भारत की आज़ादी में बहुत लोगों ने अपना बलिदान दिया, इनमें से कुछ को हम जानते हैं और कुछ को भुला बैठे हैं. आज़ादी के ऐसे ही भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानी हैं गांधी पोखरेल(Gandhi Pokhrel). इन्होंने देश के पूर्वी हिस्से सिक्किम में स्वतंत्रता की अलख लोगों के बीच जगाई थी. यही नहीं इन्हें वहां पर स्वदेशी की शुरुआत करने के लिए भी याद किया जाता है. चलिए आज आपको देश की आज़ादी में इनके अभूतपूर्व योगदान के बारे में भी बता देते हैं.

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त्रिलोचन पोखरेल था असली नाम

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गांधी पोखरेल का असली नाम त्रिलोचन पोखरेल था. उनका जन्म पूर्वी सिक्किम के पाकयोंग में भद्रलाल और जानुका पोखरेल के यहां हुआ था. होश संभालते ही उनके जीवन पर गांधी जी का बहुत प्रभाव पड़ा. वो महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi) से इतने प्रभावित हुए कि उनके हर आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने लगे.

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गांधी जी के साथ लिया कई आंदोलनों में हिस्सा

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वो गांधी जी के साथ साबरमती आश्रम गुजरात और सर्वोदय आश्रम बिहार में भी रहे थे. इस दौरान उन्होंने गांधी जी की सीख और शिक्षा को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया. वो महात्मा गांधी की सेवा में जुटे रहते और उनके हर कार्य में सहयोग करते. त्रिलोचन पोखरेल ने उनके साथ ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’, ‘असहयोग आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में हिस्सा लिया था. वो गांधी जी की ही तरह खादी पहनते और चरखे पर रूई कातते थे. 

प्यार से लोग गांधी पोखरेल कहकर बुलाते थे   

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सिक्किम में वो किसानों के बीच काफ़ी लोकप्रिय थे. वो उन्हें स्वदेशी अपनाने और अहिंसात्मक रूप से देश की आज़ादी में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते थे. महात्मा गांधी जैसी वेशभूषा और साधारण जीवन बिताने के कारण उन्हें प्यार से लोग गांधी पोखरेल कहकर बुलाते थे. कहते हैं कि वो लोकल बाज़ार में पहुंच जाते थे और वहीं बैठकर चरखे पर सूत कातते थे. वो गांव के लोगों को वंदे मातरम कहकर अभिवादन करते थे. इसलिए लोग उन्हें बंदे पोखरेल भी कहते थे. 

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गांधी पोखरेल चरखा चलाते समय लोगों को गांव में स्वदेशी पहनने और खादी उद्योग-फ़ैक्ट्रियां लगाने के लिए प्रेरित करते थे. गांधी जी की तरह उनका भी मानना था कि इससे गांव के ग़रीब लोगों को रोज़गार मिलेगा और उनकी ग़रीबी दूर होगी. ‘स्वदेशी आंदोलन’ से प्रभावित होकर उन्होंने चरखा चलाना शुरू किया था. कहते हैं आज़ादी के बाद 1957 में नेहरू जी से सिक्किम आए थे. तब वो लोगों से उनके बारे में ख़ूब बातें किया करते थे, वो स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का गुणगान करते थे. संभवत: ये उनके गांव में बिताए आख़िरी क्षण थे. 

मरणोपरांत किया गया सम्मानित  

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इसके बाद वो भारत भ्रमण पर निकल गए थे. वहां से पोखरेल जी के जाने के बाद उनका परिवार असम चला आया था. उन्होंने 1969 में पूर्णिया बिहार में अंतिम सांस ली थी. उनकी मृत्यु के 6 साल बाद सिक्किम भारत में शामिल हुआ था. सिक्किम सरकार ने 2018 में मरणोपरांत एल.डी. काजी(राज्य के पहले मुख्यमंत्री) पुरस्कार से सम्मानित किया था. उन्हें ये पुरस्कार राज्य के 43वें स्थापना दिवस के समारोह में दिया गया था. ये सम्मान उनकी पोती ने ग्रहण किया था.

स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसात्मक रूप से हिस्सा लेने वाले इस भारत मां के इस लाल को हमारा सलाम.