Dr. Rangaraj Declared ‘Hero Of The Month’ By Korean Ministry: भारत में ऐसे बहुत से महान और साहसी मिलिट्री के फौजी रह चुके हैं. जिनके उपलब्धियां सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग याद करते हैं. आज की ये कहानी भी ऐसे ही एक भारतीय फौजी की है, जिसने कोरियाई वॉर में मेडिकल मिशन चलाकर 2 लाख घायल सैनिकों की मदद की थी. चलिए भारत के हीरो यानी रंगराज की कहानी पढ़ते हैं, कैसे उन्होंने साहस के साथ उन दो लाख सैनिकों को बचाया था.
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“हीरो ऑफ़ द मंथ” रंगराज की साहस भरी कहानी (Dr. Rangaraj Declared ‘Hero Of The Month’ By Korean Ministry)-
रंगराज का जन्म 1917 में अरकोट (तमिलनाडु) में हुआ था. जिसके बाद उन्होंने 1930 में मेडिसिन की पढ़ाई (मद्रास मेडिकल कॉलेज) से की थी. 1941 में रंगराज ने भारतीय मेडिकल सर्विसेज़ में दाख़िल हुए और फिर आर्मी में दाख़िला लेने के बाद उन्होंने मेरठ में बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग लेनी शुरू की. बाद में मेरठ के जनरल हॉस्पिटल में उनकी पोस्टिंग हुई थी.
डॉक्टर रंगराज भारतीय पैरा बटालियन में एक चिकित्सा अधिकारी थे. जो भारतीय सेना के पहले पैराट्रूपर्स (Paratroopers) में से एक थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मणिपुर मोर्चे के में हिस्से लेने की वजह से उन्हें 60वीं पैराशूट फील्ड एम्बुलेंस यूनिट में प्रमोशन भी मिला. कहते हैं, बड़े ओहदे के साथ-साथ बड़ी ज़िम्मेदारियां भी आती हैं. रंगराज ने ऐसा करके दिखाया भी.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कोरिया का विभाजन हुआ. जिसमें उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच द्वेष चल रहा था और उसी दौरान सोवियत यूनियन और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच शांत युद्ध शुरू हो चुका था. तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री और विदेशी मामले जवाहरलाल नेहरू संभालते थे. तब उन्होंने UN को एक ऐसी नीति अपनाने से रोकने के लिए एक कड़ा कदम उठाया ताकि पड़ोसी देशों में वॉर का माहौल ना बने.
दक्षिण कोरिया को उस समय मिलिट्री की सख़्त ज़रूरत थी. जिसके लिए UN ने अपने मेंबर्स से नॉर्थ कोरिया के ख़िलाफ़ मदद मांगी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी 60वीं पैराशूट फील्ड एम्बुलेंस यूनिट भेज दी.
रंगराज के नेतृत्व में 346 मजबूत टीम ने 27वीं राष्ट्रमंडल ब्रिटिश ब्रिगेड को अपने आगमन के तुरंत बाद चिकित्सा मदद दी थी. एक परिणाम के रूप में अपनी मेडिकल यूनिट और अपने उपकरण व मेडिकल का सामान खोने की पूरी संभावना थी. क्योंकि उस दौरान वहां सिर्फ़ बदले की आग जल रही थी.
जैसे ही वहां चीन ट्रूप ने हमला किया, तो रंगराज की मेडिकल टीम के पास कोई ट्रांसपोर्ट सुविधा नहीं थी. लेकिन तब भी उन्होंने वहां से भाग निकलने की पूरी कोशिश की और एक स्टीम इंजन में निकल पड़े. लेकिन रंगराज के तेज़ दिमाग के चलते उनकी टीम सियोल पर ही उतर गई. क्योंकि सियोल और हान नदी के बीच एक कनेक्टिंग ब्रिज है. जिसे चीन ट्रुप्स और उत्तर कोरिया ने तबाह कर दिया था.
कड़ाके की ठंड में भी रंगराज और उनकी टीम ने वहां के घायल लोगों को अकेला नहीं छोड़ा. जब अमेरिकी सेना ने दुश्मन सैनिकों को फंसाने की योजना बनाई. तब रंगराज ऑपरेशन टॉमहॉक में 12 भारतीय अधिकारियों में से एक थे. जिन्होंने हान और इमजिन नदियों के बीच Contact Zone में छलांग लगाई थी.
अमेरिका की रणनीति फ़ीकी पड़ने लगी. क्योंकि दुश्मनों की तादाद बढ़ती ही जा रही थी और भारतीय मेडिकल यूनिट ने लड़ाई के मैदान में अपनी सेवाएं दिल से दी थी.
हड्डी गला देने वाली ठंड में भी भारीतय मेडिकल टीम सिर्फ़ और सिर्फ़ चाय-बिस्कुट पर रहती थी और 103 अमेरिकन सैनिकों की सर्जरी और 50 लोगों की जान भी बचाई थी. जिसके बाद उन्होंने वहां कोरियाई डॉक्टर और नर्स को ट्रैन भी किया, ताकि उनके न रहने पर वो लोगों की जान बचा सकें.
लड़ाई के बाद मेडिकल टीम अपने वतन यानी भारत वापस लौट आई. 39 महीने के सफ़लतापूर्वक जीवित रहने के बाद, रंगराज को अपनी सेवाओं के लिए परमवीर चक्र से भी नवाज़ा गया था.
सच में ऐसे साहसी सैनिकों ने ही तो हमारे देश का नाम विश्व में ऊंचा कर रखा है. हम ऐसे जवानों को सैल्यूट करते हैं.