिंह, शिवराम हरि राजगुरु उर्फ़ राजगुरू और सुखदेव की बात ज़रूर होगी क्योंकि इन तीनों ने बहुत कम उम्र में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, उनके अत्याचारों को सहा, लेकिन कभी अपना सिर उनके आगे नहीं झुकाया. भारत मां के लिए लड़ते-लड़ते इन तीनों ने अपने प्राण उन्हीं पर न्योछावर कर दिए. जैसा कि हम सब जानते हैं कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर लाहौर सेंट्रल जेल (Lahore Central Jail) में फांसी दी गई थी.
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साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद ये जेल पाकिस्तान की सीमा के अंदर चली गई. चलिए जानते हैं, कि जहां इन महान, निडर और निर्भीक स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाया गया था, आज उस जगह की क्या हालत है? आज उस जगह पर और क्या-क्या बन गया है?
पत्रकार और लेखक कुलदीप सिंह नैयर ने अपनी किताब The Martyr Bhagat Singh Experiments In Revolution में इस बात का ज़िक्र किया है कि अब वो जगह टूट चुकी है, जिन कोठरियों में तीनों रहते थे उनकी दीवारें मैदान का रूप ले चुकी हैं, क्योंकि वहां की व्यवस्था भगत सिंह की कोई भी निशानी नहीं रखना चाहती.
इसके अलावा, अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार,
साल 1961 में लाहौर सेंट्रल जेल को नेस्तनाबूद कर दिया गया था, उसकी जगह पर यहां और उसकी जगह पर एक कॉलोनी बना दी गई है जहां लोग रहते हैं. इसके अलावा, जिस जगह पर तीनों को फांसी पर लटकाया गया था वहां पर शादमान चौक बना दी गई है.
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कहते हैं कि, जब इस जगह का नाम शादमान चौक रखा गया तो पाकिस्तान के कई सामाजिक और राजनीतिक संगठन के विरोध करने के बाद इसका नाम शादमान चौक से बदलकर भगतसिंह चौराहा रखा गया. इसके अलावा, भगत सिंह के फ़ैसलाबाद के लयालपुर ज़िले में स्थित घर को म्यूज़ियम बनाने की भी मांग ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट की ओर से की गई.
आपको बता दें, इतने सालों के बाद आज भी हर 23 मार्च को यहां कार्यक्रम का आयोजन होता है और अलग-अलग समाज के लोग आते हैं, जो यहां आकार उन्हें प्रणाम करते हैं और सजदा करते हैं.