Independent India’s First Voter: आज़ाद भारत के पहले मतदाता श्याम सरण नेगी (Shyam Saran Negi) ने 2 नवंबर, 2022 को हिमाचल प्रदेश की 14वीं विधानसभा के लिए बैलेट पेपर से मतदान किया था. इसके 3 दिन बाद 5 नवंबर, 2022 को उनका निधन हो गया. 34वीं बार मतदान करने वाले श्याम सरण नेगी के लिए बैलेट पेपर (Ballot Paper) से मतदान करना पहला और आख़िरी मौका साबित हुआ. वो हमेशा की तरह ‘मतदान केंद्र’ जाकर मतदान करना चाहते थे, लेकिन स्वास्थ्य ठीक न होने के चलते उन्हें घर से ही वोट डालना पड़ा था.

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कौन थे श्याम सरण नेगी?

श्याम सरण नेगी (Shyam Saran Negi) का जन्म 1917 में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले के कल्पा में हुआ था. वो सन 1951 से लेकर साल 2022 तक 16 बार लोकसभा चुनाव में मतदान कर चुके थे. नेगी ने 1951 से हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदान किया था. ऐसा करने वाले वो भारत के एकमात्र शख़्स थे. साल 2014 से वो हिमाचल प्रदेश के ‘चुनाव आइकन’ भी थे.

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कल्पा से की थी 5वीं तक पढ़ाई

श्याम शरण नेगी (Shyam Saran Negi) ने 10 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू किया था और 5वीं तक की पढ़ाई उन्होंने किन्नौर ज़िले के कल्पा में ही की. इसके बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए रामपुर चले गए थे. कल्पा से रामपुर जाने के लिए पैदल 3 दिन लगते थे. 9वीं कक्षा तक की पढ़ाई रामपुर से ही की. लेकिन उम्र अधिक होने की वजह से उन्हें 10वीं कक्षा में प्रवेश नहीं मिला. इसके बाद सन 1940 से 1946 तक नेगी ने वन विभाग में वन गार्ड की नौकरी की. जबकि बाद में शिक्षा विभाग में चले गए और कल्पा लोअर मिडल स्कूल में अध्यापक बन गये.

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कैसे बने देश के पहले मतदाता?

भारत में फ़रवरी 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, लेकिन हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में भारी हिमपात के चलते 5 महीने पहले सितंबर 1951 में ही चुनाव हो गए थे. आज़ाद भारत के पहले चुनाव के समय वोट डालने को लेकर किन्नौरवासी काफ़ी उत्साहित थे. श्याम शरण नेगी तब किन्नौर के मूरंग स्कूल में बतौर अध्यापक कार्यरत थे. ऐसे में उनकी चुनाव ड्यूटी ‘शौंगठोंग से मूरंग’ इलाक़े तक थी. जबकि उन्हें वोट कल्पा में डालना था.

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श्याम शरण नेगी (Shyam Saran Negi) भी वोट डालने के लिए बेहद उत्साहित थे. इसलिए अपने इलाक़े के चुनाव अधिकारी से वोट डालने की इजाजत मांगकर वो कल्पा पहुंच गए. सुबह 6:15 बजे मतदान ड्यूटी पर पोलिंग टीम पहुंची. उन्होंने पोलिंग टीम से जल्दी मतदान करवाने का निवेदन किया. इस पर पोलिंग टीम ने रजिस्टर खोलकर उन्हें पर्ची थमा दी. ऐसे में मतदान करते समय उनका नाम देश के पहले मतदाता के तौर पर दर्ज हुआ. वोट डालने के बाद वो अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. चुनाव आयोग को देश के पहले वोटर का नाम खोजने में कड़ी मशक्क़त करनी पड़ी थी.

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बता दें कि पहले के ज़माने में 7 बजे से वोट डालने की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी. उस दौर में मीडिया इतना सक्रिय नहीं था इसलिए चुनाव की सूचना आकाशवाणी के माध्यम से रेडियो से ही मिलती थी.

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