टाइटैनिक(Titanic) एक ऐसा जहाज़ था, जिसके बारे में कहा जाता था कि वो कभी नहीं डूबेगा. मगर 1912 में जब ये जहाज़ इंग्लैंड से न्यूयॉर्क के लिए रवाना हुआ तो दो दिनों बाद ही एक बर्फ़ की चट्टान से टकराकर डूब गया. ये उस दौर की सबसे बड़ी समुद्री आपदा थी, जो शांतिकाल के दौरान घटित हुई थी. 

टाइटैनिक को कई वर्षों तक खोजा गया, लेकिन 73 साल तक उसे कोई तलाश नहीं पाया. टाइटैनिक की सबसे बड़ी त्रासदी ये थी कि वो डूबा भी उसी ट्रिप पर जो उसकी पहली ट्रिप थी. टाइटैनिक के डूबने के दौरान जहाज़ पर कैसा मंजर था, चलिए सिलसिलेवार तरीके से आपको बताते हैं…

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1. ग़लतियां, लापरवाहियां… 

बसंत के महीने में उत्तरी अटलांटिक के भीतर आइसबर्ग की मौजूदगी आम थी. 14 अप्रैल, 1912 को भी समुद्र जमा हुआ था. कैप्टन एडवर्ड जे. स्मिथ जानते थे कि रास्ते में आइसबर्ग मिल सकता है. फिर भी जहाज की रफ्तार धीमी नहीं की गई. तब किसी को आभास नहीं था कि कुछ ही घंटों में टाइटैनिक सागर की ठंडी सतह के नीचे डूब जाएगा. वो मिलेगा, लेकिन 73 साल बाद… 1985 में. करीब 12,500 फुट की गहराई में, समंदर की तलहटी पर.

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2. चेतावनियों की अनदेखी

उस शाम 7:30 बजे तक टाइटैनिक को नजदीकी जहाज़ों से पांच चेतावनियां भी मिलीं, मगर इनपर सजगता नहीं दिखाई गई. रात के 11 बजने में पांच मिनट थे, जब कुछ दूरी से ‘कैलिफॉर्नियन’ नाम के एक जहाज ने रेडियो पर संदेश भेजा. ऑपरेटर ने बताया कि इतनी बर्फ़ है कि जहाज़ को रुकना पड़ा है.

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3. “आइसबर्ग, राइट अहेड”

उस रात समंदर पर नज़र रखने की ड्यूटी फ़्रेडरिक फ़्लीट और रेजनल्ड ली की थी. रात क़रीब 11:40 पर फ़्लीट को जहाज़ के सामने कुछ दिखा, समंदर से भी स्याह. जहाज़ क़रीब पहुंचा, तो दिखा कि वो एक विशाल आइसबर्ग था. फ़्लीट ने झटपट 3 बार वॉर्निंग बेल बजाई और ब्रिज पर फ़ोन किया. वहां फ़र्स्ट ऑफ़िसर विलियम मरडॉक ने रिसीवर उठाकर पूछा, “क्या देखा तुमने?” फ़्लीट का जवाब था, “आइसबर्ग, बिल्कुल सामने.” 

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4. बहुत देर हो चुकी थी

ऑफ़िसर मरडॉक ने इंजन रूम(टेलिग्राफ़ मॉडल) के हैंडल को झटके से खींचा और रोकने की कोशिश की. बायें जाने का निर्देश दिया. उस निर्णायक घड़ी में आइसबर्ग से भिड़ंत टालने के लिए जो समझ आया, वो निर्देश दिया. अब बारी थी यह देखने की कि कोशिश कामयाब हुई कि नहीं. क़रीब 30 सेकेंड तक क्रू दम साधे इंतज़ार करता रहा. उन्हें लगा, बाल-बाल बचे. लेकिन असल में जो हुआ था, वो उनकी आंखें देख नहीं पाई थीं. 

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5. दो घंटे का वक़्त बचा था

आइसबर्ग का बड़ा हिस्सा पानी की सतह से नीचे होता है. यही हिस्सा टाइटैनिक के स्टारबोर्ड हल प्लेट्स से लगा. जहाज़ के ‘वेल डेक’ पर बर्फ के टुकड़े गिरे. समझ आ गया कि आइसबर्ग से टक्कर हुई है. फॉरवर्ड बॉइलर और मेल रूम्स में क्रू ने देखा कि कंपार्टमेंटों में पानी घुस रहा है. स्पष्ट हो गया कि एक-एक करके कंपार्टमेंट्स में पानी भरता जाएगा. अनुमान लगाया गया कि अब टाइटैनिक के पास तकरीबन दो घंटे का समय बचा है.

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6. सबके लिए नहीं थे लाइफ़बोट

टाइटैनिक का सफ़र शुरू होने से पहले ऐसा माना जा रहा था कि अगर इसमें दुर्घटना होती भी है, तो भी ये इतने समय तक पानी पर तैरता रहेगा कि यात्रियों को सुरक्षित बचाने का समय मिल जाएगा. शायद इसीलिए टाइटैनिक पर लाइफ़बोट का अनुपात यात्रियों के मुकाबले काफ़ी कम था. क़रीब 2,200 यात्री थे और लाइफ़बोट और ‘कोलैप्सिबल्स’ मिलाकर 1,178 की ही जगह थी. 

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7. आखिरी पल

आइसबर्ग को जहाज़ से टकराए क़रीब दो घंटे, चालीस मिनट बीते थे कि ‘अनसिंकेबल’ कहलाने वाले टाइटैनिक का पिछला हिस्सा पानी से बाहर ऊपर की ओर उठा और आगे के हिस्से ने समंदर में डुबकी लगाई. जहाज के पिछले हिस्से में बने आफ़्टरडेक को कसकर पकड़े लोग अब समंदर में छलांग लगाने लगे. 

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8. केवल 705 लोग ज़िंदा बचे

14 और 15 अप्रैल, 1912 की दरम्यानी रात क़रीब 2:20 बजे टाइटैनिक डूब गया. 1,500 से ज़्यादा लोग या तो डूबकर मर गए, या अटलांटिक के ठंडे पानी ने उनकी जान ले ली. अपने इस दुखांत के साथ टाइटैनिक का क़िस्सा, दुनिया की सबसे मशहूर और नाटकीय कहानियों में शुमार हो गया. 

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Source: DW