Ram Bahadur Thapa Case: अगर कोई हत्या करे तो क्या होगा? ज़ाहिर है उसे फांसी या उम्रक़ैद जैसी सज़ा हो सकती है. मगर कभी आपने सुना है कि किसी शख़्स ने एक इंसान की हत्या की हो और उसका जुर्म साबित भी होता हो. मगर फिर भी कोर्ट ने उसे बाइज़्ज़त बरी कर दिया हो?आपने भले ही सुना न हो, मगर हक़ीक़त में ऐसा हुआ है. इस ऐतिहासिक केस का नाम State of Orissa vs Ram Bahadur Thapa था.
जी हां, 65 साल पहले ऐसा ही हुआ था, जब राम बहादुर थापा नाम के शख़्स ने भूत समझ कर एक इंसान की हत्या कर दी और कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया था. आइए जानते हैं इस मशहूर केस के बारे में-
भूत-प्रेत होने की अफ़वाह
ये बात अप्रैल 1958 की है. चैटर्जी ब्रदर्स फ़र्म के मालिक जगत बंधु चैटर्जी ओडिशा के ज़िला बालासोर स्थित गांव रासगोविंदपुर पहुंचे. उनके साथ नौकर राम बहादुर थापा भी था. यहां एक पुराना हवाई अड्डा हुआ करता था. हवाई अड्डा उपयोग किए जाने लायक नहीं था. इसलिए खाली पड़ा रहता था और ज़मीन को चैटर्जी ख़रीदना चाहते थे.
हवाई अड्डे में दो चौकीदार लगे रहते थे ताकि आवारा लोग वहां अपना अड्डा न बना लें. साथ ही, इस हवाई अड्डे को लेकर कई भूतियां बातें चलती थी. जैसे- यहां रात में भूत-प्रेतों का साया रहता है. आत्माएं भटकती हैं वगैरह-वगैरह. इसलिए लोग यहां नहीं आते थे.
भूतों की चर्चा और मालिक की जिज्ञासा
इस गांव के चारों तरफ़ संथाल और माझी जनजाति के लोगों के कई गांव थे. 20 मई, 1958 को तेलकुंडी गांव का रहने वाला एक आदिवासी कृष्ण चंद्र पात्र की चाय के दुकान पर पहुंचा. रात काफ़ी हो चुकी थी तो उसे अब अकेले लौटने में डर लग रहा था. जगत बंधु चैटर्जी भूतों की कई कहानियां सुन चुके थे. ऐसे में उन्हें भूत देखने की जिज्ञासा हुई. उन्होंने कृष्ण चंद्र पात्र से कहा कि चलो इस आदिवासी को उसके गांव छोड़कर आते हैं.
Ram Bahadur Thapa Case
फिर ये लोग आदिवासी को उसके गांव तेलकुंडी छोड़ने गए. जब वो वापस रासगोविंदपुर लौट रहे थे. रास्ते में एरोड्रम के कैम्प नंबर IV में उन्होंने रौशनी दिखी. उस वक़्त तेज़ हवा चल रही थी. रात का अंधेरा था तो कुछ साफ़ नज़र भी नहीं आ रहा था. ऊपर से भूत की कहानियां भी सबने सुन रखी थीं. ऐसे में सबको लगा कि ये रौशनी साधारण नहीं है, ज़रूर कोई भूत-प्रेत है. उन्हें लगा कि रौशनी के इर्द-गिर्द भूत नाच रहे हैं और तीनों उस तरफ़ दौड़े.
सबसे पहले राम बहादुर थापा पहुंचा, उसने बिना देखे ही अपनी खुकरी से हमला कर दिया. कुछ देर बाद कृष्ण चंद्र पहुंचा, राम बहादुर थापा ने अंधेरे में उस पर भी वार कर दिया. कृष्ण चंद्र दर्द में चीखा और दूसरे ज़ख्मी लोग भी शोर मचाने लगे. इसके बाद राम बहादुर थापा ने हमला करना बंद किया. बाद में पता चला कि राम बहादुर ने जिन्हें भूत समझा था वो आदिवासी औरतें थी. ये औरतें लालटेन लेकर महुआ के फूल चुनने आई थी.
राम बहादुर के हमले की वजह से एक महिला की मौत हो गई. गंगा और सौंरी नामक दो महिलाएं और कृष्ण चंद्र बुरी तरह घायल हो गईं.
राम बहादुर थापा पर कोर्ट में चला मुकदमा
राम बहादुर थापा पर एक महिला की हत्या का केस दर्ज हुआ. IPC धारा 302 और IPC धारा 326 के तहत उसे गिरफ़्तार किया गया. फिर मामला पहुंचा सेशन कोर्ट में. सुनवाई के दौरान जज ने पाया कि ये जानबूझकर की गई हत्या नहीं थी. बल्क़ि धोखे में हुआ अपराध था. ऐसे में कोर्ट ने IPC सेक्शन 79 के तहत उसे छोड़ दिया. बता दें, भारतीय दण्ड संहिता में धारा 79 के अनुसार, अगर किसी को तथ्यों की जानकारी न होने की वजह या तथ्य की भूल की वजह से अपराध हआ है तो उसे कोर्ट माफ़ कर सकता है.
सेशन कोर्ट के इस फ़ैसले को हाईकोर्ट में चैलेंज किया गया. हाई कोर्ट ने जगत बंधु चैटर्जी के बयान को तवज्जो दी. कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त ने ‘सोच-समझकर काम नहीं किया’. साथ ही, राम बहादुर को ये यक़ीन था कि वो किसी इंसान पर नहीं, बल्क़ित भूत पर हमला कर रहा है. इस बात का पता इससे भी चलता है कि ‘थापा के हाथ में टॉर्च थी, अगर उसे ज़रा भी शक होता तो वो टॉर्च से देखता कि वो साया इंसान का था. टॉर्च न जलाना इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि अभियुक्त से सच में तथ्य की भूल हुई है.’ (Ram Bahadur Thapa Case)
इस तरह हाईकोर्ट ने भी सेशन कोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा और राम बहादुर थापा बरी हो गया.
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