Samrat Ashoka Stone Edict : भारतीय इतिहास के सबसे महान राजाओं में से एक थे सम्राट अशोक. ये मौर्य वंश के ऐसे चक्रवर्ती सम्राट थे जिनका शासन देश के दोनों सिरो पर था. मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य द्वार की गई थी. वहीं, इस साम्राज्य का विस्तार राजा बिंदुसार के हाथों हुआ था, जो कि सम्राट अशोक के पिता थे. सम्राट अशोक अपने समाज के लिए किए गए काम और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाने गए.
पियादसी (Samrat Ashoka Stone Edict) के बारे में जानने से पहले आइये, जान लेते हैं सम्राट अशोक से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें.
क्यों सम्राट अशोक में अपनाया था बौद्ध धर्म?
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पिता बिंदुसार की मृत्यु के बाद जब सम्राट अशोक ने जब साम्राज्य की बागडोर संभाली, तो उन्होंने राज्य विस्तार के उद्देश्य से कई बड़ी लड़ाइयां लड़ीं. इनमें एक सबसे भयंकर युद्ध कलिंग (ओड़िशा और उत्तरी आंध्र प्रदेश का क्षेत्र) का था. कहते हैं कि इस युद्ध में एक से तीन लाख की संख्या में मौते हुई थीं. इस युद्ध के बाद जब उन्होंने अपने चारों तरफ़ इंसानों की कटी लाशें व स्त्रियों की चित्कार सुनी, तो वो काफ़ी ज़्यादा अंदर से दुखी हुए और उसी क्षण युद्ध न लड़ने की कसम खाई और बौद्ध धर्म अपना लिया.
पत्थरों के स्तंभों पर संदेश
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जैसा कि हमने बताया कि कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक का पूरी तरह मन परिवर्तन हो गया था. उन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को बड़े-बड़े पत्थरों के स्तंभों पर लिखवाने का फैसला किया. चक्रवर्ती सम्राट अशोक चाहते थे कि ये संदेश भविष्य की पीढ़ी भी पढ़े. ये संदेश पत्थरों (Samrat Ashoka Stone Edict) पर लिखवाए गए थे, ताकि ये लंबे समय तक इसी तरह बने रहें. ये काम उन्होंने साम्राज्य के चारों ओर और व्यापारिक मार्गों पर भी किया.
संस्कृत में नहीं लिखवाए संदेश
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उन्होंने शिलालेख पर संदेश (Samrat Ashoka Stone Edict) संस्कृत में न लिखवाकर ब्राह्मी और खरोष्ठी जैसी स्थानीय बोलियों में लिखवाया, ताकि उन्हें आसानी से समझा जा सके. वहीं, उन्होंने बौद्ध संदेश ग्रीक और अरामी भाषा में भी लिखवाए थे (अफ़गानिस्तान में) . इस तरह उन्होंने अलग-अलग धर्मों के सम्मान को भी बढ़ावा दिया. इसके साथ ही उन्होंने पशुओं के शिकार पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. वो एक वन्यजीव सरंक्षक बन गए थे. उन्होंने बड़े स्तर पर बाग लगवाए, तालाब खुदवाए व सड़क किनारे आश्रय भी बनवाए. इंसानों के साथ-साथ जानवरों को छाया मिल सके, इसलिए उन्होंने बरगद के पेड़ भी लगवाए.
पियादसी
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कहते हैं कि शुरू के शिलालेखों में कहीं भी सम्राट अशोक का उल्लेख नहीं था, इसलिए पहले कोई नहीं जान पाया था कि ये सम्राट अशोक द्वारा ही बनवाए गए हैं. शिलालेखों में पियादसी का उल्लेख था, जिसका मतलब था ‘देवताओं का प्रिय’. कहते हैं कि ये समझने में 7 दशक का समय लगा कि सम्राट अशोक ही ‘पियादसी’ थे. इस बात का पता 1915 में मिले सम्राट अशोक के एक शिलालेख से चला, जिसमें स्वयं अशोक ने ख़ुद को ‘अशोक पियादसी’ कहा था. आज भी सम्राट अशोक के शिलालेख भारतवर्ष में मिल जाएंगे, जबकि कई समय के साथ नष्ट हो चुके हैं.