औरंगज़ेब (Mughal Emperor Aurangzeb) वो आख़िरी शासक था, जिससे दौर में मुगल मज़बूत रहे हैं. हालांकि, इतिहास में उसे धार्मिक तौर पर एक कट्टर शासक के तौर पर देखा गया है. साथ ही, अपने सगे-संबंधियों के साथ भी उसका व्यवहार ठीक नहीं रहा था.पिता शाहजहां को उसने बंदी बनाया था. बादशाह बनने के लिए अपने भाई दारा शिकोह की बेरहमी से हत्या की थी. इसके अलावा बहुत कम लोग जानते हैं कि उसने अपनी बेटी जेबुन्निसा (Zebunissa) को भी नहीं बख़्शा था.
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वजह थी उसकी बेटी का शेरो-शायरी में रुझान और कृष्ण भक्ति, जो औरंगज़ेब को पसंद नहीं था. इसीलिए, उसने अपनी बेटी को ताउम्र क़ैदखाने में बंद कर दिया था.
ऐसे में आइए आपको बताते हैं औरंगज़ेब (Aurangzeb) की बेटी जेबुन्निसा (Zebunissa) की कहानी-
बेहद होनहार थी जेबुन्निसा
जेबुन्निसा, औरंगज़ेब और उसकी बेगम दिलरस बानो की सबसे बड़ी बेटी थी. कहा जाता है कि बचपन में ही उसकी मंगनी चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से तय हुई थी, लेकिन सुलेमान की कम उम्र में ही मौत हो गई. कम उम्र से ही जेबुन्निसा का पढाई में खूब मन लगता था. दर्शन, भूगोल, इतिहास जैसे विषयों में उसकी काफ़ी रूचि थी.
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उसका शेरो-शायरी और कविता में रुझान अपने गुरु सईद अशरफ़ मजंधारानी के वजह से हुआ. वो ख़ुद एक फारसी के कवि थे.
छिप कर मुशायरों में जाने लगी
ऐसा नहीं था कि औरंगज़ेब को अपनी बेटी जेबुन्निसा से प्यार नहीं था. कहते हैं कि वो औरंगज़ेब की सबसे चहेती थी. वो बेटी पर सोने की अशर्फिया लुटा देता था. लेकिन उन पैसों से जेबुन्निसा ने ग्रंथों का आम भाषा में अनुवाद करवाने लगी.
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आगे चलकर वो शायरियां भी करने लगी और उसे मुशायरों में भी बुलाया जाने लगा. यहां तक कि औरंगज़ेब के दरबारी कवि भी उन्हें शायराना महफिलों में बुलाया करते थे. ये सब औरंगज़ेब को कतई पसंद नहीं था. यही वजह थी कि जेबुन्निसा छिप कर मुशायरों में जाने लगी थी. इसी वजह से वो कविताएं भी ‘मख़फ़ी’ नाम से लिखती थी.
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ताउम्र के लिए क़ैद कर लिया
औरंगज़ेब को जेबुन्निसा का शेरो-शायरी का शौक़ पसंद नहीं था. मगर कहते हैं कि उसे सबसे ज़्यादा ग़ुस्सा तब आया, जब एक हिंदू राजा से उसकी बेटी के रिश्ते की भनक उसे लगी. बताते हैं कि शेरो-शायरी की एक महफिल में आते-जाते उसे एक हिंदू बुंदेला महाराज छत्रसाल से प्रेम हो गया था. बुंदेला महाराज से औरंगज़ेब की कट्टर दुश्मनी थी. हालांकि, ये भी कहा जाता है कि उसे एक मामूली शायर से इश्क हो गया था और औरंगजेब को ये बात नागवार गुज़री थी. सच कुछ भी रहा हो, लेकिन जेबुन्निसा को इसकी क़ीमत चुकानी पड़ी. उसे दिल्ली के सलीमगढ़ किले में कैद करवा दिया, जहां वो अपनी अंतिम सांस तक बंद रही.
कृष्ण भक्त बन गई जेबुन्निसा
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औरंगज़ेब ने अपनी बेटी को क़ैद तो कर लिया, मगर उसके ख़्याल हमेशा आज़ाद रहे. कैदखाने में भी उसने शेरो-शायरी और ग़ज़लें लिखीं. यहीं पर उसका लगाव भगवान श्रीकृष्ण से हो गया. कृष्ण भक्ति में कई सारी रचनाएं लिखीं. अपने 20 साल की क़ैद के दौरान जेबुन्निसा ने 5000 से ज़्यादा रचनाएं लिखीं, जिनका संकलन ‘दीवान-ए- मख़फ़ी’ नाम से प्रकाशित हुआ. आज भी ब्रिटिश लाइब्रेरी और नेशनल लाइब्रेरी ऑफ पेरिस में राजकुमारी के लिखी पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं. बता दें, 1702 में जेबुन्निसा की मौत के बाद उसे काबुली गेट के बाहर तीस हजारा बाग में दफ़नाया गया.
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