रघुनाथ विनायक धुलेकर (Raghunath Vinayak Dhulekar) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी, लेखक, प्रथम लोकसभा के सदस्य और भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे. उन्होने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ और ‘दांडी मार्च’ में सक्रिय भूमिका निभाई थी. हिंदी के प्रबल पक्षधर रघुनाथ विनायक धुलेकर का हिंदी को ‘राजभाषा’ का दर्जा दिलाने में अहम योगदान रहा है.

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कौन थे रघुनाथ विनायक धुलेकर? 

रघुनाथ विनायक धुलेकर का जन्म 6 जनवरी 1891 को उत्तर प्रदेश के झांसी में हुआ था. मराठी परिवार से संबंध रखने वाले  धुलेकर झांसी के पहले सांसद थे. 10 मई, 1912 को उनका विवाह जानकी धुलेकर से हुआ था. सन 1914 में उन्होंने ‘कोलकाता विश्वविद्यालय’ से BA की डिग्री हासिल की. इसके बाद 1916 में ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ से MA और ‘बेचलर ऑफ़ लॉ’ की उपाधि हासिल की. कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद उन्होंने झांसी ज़िला अदालत में वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी.

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कैसा रहा राजनीतिक करियर? 

सन 1920 से 1925 तक उन्होंने हिंदी समाचार पत्र ‘स्वराज प्राप्ति’ और ‘फ़्री इंडिया’ प्रकाशित किये. इसके बाद 1925 में धुलेकर को ब्रिटिश सेना ने ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन’ में शामिल होने की वजह से गिरफ़्तार कर लिया. सन 1937 में वो ‘उत्तर प्रदेश विधान सभा’ के सदस्य के तौर पर चुने गये. इस दौरान 1937 से 1944 तक वो ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ में भाग लेने की वजह से जेल में भी रहे. सन 1946 में उन्होंने हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए सदन में एक विधेयक प्रस्तुत किया. इसी साल धुलेकर को भारतीय ‘संविधान सभा’ के सदस्य के रूप में चुन लिया गया. सन 1952 से 1957 तक, उन्होंने भारतीय संसद की पहली लोकसभा के सदस्य के कार्य किया. सन 1958 से 1964 तक वो ‘उत्तर प्रदेश विधान परिषद’ के अध्यक्ष भी रहे.

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सदन का वो रोचक क़िस्सा 

आचार्य रघुनाथ विनायक धुलेकर से जुड़ा पार्लियामेंट का एक रोचक क़िस्सा आज भी याद किया जाता है. हुआ यूं है कि धुलेकर एक बार संसद में हिंदी में अपनी बात रख रहे थे. इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी सदन में मौजूद थे. इस बीच पं. नेहरू ने उन्हें टोकते हुये कहा, संसद में अलग-अलग भाषाओं को जानने वाले गणमान्य लोग बैठे हुए हैं. यदि आप अपनी बात अंग्रेज़ी में रखें तो सबको समझ में आएगी.

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प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की ये बात सुनकर सदन में बैठा हर सांसद हैरान रह गया. लेकिन धुलेकर अपनी बात रखने से रुके नहीं. इसके बाद उन्होंने जो किया वो इतिहास बन गया. धुलेकर ने हिंदी ही नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती, उड़िया, अरबी, बंगाली, संस्कृत और उर्दू समेत कुल 10 भाषाओं में भाषण देकर हर किसी को हैरान कर दिया. 

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रघुनाथ विनायक धुलेकर का ये रूप देख प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ही नहीं, बल्कि वहां मौजूद हर एक सांसद हैरान रह गया. अंत में धुलेकर ने अपनी बात ख़त्म करते हुये कहा, उन्हें 10 भाषाओं का ज्ञान है, लेकिन भारत को जोड़ने वाली भाषा केवल ‘हिंदी’ है, जिसे राजभाषा बनाया जाना चाहिए’. भारतीय राजनीतिक इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जब किसी सांसद ने सदन में 10 भाषाओं में अपनी बात रखी हो. 

हिंदी को ‘राजभाषा’ का दर्जा दिलाने के लिए दिया ज़ोर

रघुनाथ विनायक धुलेकर ने 9 दिसंबर, 1946 में संसद में काम करने और संसद में हिंदी में बोलने के लिए एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस दौरान उन्होंने सभी संसदीय सदस्यों के लिए इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया था. इसके बाद 10 दिसंबर 1946 को उन्होंने हिंदी में अपना पहला बड़ा भाषण दिया.

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इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में कहा कि-

जो लोग हिंदी नहीं जानते उन्हें भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है. जो लोग इस सदन में भारत के लिए एक संविधान बनाने के लिए उपस्थित हैं और हिंदी नहीं जानते हैं, वो इस सभा के सदस्य बनने के योग्य भी नहीं हैं. 
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देश के इस महान स्वतंत्रता सेनानी को हमारा सलाम है.   

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