भारतीय इतिहास के पन्ने मुगल साम्राज्य के स्वर्णिम युग से भरे पड़े हैं. मुग़ल सम्राट बाबर से लेकर बहादुर शाह ज़फर ने दिल्ली सल्तनत पर सैकड़ों सालों तक राज किया. इस दौरान हर मुगल सम्राट ने अपने दौर में कुछ ऐसे कार्य किए जो आज हमारे लिए ऐतिहासिक बन गए हैं. मुग़ल सम्राट अकबर के सबसे बेटे जहांगीर (Jahangir) ने 1605 से 1627 तक ‘दिल्ली सल्तनत’ पर राज किया. अपने शासनकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक सिक्के भी बनवाए थे, जिन्हें शुद्ध सोने से बनवाया गया था. आज हम आपको उन्हीं सिक्कों के बारे में बताने जा रहे हैं.

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मुग़ल सम्राट जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुज्क-ए-जहांगीरी में इनका ज़िक्र भी किया है. उन्होंने आगरा की टकसाल में शुद्ध सोने के 1000 तोले के 2 विशाल सिक्के बनवाए थे. इनमें से 1000 मुहर का 1 सिक्का उन्होंने ईरान के राजदूत जमील बेग को तोहफ़े में दिया था. सन 1987 में दूसरे सिक्के को स्विटज़रलैंड में एक नीलामी में रखा गया था, जिसे एक अज्ञात व्यक्ति ने 1 करोड़ डालर में खरीद लिया था. इस सिक्के को नीलामी के लिए रखने वाला मुगलों का पुराना जागीरदार और हैदराबाद का अंतिम निजाम मुक्करम शाह था जो दीवालिया हो गया था.

भारतीय इतिहासकारों के मुताबिक़, इन दोनों सिक्कों का वज़न 12-12 किलो था. सोने का इतना बड़ा सिक्का पहले कभी बना नहीं था. इस सिक्के का व्यास 21 सेमी है और इसे डिज़ाइन करने में सैकड़ों कारीगर लगे थे. इस सिक्के के बीच में मुग़ल बादशाह जहांगीर का नाम और ख़िताब अंकित है. इस पर ‘बा-हुक्म शाह जहांगीर याफ़्त सद ज़ेवर, बनाम नूरजहां बादशाह बेगम ज़र’ लिखा है.

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भारतीय दस्तावेज के अनुसार, जहांगीर ने 1,000 मुहर का सोने का सिक्का नवाब गाजीउद्दीन खां सिद्दीकी बहादुर, फ़िरोज जंग प्रथम को तोहफ़े में दिया था. दो शताब्दियों से अधिक समय तक ये सिक्का हैदराबाद के निजाम की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हाथों में जाता रहा और आख़िर में ये मुकर्रम शाह के पास पहुंचा जो हैदराबाद के 8वें निजाम थे.

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भारत सरकार के दस्तावेजों में ये सिक्का ‘मुहर’ के रूप में दर्ज है. साल 1970 में निजाम के खजाने से ये सिक्का गायब हो गया था. तब से इसका कुछ पता नहीं. भारत सरकार की क़रीब 4 दशक तक इस सिक्के की खोज बेनतीजा साबित हुई. क़रीब 400 साल पुराने इस सिक्के के साथ भारत का इतिहास जुड़ा हुआ है. इसलिए केंद्र सरकार ने फिर से इसका पता लगाने की कवायद शुरू कर दी है.

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