Parliament History: संसद भवन नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से 750 मीटर की दूरी पर, संसद मार्ग पर स्थित है, जो सेंट्रल विस्टा को पार करता है और इंडिया गेट, युद्ध स्मारक, प्रधानमन्त्री कार्यालय और निवास, मंत्री भवन और भारत सरकार की अन्य प्रशासनिक इकाइयों से घिरा हुआ है. इसके सदन लोक सभा और राज्य सभा हैं जो भारत की द्विसदनीय संसद में क्रमशः निचले और उच्च सदनों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
Parliament History
मगर एक वक़्त था जब संसद भवन नहीं था. अगर संसद भवन नहीं था तो सांसद कहां बैठते थे और बैठकें कहां होती थीं. आइए जानते हैं कि, पहली बैठक कहां हुई और संसद भवन की जगह कौन से सदन में ये बैठकें होती थीं?
ये भी पढ़ें: जानिए कितने पढ़े-लिखे थे भारत के ये 15 राष्ट्रपति, शंकर दयाल शर्मा के पास थीं सबसे ज़्यादा डिग्री
आज़ादी से पहले की बात है जब ब्रिटिश सरकार का देश पर राज था. इस दौर में लोकसभा नहीं होती थी इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल हुआ करती थी और इन्हीं को सारे ज़रूरी और बड़े फ़ैसले लेने का अधिकार था. उसी दौरान 1911 के क़रीब देश की राजधानी कोलकाता से बदलकर दिल्ली की गई थी और एक नए शहर को बसाया जा रहा था. नया शहर तो नई काउंसिल इसी के चलते 1919 में नई काउंसिल का गठन हुआ. इस काउंसिल में सदस्यों की संख्या 145 हो चुकी थी.
1919 में जब नई काउंसिल का गठन हुआ था. उस वक़्त केंद्रीय असेंबली की बैठक होनी थी मगर इनके पास कोई जगह नहीं था. ऐसे में सदस्यों की सहमति और तत्कालीन वायसराय की अनुमति से पहली बैठक वाइसरीगल लॉज में हुई, जो उस समय वायसराय हाउस था. राजधानी भी दिल्ली से कोलकाता हो गई थी तो सारे प्रशासनिक बैठकों और फ़ैसलों का केंद्र दिल्ली ही हो गया था. ऐसे में इसी बैठक में केंद्रीय असेंबली के सदस्यों ने नए प्रशासनिक भवन का प्रस्ताव रखा. इसी बैठक के बाद राष्ट्रपति भवन, संसद भवन सहित अन्य प्रशासनिक इमारतें बनना शुरू हुईं.
ये ऐसा मुद्दा था जिसने अंग्रेज़ों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली काउंसिल के लिए भी एक जगह होनी चाहिए जहां उनके सदस्य बैठ सकें और बैठकें हो सकें. तभी दिल्ली में प्रशासनिक भवन बनाने का प्रस्ताव रखा गया जिसका नक्शा ब्रिटिश आर्किटेक्ट एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर ने तैयार किया. फिर इसका 1921 में शिलान्यास ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने किया जो 1927 के बीच बनकर तैयार हुई. नई संसद को जनवरी 1927 में शाही विधान परिषद की सीट के रूप में खोला गया था. इसका उद्घाटन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था. इस तरह से देश को नई केंद्रीय असेंबली मिली जिसे आज संसद भवन के नाम से जाना जाता है.
वाइसरीगल लॉज 1902 में बनी थी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) का मुख्य हिस्सा है. जब लुटियंस दिल्ली की सरंचना कर रहे थे उसे बसा रहे थे उस दौरान वायसराय यहीं रहते थे और यही सत्ता का मुख्य केंद्र भी था. इसी में कुलपति, प्रो. वाइस चांसलर और रजिस्ट्रार के ऑफ़िस हैं. चारों और पेड़ों से घिरा होने के कारण ये काफ़ी सुंदर लगता हैं. इसमें एक मंजिला लॉज और अन्य संरचनाएं भी हैं.
ये भी पढ़ें: भारत का वो इकलौता राज्य, जहां के मूल निवासियों को नहीं चुकाना पड़ता है Income Tax
1933 में रायसीना हिल्स को वायसराय हाउस बना दिया गया. इसके बाद वायसरीगल लॉज को दिल्ली विश्वविद्यालय के सौंप दी गई.
इसकी संरचना बेहद ही ख़ास तरीक़े से की गई हैं. इसमें चारों ओर गार्डन और गलियारा हैं. सभी कमरों के आगे वेटिंग रूम बनाया गया है. जब केंद्रीय असेंबली के तौर पर इसका इस्तेमाल होता था तब इन्हीं कमरों में बैठकें होती थीं मगर अब यहां विश्वविद्यालय की अकैडमिक और कार्यकारी परिषद की बैठकें होती हैं.