How Kings Used Ice Cubes before Ice Machine Came to India : आजकल ज़्यादातर हर चीज़ मशीन पर निर्भर है. वो समय दूर नहीं, जब हर चीज़ और इन्सान की हर एक्टिविटी मशीन पर ही डिपेंड हो जाएगी. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब हमारे जीवन का हिस्सा मशीनें नहीं थीं, तब इंसानों की ज़िन्दगी कैसी थी? इसमें सबसे ज़्यादा दिलचस्प कहानी बर्फ़ की है.

क्योंकि पुराने समय में ना ही मशीनें थीं और ना ही लंबे समय तक बर्फ़ को स्टोर करने का साधन. तो उस समय बर्फ़ को कैसे और कहां से लाया जाता होगा. भारत में बर्फ़ कैसे आई. प्राचीन भारत में राजा और महाराजा इसको कैसे मंगवाते थे. आइए आपको इसके बारे में बताते हैं.

मुगलों के समय में कैसे लाई जाती थी बर्फ़?

मुग़लों के समय में हिमालय से बर्फ़ को आगरा तक लाया जाता था. इसको जूट से ढंककर पत्तों से लपेटकर लाया जाता था. इसके लिए हाथी, घोड़ों और सिपाहियों की मदद ली जाती थी. क्योंकि आगरा हिमालय से 500 मील दूर है. साथ ही बर्फ़ को पिघलने से रोकने के लिए उस पर सॉल्टपीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) छिड़का जाता था. हुमायूं ने 1500 में कश्मीर से बर्फ को तोड़कर उसकी सिल्लियों का आयात करना शुरू किया. फिर मुग़ल राजा फलों के रस को बर्फ से लदे पहाड़ों की ओर भेजते थे. वहां वो रसों को जमाकर शर्बत बनाते थे. फिर गर्मियों में इसे पीते थे.

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अमेरिका से दिल्ली आई थी बर्फ़

हालांकि, आगरा से हिमालय की दूरी इतनी ज़्यादा थी कि ये बर्फ़ की सिल्ली एक बिल्कुल छोटी सी रह जाती थी. जब 18वीं शताब्दी में अंग्रेज़ भारत आए, तो वो यहां की गर्मी से हैरान-परेशान हो गए. लंबा वक्त बीतने के बाद बोसोनियन व्यापारी फ्रेडरिक ट्यूडर ने इसका हल निकाला. 1833 में उन्होंने अपना पहला बर्फ से लदा जहाज कलकत्ता भेजा. बर्फ के लिए स्वयं तत्कालीन गवर्नर जरनल ने जहाज के कप्तान की शुक्रिया अदा किया.

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महीनों करते थे स्टोर

हालांकि, अंग्रेज़ों को हिमालय से बर्फ़ मंगवाने का तरीका बहुत ही महंगा लगा. उन्होंने दिल्ली में ही बर्फ जमाने का प्रबंध कर लिया. उन्होंने दिल्ली गेट से तुर्कमान गेट तक खंदकें खोदीं और उनमें नमक मिला पानी भर कर टाट और भूसे की मदद से सर्दियों में बर्फ की पपड़ी तैयार कर दी. इन्हें विशेष गड्ढों से गर्मियों तक सुरक्षित रखा जाता था.

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