The First Indian to Own a Car: भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा Cars मार्केट बन चुका है. आज भारतीय कंपनियां दुनिया की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों में शुमार हैं. दुनिया के महंगे से महंगे Cars के ब्रांड्स भारत में आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन दशकों पहले ये सब इतना आसान नहीं था. अपनी मनपसंद की कार ख़रीदने के लिए भारतीय ग्राहकों को सालों लग जाते थे. क्योंकि विदेशी कार तब न केवल महंगी होती, बल्कि हम भारतीयों की पहुंच से भी काफ़ी दूर होती थीं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में पहली कार कब और कहां बिकी थी?

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दरअसल, सन 1890 के दशक में कलकत्ता (कोलकाता) व्यापार और उद्योग के सबसे बड़े केंद्रों में से एक था. यही वजह थी कि भारतीय बाज़ार में पहली बार जब कोई कार लॉन्च हुई तो उसे इसी शहर में आना पड़ा. इतना ही नहीं देश की पहली कार खरीदने का श्रेय भी इस शहर के ही एक उद्योगपति ने किया. कलकत्ता में सन 1911 तक अंगेज़ी हुकूमत का सिक्का चलता रहा.

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Financialexpress एक एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत की पहली कार सन 1897 में ख़रीदी गई थी. ये फ्रांस की DeDion कार थी. सन 1896 में जब कलकत्ता (कोलकाता) में इसकी लॉन्चिंग के इश्तेहार छपे तो लोग इसकी एक झलक पाने को बेचैन हो उठे थे. भारत में पहली कार ख़रीदने वाला शहर भी कलकत्ता ही था. सन 1897 में देश की पहले कार Crompton Greaves कंपनी से जुड़े मिस्टर फोस्टर ने खरीदी थी.

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जमशेदजी टाटा थे कार ख़रीदने वाले पहले भारतीय

भारत में उस दौर में टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) का बड़ा नाम था. एक वही थे जो कार ख़रीदने वाले पहले भारतीय बन सकते थे और हुआ भी ऐसा ही. कलकत्ता में देश की पहली कार ख़रीदे जाने के एक साल बाद सन 1898 में बॉम्बे (मुंबई) में भी 4 कारों की बिक्री हुई. इन चारों कारों को ख़रीदने वाले पारसी समुदाय के लोग थे. जमशेदजी टाटा भी उन्हीं 4 ख़रीदारों में से एक थे.

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सन 1901 में देश के एक और बड़े शहर मद्रास (चेन्नई) को अपनी पहली कार मिली थी. ये कार पैरी एंड कंपनी के निदेशक ए. जे. यॉर्क के पास थी. जबकि दक्षिण भारत की पहली पंजीकृत कार ‘MC-1’ थी, जिसे उस समय मद्रास रेलवे बोर्ड के सचिव फ्रांसिस स्प्रिंग ने ख़रीदी थी. मद्रास में ख़ुद की कार ‘MC-3’ ख़रीदने वाले पहले भारतीय टी. नम्बरुमल चेट्टी थे.

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कलकत्ता के ज़मींदारों ने ख़रीदी कई कारें 

सन 1907 तक कारें कलकत्ता (कोलकाता) की संस्कृति का हिस्सा बनने लगी थीं. इन महंगी कारों के ख़रीददार उस दौर के बड़े-बड़े जमींदार हुआ करते थे. साल 1910 आते-आते पैसे का रौब और आम लोगों के बीच रुतबा दिखाने के लिए ज़मींदारों द्वारा खूब कारें ख़रीदी जाने लगीं. इस दौरान कई विदेशी कंपनियां भारतीय बाज़ार में अपनी कार लेकर आईं, लेकिन सबसे ज़्यादा डिमांड Lanchesters और Ford Model T की रही.  

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कहा जाता है कि ‘प्रथम विश्व युद्ध’ के ख़त्म होने से पहले तक भारत में 1,000 से अधिक कारें बिक चुकी थीं. भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका थी, जो 30 दिसंबर 1998 को लॉन्च हुई थी.