भारतीयों के लिए डाबर कोई नया नाम नही हैं. सालों से डाबर का च्यवनप्राश व डाबर हनी लोग खाते आए हैं. इसकी लोकप्रियता इस बात से जानी जा सकती है कि कॉम्पिटिशन के दौर में भी ये अधिकांश भारतीयों का एक भरोसेमंद ब्रांड बना हुआ है. लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि करोड़ों की इस कंपनी की शुरुआत एक छोटे आयुर्वेदिक क्लीनिक से हुई थी. इसकी स्थापना करने वाले एक भारतीय वैद्य थे. आइये, इस लेख में जानते हैं डाबर ब्रांड की शुरुआती कहानी (History of Dabur company).
लेख में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं History of Dabur company.
डाबर की प्रारंभिक कहानी
भारत की आज़ादी से पहले की कई भारतीय कंपनियां आज भी अपने अस्तित्व के साथ बरक़रार हैं. इनमें डाबर का नाम भी शामिल है. जानकर हैरानी होगी कि डाबर की स्थापना एक भारतीय वैद्य के हाथों 1884 में की गई थी. ये वो दौर था जब मलेरिया और हैज़ा जैसी गंभीर बीमारियों से लोग पीड़ित थे. वो माहौल आज के करोना जैसा ही था.
कैसे पड़ा डाबर नाम?
बहुतों के मन में ये सवाल आ सकता है कि आख़िर कंपनी का नाम डाबर ही क्यों रखा गया. दरअसल, कंपनी के नाम डाबर में ‘डा’ डॉक्टर शब्द से लिया गया है और ‘बर’ बर्मन से. कहते हैं 1896 तक कंपनी के उत्पाद इतने लोकप्रिय हो गए थे कि डॉ. बर्मन को एक अलग फ़ैक्ट्री बनानी पड़ी थी.
डॉ. बर्मन के निधन के बाद डाबर
डाबर कंपनी के संस्थापक डॉ. बर्मन 1907 में इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए. इसके बाद कंपनी की बागडौर उनके पुत्र सी.एल बर्मन के कंधों पर आ गई थी. अपने कड़ी मेहनत से सी.एल बर्मन ने अपने पिता की कंपनी को और मजबूत करने का काम किया. उन्होंने डाबर की रिसर्च लैब खोली और उत्पादों का विस्तार किया.
ऊंचाइयों तक पहुंचा डाबर
सी.एल बर्मन के तहत कंपनी आसमान की ऊंचाइयां छू रही थी. 1972 में दिल्ली के साहिबाबाद में एक विशाल फ़ैक्ट्री का निर्माण किया गया और साथ ही रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर बनाया गया. कहते हैं कि कंपनी ने इतना प्रॉफ़िट हासिल कर लिया था कि कंपनी को 1994 में अपने शेयर लॉन्च करने पड़े. भरोसेमंद कंपनी होने की वजह से डाबर का IPO यानी Initial public offering 21 गुणा ज़्यादा सब्सक्राइब किया गया था.