सदियों से भारत पर विदेशी आक्रांता आक्रमण करते रहे हैं. भारतीय राजा-महाराजाओं ने उनका डटकर मुक़ाबला भी किया है. पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के नाम से तो हर कोई वाक़िफ़ है. हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि विदेशी आक्रमणकारियों को धूल चटाने में भारतीय वीरांगनाएं भी आगे रही हैं.
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ज़्यादातर भारतीय महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहत से तो परिचित हैं. मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि उनसे भी पहले भारत में ऐसी बहादुर महिलाएं हुई हैं, जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के हौसलों को पस्त किया है. इनमें कित्तूर की रानी चेनम्मा, रानी वेलु नचियार जैसे महिलाओं नाम शामिल हैं. आज हम एक ऐसी ही वीरांगना रानी नायकी देवी (Naiki Devi) की कहानी आपको बताने जा रहे हैं, जिनकी बहादुरी को देखकर मोहम्मद गोरी को भी भागने पर मजबूर होना पड़ा था.
गुजरात की चालुक्य रानी नायकी देवी (Naiki Devi)
जब मोहम्मद गोरी ने किया हमला करने का फ़ैसला
मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को तराइन के दूसरे युद्ध में हरा कर 1192 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत की नींव रखी. मगर दिल्ली पर कब्ज़ा करने से पहले उसने भारत पर कई बार आक्रमण किया था. ऐसा ही एक हमला उसने 1178 ईस्वी में गुजरात का अन्हिलवाड़ पाटन पर करने की कोशिश की. ये उस वक़्त चालुक्य वंश की राजधानी थी.
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दरअसल, राजा अजय पाल को मौत के बाद मोहम्मद गोरी को लगा था कि अब अन्हिलवाड़ पाटन पर कब्ज़ा करना बेहद आसाना होगा. क्योंकि, एक औरत और बच्चा उसका कुछ नहीं कर पाएंगे. मगर वो नहीं जानता था कि उसकी ग़लतफ़हमी बुरी तरह से दूर होने वाली है.
युद्ध कला में पारंगत थींं रानी नायकी देवी
गोवा के कदंब राजा की बेटी नायकी देवी (Naiki Devi) तलवारबाज़ी, घुड़सवारी, सैन्य रणनीति, कूटनीति और राज्य के अन्य सभी विषयों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित थीं. उन्हें जैसे ही मोहम्मद गोरी के मंसूबों के बारे में मालूम पड़ा, उन्होंने चालुक्य सेना की कमान संभाली और हमलावर सेना के लिए एक सुनियोजित विरोध को संगठित करने में खुद को झोंक दिया.
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ताकतवर दुश्मन को हराने के लिए किया दिमाग़ का इस्तेमाल
रानी नायकी देवी को युद्धकला की अच्छी समझ थी. साथ ही, वो वास्तविकता को भी जानती थीं. उन्हें मालूम था कि उनकी सेनी की तैयारियां काफ़ी नहीं है. वो अब ख़ुद की ताकत नहीं बढ़ा सकती थीं, मगर दुश्मन को कमज़ोर ज़रूर कर सकती थीं. इसलिए उन्होंने गदरघट्टा (Gadarghatta) को जंग का मैदान चुना.
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ये माउंट आबू की तलहटी पर स्थित एक उबड़-खाबड़ इलाका था. ये आज के राजस्थान के सिरोही ज़िले में ये जगह स्थित है. यहीं पर मोहम्मद गोरी और रानी नायकी देवी के बीच युद्ध हुआ, जिसे कसाहरादा का युद्ध (Battle of Kasahrada) कहते हैं.
इस जंग में रानी नायकी अपने बेटे मूलराज द्वितीय को भी साथ लेकर आईं. रानी और गोरी के बीच भयंकर युद्ध हुआ. चालुक्य सेना ने जिस उबड़-खाबड़ इलाके को चुना, उसका उन्हें फ़ायदा मिला. गोरी बुरी तरह हारा. यहां तक कि मोहम्मद ग़ोरी को कुछ अंगरक्षकों के साथ युद्ध भूमि छोड़ कर भागना पड़ा.
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इस युद्ध ने गोरी का घमंड ऐसा तोड़ा कि उसने दोबारा कभी गुजरात की ओर देखने की हिम्मत नहीं की. अगले साल उसने पंजाब के ज़रिए भारत में घुसने की कोशिश की और सफ़ल हुआ.
तमाम लेखों में मिलता है रानी की जीत का ज़िक्र
रानी नायकी देवी (Naiki Devi) की जीत का उल्लेख गुजरात के राज्य इतिहासकारों के साथ-साथ चालुक्य शिलालेखों में भी मिलता है. गुजराती कवि सोमेश्वर की रचनाओं में उल्लेख है कि कैसे मूलराज की सेना ने गोरी को हराया. एक अन्य कवि उदयप्रभा सूरी ने भी रानी की जीत का ज़िक्र किया है. इसके अलावा, भीम द्वितीय (मूलराजा द्वितीय के भाई और उत्तराधिकारी) के शासनकाल में लिखे एक चालुक्य शिलालेख में भी रानी की बहादुरी का ज़िक्र है. साथ ही, मोहम्मद ग़ोरी की हार का ज़िक्र 13वीं शताब्दी के फ़ारसी लेखक मिन्हाज-उस-सिराज के लेखों में भी इस युद्ध का उल्लेख मिलता है.
हालांकि, कसाहरादा की लड़ाई का सबसे विस्तृत विवरण 14 वीं शताब्दी के जैन इतिहासकार मेरुतुंग ने किया है. उसमें बताया गया है कि कैसे रानी नायकी देवी ने मोहम्मद गोरी की सेना को शिकस्त दी.