Interesting Facts About Mughal Empire: मुग़ल काल में कई राजा-महाराजा और शासक हुए, जिन्होंने अपने पराक्रम से दुनिया को जीतना चाहा. मुग़ल काल में दिल्ली में इस्लामी-तुर्की मंगोलियों का साम्राज्य था. इसकी शुरूआत 1526 ई. से हुई और 19वीं सदी तक इसका पतन हो गया. मगर 16वीं शताब्दी के मध्य और 17वीं शताब्दी के अंत के बीच मुग़लों का शासन प्रबल था. उस काल की सभी व्यवस्थाएं अलग थी, सज़ा देने और फ़ैसला लेने के नियम-क़ानून अलग थे. रानी, महारानी, सेविका या फिर मनसबदार सबके अधिकार और काम होते थे.

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अब आप सोच रहे होंगे कि मनसबदार कौन होते हैं क्योंकि ये शब्द नया है, इनका काम और सैलेरी व्यवस्था भी बिलकुल अलग थी. चलिए जानते हैं, कि मनसबदार का काम और सैलेरी क्या थी?

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दरअसल, मनसबदारी व्यवस्था की शुरुआत अक़बर ने की थी. इस प्रणाली का सीधा संबंध मुग़ल साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था से था. मनसबदार का अर्थ एक रैंक या एक पद से लगाया जाता था. हालांकि, इस प्रणाली की उत्पत्ति एशियाई थी, लेकिन भारत के उत्तरी क्षेत्र में इसे सबसे पहले बाबर ने लागू किया था, मगर मुग़ल सम्राट अक़बर ने इसे मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था के नागरिक और सैन्य विभाग दोनों क्षेत्रों में लागू किया था.

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मनसबदारी व्यवस्था इसलिए भी चलन में आई क्योंकि जैसे-जैसे साम्राज्य में अलग अलग जगहों का विलय हुआ तो सरदार और तुर्की के अलावा ईरानियों, भारतीय मुसलमानों, अफ़ग़ानों, राजपूतों, मराठों और अन्य समूहों ने भी शामिल होना शुरू कर दिया और जो नौकर इनकी सेवा के लिए आते थे वो मनसबदार कहलाते थे.

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मुगलों द्वारा चलाई गई इस व्यवस्था में मनसबदारों का वेतन जात के आधार पर निर्धारित किया जाता था, जिस जात के मनसबदारों की संख्या जितनी अधिक होती थी, दरबार में उनकी जगह उतनी बढ़ जाती थी और वेतन भी उतना ही ज़्यादा दिया जाता था. इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया था. पहले थे 500 जात के नीचे पद वाले, जिन्हें सिर्फ़ मनसबदार कहा जाता था. दूसरे 500 से ऊपर लेकिन 2500 से नीचे थे, जिन्हें अमीर की श्रेणी में रखा गया था. तीसरे 2500 जात या जो उससे ऊपर के पद पर थे उन्हें अमीर-ए-उम्दा या अमीर-ए-आज़म या उमरा कहते थे. मनसबदार, मुग़ल शासन प्रणाली के काफ़ी महत्वपूर्ण स्तंभ थे. इसके अलावा, सबसे छोटे मनसबदार को 10 जात का मनसब दिया जाता था.

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धनराशि के अलावा वेतन के तौर पर प्रत्येक मनसबदार को उसकी सेवाओं के बदले कुछ जागीर भी दी जाती थी, जिससे उसे कई प्रकार के कर वसूलने का अधिकार मिल जाता था. उस जागीर से जो भी कर मिलता था उससे मनसबदार अपना वेतन लेकर बाकी बची हुई राशि को मुग़ल खज़ाने में जमा कर देता था. इतना ही नहीं, अपने घुड़सवारों को भी जागीर से मिलने वाली राशि से ही देना होता था. नकद मिलने वाले घुड़सवार को नकदी घुड़सवार और जागीर मिलने वाले घुड़सवार को जागीरदार घुड़सवार कहते थे. इन मनसबदारों को ज़रूरत के हिसाब से नागरिक प्रशासन से सैन्य विभाग और सैन्य विभाग से नागरिक प्रशासन में भेज दिया जाता था.

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ग़ौरतलब है कि, मनसबदार को जो जागीर दी जाती थी वो उनमें नहीं रहते ते, वो कहीं और रहकर काम करते थे. उनकी जागीर पर कर वसूलने का काम मनसबदारों के नौकर करते थे. अकबर के शासनकाल में इन कर वसूलने वालों के राजस्व का ध्यान रखा जाता ता ताकि इनका राजस्व मनसबदार के वेतन के बराबर ही रहे.