Nawabs And Their Interesting Stories: भारत (India) को ‘सोने की चिड़िया‘ यूं ही नहीं कहा जाता था. देश के के राजे-रजवाड़ों के पास हमेशा से ही बेशुमार दौलत रही है. हालांकि, देश में 1971 में राजतंत्र समाप्त हो गया था. लेकिन नवाबों के रोचक क़िस्सों की चर्चा आज तक होती है. हमारे देश में नवाब इतने दौलतमंद थे कि उनकी शानो-शौकत और रईसी का कोई अंत नहीं था. जनता के बीच उनकी बहुत इज्ज़त थी और वो अपनी रॉयल लाइफ़ जीने के लिए जाने जाते थे. 

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आइए आपको आज कुछ ऐसे ही नवाबों और उनके चर्चित शौक व क़िस्सों (Nawabs And Their Interesting Stories) के बारे में बताते हैं.

1. हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान

आज़ादी के बाद ‘हैदराबाद रियासत’ की गद्दी पर 7वें निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान बैठे थे. उन्हें साल 1911 में गद्दी मिली थी. बताया जाता है कि वो अपने अड़ियल, ज़िद्दी और शक्की स्वभाव के लिए चर्चित थे. हालांकि, उनके पास जितना पैसा था, उससे कहीं ज़्यादा वो कंजूस थे. 35 सालों तक वो एक ही तुर्की टोपी पहने रहे, जिसमें फफूंद लग गई थी और उसकी जगह-जगह सिलाई भी उखड़ गई थी. उनके गैराज में चमचमाती गाड़ियों की कतार लगी रहती थी, लेकिन वो 1918 मॉडल की एक पुरानी खटारा गाड़ी से चलते थे. फोर्ब्स के मुताबिक, वो दुनिया के 5वें दौलतमंद शख्स थे. उनके एक शौक की हमेशा चर्चा की जाती है. वो ये है कि उनकी टेबल पर नींबू के आकार का हीरा पेपर में लिपटा रखा रहता था. वो उसका इस्तेमाल पेपर वेट के तौर पर करते थे, जिसकी क़ीमत लगभग 4 अरब रुपये थी.

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2. महमूदाबाद रियासत की रॉयल फ़ैमिली

उत्तर प्रदेश के सीतापुर के पास एक ज़माने में महमूदाबाद रियासत हुआ करती थी. उनके पास भी दौलत की कमी नहीं थी. महमूदाबाद रियासत पर अवध के नवाब राज किया करते थे. इस संपत्ति को लेकर इस रियासत के वंशज सरकार के साथ काफ़ी लंबे समय तक लड़े थे. इससे ताल्लुक रखने वाले मुहम्मद ख़ान के पिता आमिर अहमद साल 1957 में भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन उनकी बेगम और परिवार के कुछ लोग यहीं रह गए. उनकी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लगभग 3 हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति है. साल 1968 में सरकार ने एनमी प्रॉपर्टी एक्ट नाम का नया क़ानून पारित किया, जिसके तहत दुश्मन देश चले जाने वालों की संपत्ति ज़ब्त करने का प्रावधान था. उन्होंने भारत सरकार से अपनी प्रॉपर्टी को हासिल करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी.

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3. जूनागढ़ के नवाब मुहम्मद महाबत ख़ान  

जूनागढ़ के नवाब मुहम्मद महाबत ख़ान को रसूल ख़ान जी भी कहा जाता है. वो कुत्ते पालने के बेहद शौक़ीन थे. जहां उनके पसंदीदा कुत्ते रखे जाते थे, वहां बाकयदा बिजली और फ़ोन की सुविधा होती थी. उनकी देखभाल के लिए 24 घंटे नौकर भी मौजूद रहते थे. महाबत ख़ान ने एक बार धूमधाम से एक कुत्ते की शादी भी की थी. इस शादी में कुल डेढ़ लाख मेहमान शामिल हुए थे और तमाम राजा-महाराजाओं और अमीरों को भी न्योता भेजा गया था.

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4. अवध के नवाब मुहम्मद याहिया मिर्ज़ा असफ़ उद दौला

साल 1738 में ब्रिटिश शासन के तहत याहिया मिर्ज़ा को अवध का नवाब घोषित किया गया था. बताया जाता है कि एक बार जब उनके राज्य में भीषण अकाल पड़ा था, तब अकाल से लोगों को बचाने के लिए उन्होंने पर्यटक स्थल ‘बड़ा इमामबाड़ा’ का निर्माण शुरू किया था. इससे लोगों को रोज़गार मिला और भूखे मरने की नौबत नहीं आई. इसके निर्माण में 20 हज़ार लोगों को लगाया गया था. साथ ही ये भी विश्वास दिलाया गया कि जब तक अकाल की स्थिति खत्म नहीं हो जाती, तब तक इमामबाड़े का काम चलता रहेगा.  

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5. नवाब वाज़िद अली शाह

कहा जाता है कि नवाब वाज़िद अली शाह की 300 बीवियां थीं. इनमें से कुछ ने बेगम हज़रत महल के साथ जंग में भाग लिया. 1857 की गदर के समय जब अंग्रेज़ों ने अवध पर कब्ज़े के लिए लखनऊ के महल पर हमला किया तब नवाब अपने महल में ही थे. उनकी भारी फ़ौज भाग गई और उनकी बीवियां डर के मारे इधर-उधर छिप गईं. अंग्रेज़ों ने वाज़िद अली शाह को पकड़ लिया और उनसे न भागने की वजह पूछी. इस पर नवाब साहब ने जवाब दिया- ‘मुझे मेरी जूतियां नहीं मिली थीं, बिना जूतियों के मैं कैसे भागता, इसलिए मैं बैठा रहा.’ लखनऊ का भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय कभी वाज़िद अली शाह का परीखाना हुआ करता था. इस इमारत में शाह की बीवियां रहती थीं. यहां हमेशा कत्थक की महफिल सजी रहती थी. नृत्य और काव्य के लिए इनके प्यार और जूनून ने लखनऊ को एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया.

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इन नवाबों के क़िस्से वास्तव में बेहद रोचक हैं.