भारतीय सेना (Indian Army) हर मुश्किल घड़ी में बड़ी निडरता के साथ देश की रक्षा के लिए डटी रहती है. किसी दुश्मन देश को मुहतोड़ जवाब देना हो या फिर किसी प्राकृतिक आपदा से देश को बचाना. भारतीय सेना के जवान जान हथेली पर रखकर पहली पंक्ति में खड़े रहते हैं. देश की ख़ातिर इन शूरवीरों को मुश्किल से मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ता है. भारतीय सेना पिछले 7 दशकों में देश की सीमाओं को महफूज़ रखने के लिए दुश्मनों से कई युद्ध लड़ चुकी है. इनमें से अधिकतर में उसे कामयाबी मिली है. लेकिन आज हम 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के एक ऐसे शूरवीर के बारे में बात करेंगे जिसने पाकिस्तान के पराजय की पटकथा रची थी.

ये भी पढ़ें: मोहम्मद उस्मान: भारतीय सेना का वो अधिकारी, जिन्होंने ठुकरा दिया था मोहम्मद अली जिन्ना का ऑफ़र

timesofindia

हम बात कर रहे हैं 1971 के ‘भारत-पाक युद्ध’ के हीरो रहे Lt. Gen. Jack Farj Rafael Jacob की, जिन्हें JFR Jacob के नाम से भी जाना जाता था. जनरल जैकब ही वो शख़्स थे जिनके साहस के आगे पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए थे. आज हम आपको भारत मां के इसी सच्चे सपूत की साहस भरी दास्तां सुनाने जा रहे हैं.

JFR Jacob

aviation

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध

बात 1971 की है. पूर्वी पाकिस्तान (आज बांग्लादेश) के लोग पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) के अत्याचारों से त्रस्त थे. ऐसे में शेख मुजीबुर्र रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान ने स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ बनाने की आवाज़ उठाई. इस पर पाकिस्तान के हुक्मरानों ने शेख मुजीबुर्र रहमान को क़ैद कर जनरल नियाजी के नेतृत्व ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ प्रारम्भ कर दिया. पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया ये अब तक का सबसे बड़ा जनसंहार ऑपरेशन था. इस ऑपरेशन में क़रीब 30 लाख लोगों की नृशंस हत्या कर दी गयी, सैकड़ों महिलाओं का बलात्कार कर उन्हें मार दिया गया.

JFR Jacob

amazon

दरअसल, पाकिस्तानी सेना के लिए ये जनसंहार मनोरंजन और यौनपूर्ति का साधन बन गया था. लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन गया तो फिर भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र ने बांग्लादेश के आम जन को सशक्त कर उन्हें मुक्ति के उपाय सुझाए. इससे बौखलाए पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा से जंग तो छेड़ दी, लेकिन उसे भारतीय सेना से मुंह की खानी पड़ी. इस दौरान भारतीय सेना के जनरल जे.एफ़.आर. जैकब ने ऐसा पराक्रम दिखाया, जिसने न सिर्फ़ भारतीय सेना के गौरव को शिखर पर स्थापित किया, बल्कि पाकिस्तानी सेना के बचे-खुचे मान को भी रसातल में पहुंचा दिया. पश्चिमी सीमा पर पाक सेना हार तो गयी थी, लेकिन अभी उसका अहंकार चूर-चूर होना बाकी था.

JFR Jacob

forward

इस दौरान ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के नियमों के तहत वैश्विक बिरादरी ने तय किया कि दोनों देश सीजफ़ायर कर सकते हैं. युद्ध हार चुका पाकिस्तान इस निर्णय से बेहद ख़ुश था, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के सीजफ़ायर नियमों के कारण उसे अपनी हार छिपाने और बांग्लादेश की मुक्ति को उलझाने का अवसर मिल जाता, जैसा उसने 1948 और 1965 के युद्ध में किया था. लेकिन जनरल जैकब ने पाकिस्तान के अरमानों पर पानी फेर दिया.

JFR Jacob

timesofindia

उपहार में दूंगा बांग्लादेश

सैम मानेकशॉ उस समय भारतीय सेना के प्रमुख हुआ करते थे और जनरल जैकब भारतीय सेना के पूर्वी कमान के सेना प्रमुख थे. युद्ध रणनीति के तहत मानेकशॉ चाहते थे कि भारतीय सेना को पहले चटगांव और खुलना को जीतना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक भूमि स्वतंत्र बांग्ला सरकार को सौंपी जा सके. लेकिन जनरल जैकब की योजना कुछ और ही थी. इस बीच जब आर्मी चीफ़ मानेकशॉ ने उन्हें फ़ोन करके चटगांव और खुलना को कब्ज़े में लेने की योजना बताई, तो जनरल जैकब ने उन्हें समूचे ‘बांग्लादेश’ को उपहार स्वरूप सौंपने का वचन दिया.

JFR Jacob

tfipost

ये भी पढ़ें: भारतीय सेना के जवानों की कही वो 11 प्रेरणादायक बातें, जिनमें देशप्रेम का जज़्बा कूट कूटकर भरा है

पाकिस्तान के कैंप में जाकर चेताया

जनरल जैकब ने इसके बाद आर्मी चीफ़ मानेकशॉ को पाकिस्तानी सेना से ‘गार्ड ऑफ़ ऑनर’ लेने का आग्रह किया. इस बात पर मानेक शॉ हंस पड़ें, क्योंकि 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण कराना इतना आसान काम नहीं है. पाकिस्तानी सेना के 30,000 सैनिक अकेले ढाका की रक्षा में तैनात थे. बावजूद इसके जनरल अरोड़ा को वहां भेज दिया गया. इसके बाद शुरू हुआ असल मनोवैज्ञानिक युद्ध. इस बीच जनरल जैकब सीधे पाकिस्तानी सेना के कैंप में पहुंचे और वहां पहुंचते ही उन्होंने जिस स्पष्टता, निर्भीकता, आत्मविश्वास और साहस से बात की, उसने पाकिस्तानियों को विश्वास दिला दिया कि ढाका से 30 किमी दूर मौजूद मात्र 4,000 भारतीय सैनिक 30,000 वाली पाक सेना पर भारी पड़ने वाले हैं.

JFR Jacob

socialnews

 जनरल नियाजी को समर्पण के लिए किया मजबूर

इस दौरान जनरल जैकब ने न सिर्फ़ अपनी तर्क शक्ति से पाक जनरल नियाजी को उनके पराजय की निश्चित तारीख बता दी, बल्कि उनके सैन्य साजो-समान, रणनीति और उनके पोस्ट के बारे में भी पूर्ण जानकारी देकर हैरत में दाल दिया था. जनरल जैकब की इस धमकी से नियाजी और पूरी पाकिस्तानी सेना आश्चर्य चकित रह गयी थी. इसके बाद जनरल जैकब ने नियाजी को समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए 30 मिनट का समय दिया और हस्ताक्षर करने पर ‘जेनेवा कंवेंशन’ के अनुपालन का वचन भी दिया.

wikipedia

जनरल जैकब के इस ख़ौफ़ ने न केवल दुनिया के पहले ‘पब्लिक सैन्य आत्म समर्पण’ का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना को ‘गार्ड ऑफ़ ऑनर’ देगी. इसके बाद ही पाकिस्तानी सेना के 93,000 जवानों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया. विश्व युद्ध के बाद ये सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था. इस रणनीति और शौर्य के कारण ये घटना और Gen. JFR Jacob का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया.

tbsnews

पाकिस्तान के ‘नेशनल डिफेंस कॉलेज’ ने एक अध्ययन में लिखा था कि, इस जीत का श्रेय वास्तव में पूर्वी कमान के जनरल जैकब की सावधानीपूर्वक तैयारियों और उनके कोर कमांडरों द्वारा कार्यान्वयन को जाता है. 

JFR Jacob

wikipedia

इजरायल ने दिया ‘हॉल ऑफ़ ऑनर’ 

जनरल जैकब ने के भारत-पाक युद्ध ही नहीं, बल्कि खाड़ी देशों से लेकर कई अन्य युद्धों में भी अपना शौर्य दिखाया. जनरल जैकब के शौर्य कौशल को देखते हुये इजरायल की सरकार ने उन्हें न केवल ‘हॉल ऑफ़ ऑनर’ से सम्मानित किया, बल्कि उन्हें अपने यहां बसने का न्योता भी दिया था, लेकिन जनरल जैकब का कहना था ‘मैं एक यहूदी हूं, पर मै जीऊंगा भी एक भारतीय की तरह और मरूंगा भी एक भारतीय की तरह. यही एक सैनिक की परिभाषा है’.  

JFR Jacob

wikipedia

भारतीय सेना में अपने 36 साल के लंबे करियर के दौरान लेफ़्टिनेंट जनरल जैक फर्ज राफ़ेल जैकब ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के अलावा ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ और 1965 के भारत-पाक युद्ध में भी हिस्सा लिया था. जनरल जे.एफ़.आर. जैकब (General JFR Jacob) के सैन्य जीवन की इस ऐतिहासिक घटना से आप समझ गए होंगे कि एक सैनिक केवल जंग ही नहीं लड़ता बल्कि, अपनी तार्किक शक्ति से दुश्मन को मात देने का माद्दा भी रखता है.

wikipedia

ये भी पढ़ें: क्या था भारतीय सेना का ‘ऑपरेशन कैक्टस’, जानिए क्यों पड़ी थी इसकी आवश्यकता?

जनरल जे.एफ़.आर. जैकब (General JFR Jacob) सन 1978 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुये थे. इसके बाद वो बाद गोवा और पंजाब के राज्यपाल भी रहे. आख़िरकार 13 जनवरी 2016 को 95 वर्ष की उम्र में लेफ़्टिनेंट जनरल जैक फर्ज राफ़ेल जैकब का निधन हो गया.