भारत में आप अगर किसी शख़्स को मार्किट जाकर ‘वनस्पति घी’ लेकर आने को कहेंगे तो आज भी 80% भारतीयों की पहली पसंद डालडा (Dalda) ही होगा. इस बात से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आज़ादी से पहले के इस ब्रांड की मार्केट वैल्यू आज भी उतनी ही है, जीतनी पहले थी. भारत में आज भी लोगों को भले ही ये नहीं मालूम होगा कि ‘डालडा’ कौन सी कंपनी का प्रोडक्ट है, लेकिन इसे लोग आज भी उसके ब्रांड नेम से जानते हैं.
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चलिए आज इसके असाधारण इतिहास और पतन की कहानी बभी जान लेते हैं-
भारत में ‘वनस्पति घी’ के सबसे मशहूर ब्रांड डालडा (Dalda) की शुरुआत सन 1937 में हिंदुस्तान यूनिलीवर Hindustan Unilever) ने की थी. पिछले 90 सालों से ‘डालडा’ भारत समेत कई दक्षिण एशियाई देशों में बड़े पैमाने पर लोकप्रिय है. हालांकि, भारत में अब इसकी बिक्री कम होती हो, लेकिन पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार समेत कई अन्य देशों में ये आज भी काफ़ी मशहूर है.
कैसे हुई थी ‘डालडा’ की शुरुआत?
इसका इतिहास हमारे देश की आज़ादी से भी पुराना है. सन 1930 में नीदरलैंड की एक कंपनी ने भारत में अपने ‘वनस्पति घी’ के ब्रांड ‘डाडा’ की शुरुआत की थी. ये एक ‘हाइड्रोजेनेटेड वेजिटेबल ऑयल’ था. इस दौरान ब्रिटिश कंपनी हिंदुस्तान लीवर (हिंदुस्तान यूनिलीवर) ने नीदरलैंड की इस कंपनी के साथ मिलकर भारत में ‘वनस्पती’ घी बनाने की बनाने की योजना बनाई, लेकिन हिंदुस्तान लीवर को इसका ‘डाडा’ ठीक नहीं लग रहा था. इसलिए उसने इसके नाम में ‘ल’ शब्द जोड़कर इसे ‘डालडा’ बना दिया. इसके बाद सन 1937 में यूनिलीवर ने भारत में ‘डालडा’ की शुरुआत की.
मार्केटिंग का नया तरीका अपनाया
हिंदुस्तान लीवर (हिंदुस्तान यूनिलीवर) ने ‘डालडा’ को ‘शुद्ध देशी घी’ के सस्ते विकल्प के तौर पर मार्किट में लॉन्च किया था. इसके कई आकर्षक विज्ञापन भी बनाये गए थे. इस दौरान ऐसे विज्ञापन तैयार करवाये गये जिसमें ये दिखाई दे कि पूरा परिवार साथ में ‘डालडा’ से बने भोजन को कर रहा है और ये उनके लिए बेहद फ़ायदेमंद भी है. इस तरह के पारिवारिक विज्ञापनों को लोगों ने काफ़ी पसंद किया और धीरे-धीरे ‘डालडा’ भारत में मशहूर होने लगा.
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इस दौरान बेहद कम समय में ‘डालडा’ भारत में काफ़ी मशहूर बन गया. सस्ता होने की वजह से ‘लोअर मिडिल क्लास’ और ‘मिडिल क्लास’ भारतीय इसे पसंद करने लगे. इस दौरान भारत में हर जगह केवल ‘डालडा’ ही ‘डालडा’ नज़र आने लगा. हालंकि, उस वक्त इसे लेकर विरोध भी हुआ था और ये मामला संसद तक पहुंच गया था. इस दौरान कंपनी को ये दलील देनी पड़ी थी कि वो अपने इस ब्रांड के ज़रिए देश में हज़ारों युवाओं को रोज़गार दे रही है.
कैसे हुआ ‘डालडा’ का पतन
90 के दशक तक ‘डालडा’ भारत का नंबर वन ब्रांड बन चुका था. मार्किट में इसकी अपनी एक अलग पहचान थी. लेकिन 90 के दशक के अंत तक इसका व्यवसाय सिकुड़ने लगा. क्योंकि अन्य भारतीय कंपनियां भी ‘वनस्पति घी’ का विकल्प लेकर मार्केट में आ चुकी थीं. इस दौरान कुछ कंपनियों ने अफ़वाह फैलाई की ‘डालडा’ द्वारा ‘वनस्पति घी’ में चर्बी मिलाई जाती है. हालंकि, ये अफ़वाह मात्र ही रही.
‘रिफ़ाइंड ऑइल’ बना ‘डालडा’ का विकल्प
21वीं सदी की शुरुआत के साथ ही कई कंपनियों ने ‘वनस्पति घी’ के विकल्प के तौर पर ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ की शुरुआत कर दी. इस दौरान मार्केट में भारी मात्रा में मूंगफली, सूरजमुखी, तिल, सोयाबीन आदि के ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ आ गए जो उस वक़्त ‘डालडा’ की तुलना में सस्ते थे. इस दौरान ‘डालडा’ की विरोधी कंपनियों ने ऐसे विज्ञापन बनवाये जिसमें दिखाया गया कि ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ की तुलना में ‘डालडा’ सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह है.
21वीं सदी के जागरूक ग्राहकों को ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ के विज्ञापनों में कही गई बातें समझ आने लगीं. दिल की बीमारियों को बढ़ाता देख लोगों ने ‘डालडा’ खाना बेहद कम कर दिया. इसके बाद धीरे-धीरे ‘रिफ़ाइंड तेलों’ ने ‘डालडा’ की जगह ले ली. साल 2010 तक भारत के 90 फ़ीसदी मार्किट पर ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ ने कब्ज़ा जमा लिया था. हालांकि, ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ भी सेहद के लिए बेहद हानिकारक माने जाते हैं. पिछले कुछ सालों में भारत में कई लोगों ने इसका इस्तेमाल करना भी बेहद कम कर दिया है.
भारत में ‘डालडा’ की बिक्री बेहद कम होने की वजह से साल 2003 में ‘हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड’ ने इसे ‘Bunge Limited’ को बेच दिया था.
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