इतिहास में बहुत से राजा-महाराजा ऐसे हुए हैं, जो अपनी अनोखी चीज़ों की वजह से सुर्खियों में रहे हैं. इन्हीं राजाओं में से एक ‘दलीप सिंह’ (Duleep Singh) भी हैं. ‘दिलीप सिंह’ सिखों के आखिरी राजा थे. कहते हैं कि ‘दिलीप सिंह’ ने पहले सिख धर्म छोड़ ईसाई धर्म को अपनाया फिर कुछ समय बाद ईसाई धर्म छोड़ सिख धर्म में वापस लैट आये. 

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चलिये जानते हैं सिख राजा की अनकही कहानी  

6 सितंबर 1838 को जन्में ‘दिलीप सिंह’ लाहौर के रहने वाले थे. ‘दिलीप सिंह’ पंजाब के राजा रणजीत सिंह और महारानी जिंद कौर की अकेली संतान थे. रणजीत सिंह के निधन के बाद 5 साल की उम्र में ‘दलीप सिंह’ को पंजाब का सल्तनत बना दिया गया. वहीं जिंद कौर ‘दिलीप सिंह’ की रिजेंट बन कर साम्राज्य की देख-रेख करती थीं. जिंद कौर साम्राज्य चलाने की पूरी कोशिश कर रहीं थीं, पर फिर भी कहीं न कहीं वो सफल शासक नहीं बन पाईं.  

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पहला आंग्ल-सिख युद्ध  

कहा जाता है कि 1849 में प्रथम ‘आंग्ल-सिख’ युद्ध छिड़ गया था. इस युद्ध में सिख साम्राज्य ब्रिटिश लोगों से हार गया. इस युद्ध में जिंद कौर और ‘दिलीप सिंह’ भी एक दूसरे से बिछड़ गये. अंग्रेज़ों ने जिंद कौर को कोलकाता भेज दिया, तो वहीं दिलीप सिंह को ब्रिटेन भेज दिया गया. ब्रिटेन में ‘दिलीप सिंह’ को क्वीन विक्टोरिया से मिलाया गया. महाराजा का अधिकतर समय क्वीन विक्टोरिया के साथ गुज़रता था. अंग्रेज़ों के साथ रह-रह कर महाराजा अपनी सभ्यता से दूर होते गये. इसके साथ ही उन्होंने ईसाई धर्म भी अपना लिया.  

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मां से मिलने के बाद आया परिवर्तन  

ब्रिटिश राज में महाराजा के तेवर बिल्कुल रॉयल प्रिंस जैसे थे, लेकिन 13 साल बाद जब वो अपनी मां से मिलने कोलकाता आये, तो उन्होंने महाराजा को उनके राज्य और सभ्यता की याद दिलाई. इसके बाद दिलीप सिंह ने अपने राज्य की आज़ादी की लड़ाई लड़ी और ईसाई धर्म छोड़ फिर से सिख बन गये.  

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कहते हैं कि महाराजा ने ज़िंदगी के अंतिम समय में भारत आने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन अंग्रेज़ों के होते हुए ऐसा संभव न हुआ. 1893 में पेरिस में उनकी मौत हुई और उनका अंतिम संस्कार भी ईसाई धर्म के मुताबिक है.