भारत जैसे देश में जहां हर किसी की अपनी एक अलग पहचान और विचारधारा है. मगर इस देश की विविधताएं और मतभेद बस एक कप चाय के प्याले के साथ शांत हो जाते हैं. चाय भी ऐसी कड़ी है जो हम भारतीयों को आपस में जोड़ने का काम करती है. सामाजिक सद्भाव बढ़ाने के इसी विचार के साथ भारत के सबसे प्रतिष्ठित चाय ब्रांडों में से एक वाघ बकरी चाय (Wagh Bakri Tea) अस्तित्व में आया था. इसकी शुरुआत गुजरात के उद्यमी नरणदास देसाई ने की थी. इस चाय का सामाजिक अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई का एक लंबा इतिहास रहा है.

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बात 1892 की है, गुजरात के रहने वाले नरणदास देसाई (Narandas Desai) का दक्षिण अफ़्रीका के डरबन शहर में 500 एकड़ का एक मशहूर चाय बागान हुआ करता था. ये वो दौर था जब दक्षिण अफ़्रीका भी भारत की तरह ही अंग्रेज़ों के अधीन था. इस दौरान नरणदास देसाई को भी अन्य लोगों की तरह ही कई बार नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा. देसाई के दिल में ये बात घर कर गई थी. वो इस समस्या को जड़ से ख़त्म करना चाहते थे, लेकिन अंग्रेज़ों के राज में ये एक मुश्किल काम था.

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इस बीच दक्षिण अफ़्रीका में नस्लीय भेदभाव की घटनाएं कम होने के बजाय बेहिसाब बढ़ने लगीं. इसी सामाजिक अशांति के चलते नरणदास देसाई को दक्षिण अफ़्रीका छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. कुछ क़ीमती सामान और अपने आदर्श महात्मा गांधी द्वारा सिफ़ारिश सर्टिफ़िकेट के साथ वो 12 फरवरी, 1915 में भारत वापस लौट आये. इस प्रमाण पत्र में गांधी जी ने लिखा था, ‘मैं दक्षिण अफ़्रीका में श्री नरणदास देसाई को जानता था, जहां वो कई सालों तक एक सफ़ल चाय बागान के मालिक थे’.  

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गुजरात में खोला पहला टी स्टोर 

नरणदास देसाई के लिए भारत में गांधी जी द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र काफ़ी मददगार साबित हुआ. आख़िरकार सन 1919 में उन्होंने अहमदाबाद में गुजरात चाय डिपो की स्थापना की. इस दौरान 2 से 3 साल चाय का नाम बनाने में लग गये, लेकिन एक बार रफ़्तार पकड़ने के बाद नरणदास देसाई ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कुछ ही साल में वो गुजरात के सबसे बड़े चाय निर्माता बन गये. इसके बाद सन 1925 में उन्होंने वाघ बकरी चाय (Wagh Bakri Tea) ब्रांड लॉन्च किया.

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इस चाय का नाम ‘वाघ बकरी’ कैसे पड़ा? 

भारतीयों के लिए ‘वाघ बकरी चाय’ का नाम हमेशा से ही उत्सुकता का विषय रहा है. दरअसल, गुजराती में ‘बाघ’ को ‘वाघ’ कहते हैं. नरणदास अपनी इस चाय को गुजरात समेत पूरे देश में फैलाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने इसका शुरूआती नाम ‘वाघ’ गुजराती में रखा, जबकि ‘बकरी’ देशभर में बकरी ही कहलाती है. यहीं से इसका नाम ‘वाघ बकरी चाय’ पड़ा और कुछ ही सालों में ये देशभर में मशहूर हो गया.

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इसके Logo में छिपा है सामाजिक संदेश

‘वाघ बकरी चाय’ के Logo में आपने ‘बाघ और बकरी’ की तस्वीर बनी ज़रूर देखी होगी. इस तस्वीर में ये दोनों एक ही प्याली से चाय पीते हुए नज़र आ रहे हैं. ये चिह्न एकता और सौहार्द का प्रतीक है. इस चिह्न में बाघ यानी ‘उच्च वर्ग’ के लोग और बकरी यानी ‘निम्न वर्ग’ के लोग दोनों को एकसाथ चाय पीते हुये दिखाना अपने आप में एक बड़ा सामाजिक संदेश है. ‘वाघ और बकरी’ साथ-साथ चाय पीने की तस्वीर वाले नए Logo के माध्यम से कंपनी ने भारत में जाति आधारित भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी और समानता को बढ़ावा दिया. सन 1934 में इस Logo के साथ ‘गुजरात चाय डिपो’ ने ‘वाघ बकरी चाय’ ब्रांड लॉन्च किया.

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61 साल तक बेची खुली चाय 

‘गुजरात चाय डिपो’ ने सन 1980 तक होलसेल और रिटेल में चाय बेचीं. उस दौर में भारतीय बाज़ारों में आमतौर खुली चाय (Loose Tea) ही बिकती थी. इस दौरान जब भारत में विदेशी ब्रांड कदम रखने लगे तो कंपनी बोर्ड ने मार्केट में ख़ुद को बनाए रखने के लिए चाय के ब्रैंड में बदलाव करने का निर्णय लिया. इसके बाद कंपनी ने 22 सितंबर 1980 गुजरात टी प्रोसेसर्स ऐंड पैकर्स लिमिटेड की नींव रखी और ‘पैकेजेड चाय’ बेचना शुरू कर दिया. इसके कुछ साल बाद ‘वाघ बकरी चाय’ गुजरात में मशहूर हो गई.

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90 के दशक में वाघ बकरी चाय (Wagh Bakri Tea) गुजरात में बेहद मशहूर थी. साल 2003 तक ये गुजरात का सबसे बड़ा चाय ब्रैंड बन गया. इसके बाद कंपनी ने 2003 से लेकर 2009 के बीच अपने इस ब्रांड का महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में विस्तार किया. आज ‘वाघ बकरी चाय’ देश के क़रीब 20 राज्यों में अपना कारोबार फ़ैला चुकी है.

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पिछले 4 दशकों में ‘वाघ बकरी चाय’ मार्किट में अपने कई नये प्रोडक्ट्स लॉन्च कर चुकी है. अब तक ‘वाघ बकरी- गुड मॉर्निंग टी’, ‘वाघ बकरी- नवचेतन टी’, ‘वाघ बकरी- मिली टी’ और ‘वाघ बकरी- प्रीमियम लीफ़ टी’ उपभोगताओं को लुभाने में कामयाब रही हैं.

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भारत में TATA और HUL चाय की सबसे बड़ी कंपनियां हैं, इन दोनों के पास 21 प्रतिशत मार्केट वैल्यू है. इसके बाद ‘वाघ बकरी चाय’ देश की तीसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी है.साल 2009 में कंपनी का मार्केट शेयर सिर्फ़ 3% था, जो 2020 में बढ़कर 10% हो गया था. गुजरात में इस कंपनी का मार्केट शेयर 70% के क़रीब है.

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