Mughal Princess And Queens Salary: मुगलों के दौर (Mughal History) में भले ही महिलाएं चारदीवारी के अंदर रहती हों, फिर भी उन्हें अपने गुज़ारे-भत्ते के लिए वेतन मिलता था. उन्हें जागीरें भी दी गई थीं. इसकी व्यवस्था पहले मुगल बादशाह बाबर के समय से ही चली आ रही थी. बाबर ने रानियों, शहज़ादियों और हरम में रहने वाली महिलाओं को सैलरी दी थी. वो भी लाखों रुपये. बाबर ने इसकी शुरुआत इब्राहिम लोदी की मां से की थी. उन्हें एक परगना जागीर के रूप में आवंटित की गई थी. जिसकी वार्षिक आय सात लाख रुपये से ज़्यादा थी. (Richest Mughal Princess)
नकद और जागीर के रूप में मिलता था पैसा
बाबर के बाद सभी मुगल शासकों ने रानियों, शहज़ादियों और हरम में रहने वाली महिलाओं को वेतन दिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, शाही परिवार की विशिष्ट महिलाओं पर धन की वर्षा की जाती थी. साथ ही, शाही हरम में प्रवेश करने वाली हर स्त्री को उसकी स्थिति के अनुसार आजीविका भत्ता मिलता है.
Mughal Princess And Queens Salary
मुगल परिवार की महिलाओं को आमतौर पर वेतन नकद मिलता था. मगर जिनकी सैलरी बहुत ज़्यादा होती थी, उन्हें आधी राशि नकदऔर शेष राशि के बराबर जागीर और चुंगी के अधिकार दे दिए जाते थे.
औरंगज़ेब की बहन को मिलता था सबसे ज़्यादा वेतन
जहांआरा (Jahanara Begum), औरंगज़ेब की बहन और शाहजहां-मुमताज़ महल की बेटी थी. उसे शाही महिलाओंं में सबसे ज़्यादा वेतन मिलता था. जहांआरा को वेतन के तौर पर 7 लाख रुपये सालाना मिलते थे. मुमताज़ के निधन के बाद उसमें 4 लाख रुपये का इज़ाफ़ा कर दिया गया. इस तरह उसका वेतन 10 लाख रुपये हो गया था. वहीं, मां मुमताज़ के मरने के बाद उनकी संपत्ति का आधा यानि क़रीब 50 लाख रुपये भी जहांआरा को मिला था.
औरंगज़ेब अपनी बहन जहांआरा को काफ़ी मानता था. इसलिए उसने 1666 में उसका भत्ता बढ़ा कर 17 लाख रुपये कर दिया. जहांआरा को जागीरों से भी पैसा मिलता था. अनुमान के मुताबिक, उसे कुल 30 लाख रुपये सालाना मिलता था, जो उस दौर के हिसाब से बहुत ज़्यादा था. हालांकि, जहांआरा को सबसे ख़र्चीली शहज़ादी माना जाता है. कहते हैं कि वो ख़ास मौक़ों पर लाखों रुपये उड़ा देती थी और काफ़ी शानोशौकत के साथ ज़िंदगी जीती थी.
औरंगज़ेब ने अपनी बेटी का वेतन रोक लिया था
औरंगज़ेब की बेटी जेबुन्निसा थी. उसे भी सालाना 4 लाख रुपये बतौर वेतन मिलता था. मगर जब औरंगज़ेब अपनी ही पुत्री से नाराज़ हुआ तो उसने वेतन रोक लिया. वहीं, अकबर के दौर में हरम में रहने वाली महिलाओं को वेतन तो मिलता था, मगर जागीरे नहीं. बाद में जहांगीर ने जागीरें भी बांटी. शाहजहां के वक़्त में इसमें और इज़ाफ़ा हुआ. मुगल बादशाह हरम की महिलाओं को महत्वपूर्ण मौकों पर भी मूल्यवान उपहार और मोटी नकद रकम दिया करते थे.
बता दें, इसके अलावा मुगल रानियां व्यापार से भी काफ़ी पैसा कमा लेती थीं. ख़ास तौर से विदेशी व्यापास से. नूरजहां इसमें सबसे आगे थीं. विदेशों के साथ होने वाले कपड़ों और नील के व्यापार में उन्होंने काफ़ी पैसा लगाया था और मोटा मुनाफ़ा भी कमाया.