Kalinjar Durg: हमारे देश में इतिहास में कई क़िलों की भव्यता, संस्कृति और बनावट का वर्णन किया गया है. इन ऐतिहासिक क़िलों पर कई शासकों की नज़र रही है. ऐसा ही एक रहस्यमयी क़िला है, बुंदेलखंड के शासकों की शान रहा कालिंजर का दुर्ग. इस दुर्ग पर शासकों के साथ-साथ दुनियाभर के इतिहासकारों और पुरातत्वविदों की भी दिलचस्पी रही है.
इस क़िले की भव्यता के चलते कई शासकों ने इसे जीतने की कोशिश की, लेकिन नाकामी हाथ लगी. उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद की सीमा में आने वाला ये क़िला घने जंगलों के बीच विंध्य पर्वत की 900 फ़ुट ऊंची पहाड़ी पर बना है, जिसकी दीवारें 5 मीटर मोटी हैं और उनकी उंचाई 108 फ़ुट है. कालिंजर दुर्ग का वर्णन बौद्ध साहित्य में भी मिलता है.
Kalinjar Durg
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आइए, जानते हैं कि कालिंजर दुर्ग में ऐसी क्या बता थी, जिसके चलते सभी शासकों की नज़र इस क़िले पर था.
ग्रेट वॉल ऑफ़ एलेग्ज़ेंडर (Gates of Alexander) के रूप में विख़्यात इस क़िले को महमूद ग़ज़नवी, क़ुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं से लेकर शेर शाह सूरी तक कई मुग़ल शासकों ने भेदना चाहा, लेकिन इसकी मज़बूती के चलते वो ऐसा नहीं कर पाए. इन तीनों के अलावा, इसे जीतने के लिए सम्राट पृथ्वीराज चौहान से लेकर पेशवा बाजीराव तक ने अपना पूरा बल लगा दिया था, लेकिन उन्हें भी सफलता हाथ नहीं लगी थी. इसकी गिनती सबसे मज़बूत किलों में की जाती थी.
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इस क़िले को जीतना शूरवीरता की पहचान थी, लेकिन ये क़िला इतनी ऊंचाई पर बना था कि, इसकी चढ़ाई करना बहुत मुश्किल था. इसलिए शुत्रु यहां तक नहीं पहुंच पाते थे. साथ ही, ऊंचाईं पर होने के चलते इसे तोप से भी उड़ाना लगभग नामुमकिन था.
इतना ही नहीं, बुंदेलखंड को कालिंजर दुर्ग के अलावा पानी की कमी के लिए भी जाना जाता है. कहते हैं, कि एक बार बुंदेलखंड में सालों तक सूखा पड़ा रहा था, लेकिन कालिंजर दुर्ग से तब भी पानी रिस रहा था. इस क़िले को लेकर सबमें बड़ा आश्चर्य है कि पानी की कमी होते हुए भी इससे पानी कैसे और कहा से रिसता रहता है. इस वजह से भी कई शासकों ने इस पर कब्ज़ा करने का सपना देखा.
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कालिंजर दुर्ग की बनावट की बात करें तो इसमें 7 प्रवेश द्वार हैं. इसमें गुप्त स्थापत्य शैली, चंदेल शैली, प्रतिहार शैली, पंचायतन नागर शैली के नमूने दिखते हैं. इस क़िले को भगवान शिव का निवास स्थान मानते हैं इसलिए यहां पर सिव जी का नीलकंठ मंदिर है. इस दुर्ग में इतनी ख़ासियत होने के चलते ही इसे कई शासकों ने जीतना चाहा.
9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच 400 सालों तक इस क़िले पर चंदेल शासकों का राज था. इन्होंने इसे अपनी राजधानी तक बना लिया था. चंदेल शासन के दौरान शेर शाह सूरी ने इस क़िले को जीतना चाहा, लेकिन मारा गया. इसके बाद, हुमायूं ने इसे जीतने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहा.
हुमायूं के बाद 1569 में अक़बर ने इसे जीत कर बीरबल को तोहफ़े में दे दिया फिर भी शासकों ने इसे जीतने की लालसा कम नहीं की. आपको बता दें, मशहूर चीनी शोधार्थी ह्वेन त्सांग (Xuanzang) ने 7वीं शताब्दी में लिखे अपने दुर्लभ संस्मरण में कालिंजर दुर्ग के बारे में कई जानकारियां दी हैं.