अंग्रेज़ों के आगमन से पहले भारत ‘सोने की चिड़िया’ के तौर पर जाना जाता था. कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट शाहजहां के दौर में दुनिया की कुल GDP में भारत की हिस्सेदारी 25 फ़ीसदी के क़रीब थी. मुग़लकाल के दौरान कई भारतीय कारोबारी ऐसे भी थे, जिनकी रईसी के चर्चे आज भी होते हैं. इन्हीं अमीरों में से एक वीरजी वोरा (Virji Vora) भी थे. वो मुग़लकाल में दुनिया के सबसे अमीर व्यापारी थे. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया फ़ैक्ट्री रेकॉर्ड्स द्वारा उन्हें दुनिया का अब तक सबसे अमीर व्यक्ति भी कहा जाता है.

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वीरजी वोरा के बारे में कहा कि वो इतने अमीर थे कि मुगलों और अंग्रेज़ों को लोन दिया करते थे. सन 1590 में जन्में वीरजी 1619 से लेकर 1670 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के बड़े फाइनेंसर हुआ करते थे. वो उस दौर में दुनिया के सबसे अमीर व्यापारी थे. तब उनकी कुल संपत्ति 80 लाख रुपये थी. क़रीब 400 साल बाद ये रकम अरबों डॉलर्स में होगी. इसीलिए उन्हें उस दौर में Merchant Prince और Plutocrat भी कहा जाता था.

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इतिहासकारों के मुताबिक़, सूरत के रहने वाले विरजी वोरा की व्यावसायिक गतिविधियों में थोक व्यापार, साहूकार और बैंकिंग शामिल थी. वो सूरत से देशभर में मसाले, बुलियन, मूंगा, हाथी दांत, सीसा और अफ़ीम सहित कई अन्य वस्तुओं का निर्यात किया करते थे. विरजी ‘ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ‘डच ईस्ट इंडिया कंपनी’ के प्रमुख क्रेडिट सप्लायर और कस्टमर थे.

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17वीं सदी के मध्य वीरजी वोरा (Virji Vora) का दुनियाभर में डंका बजता था. कहा जाता है कि दक्कन की राजनीति में फंसने के बाद जब औरंगज़ेब की वित्तीय हालत ख़राब हुई तो उसने सूरत के व्यवसायियों से व्याज मुक्त क़र्ज़ मांगा, लेकिन सभी ने देने से इंकार कर दिया. इसके बाद औरंगज़ेब जब वो वीरजी वोरा के पास मदद के लिए गए तो खाली हाथ नहीं लौटे.

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वीरजी वोरा (Virji Vora) उन मुग़लों और अंग्रेज़ों को उधार देते थे, जो अपना व्यवसाय शुरू करना चाहते थे. इसके अलावा उन्होंने मुग़ल सम्राट शाहजहां को भी 4 अरबी घोड़े गिफ़्ट किये थे.

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