ये बात बिल्कुल सच है. सन 1989 में पेप्सी (Pepsi) कंपनी के पास दुनिया की छठी सबसे बड़ी सेना थी. उस वक्त पेप्सी के पास 17 पनडुब्बियां, 1 युद्धपोत, 1 क्रूज़र और 1 विध्वंसक जहाज़ हुआ करता था. लेकिन ऐसे में सवाल ये उठता है कि पेप्सी जैसी शीतपेय बनाने वाली अमेरिकन कंपनी को इतनी भारी युद्ध सामग्री की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?
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बेहद रोचक है इसके पीछे की कहानी
दरअसल, सन 1959 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रहे तनाव को कम करने के मकसद से अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डेविड आइज़नहावर (Dwight David Eisenhower) ने अमेरिकी संस्कृति और उत्पादों के लिए मास्को में एक प्रदर्शनी का आयोजन कराने का फ़ैसला किया. इस काम की ज़िम्मेदारी उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी उपराष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन (Richard Nixon) को सौंपी. इस संबंध में निक्सन ने मॉस्को में सोवियत संघ के प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव (Nikita Khrushchev) से मुलाकात की.
इस ख़ास मौके पर अमेरिकी संस्कृति को बढ़ावा देने और सोवियत को अमेरिकी उत्पादों से परिचित कराने के लिए Disney और Pepsi जैसे बड़े अमेरिकी ब्रांडों ने भी प्रदर्शनी में भाग लिया. लेकिन उद्घाटन समारोह के दौरान अमरीकी उपराष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और सोवियत पीएम निकिता ख्रुश्चेव किसी बात को लेकर बहस में पड़ गये. इन दोनों नेताओं के बीच गहमागहमी इतनी तेज़ हो गई कि वहां मौजूद पेप्सी के उपाध्यक्ष डोनाल्ड केंडल (Donald M. Kendall) को बीच बचाव तक करना पड़ा.
पेप्सी के 1 प्याले ने किया कमाल
इस बीच पेप्सी के उपाध्यक्ष, डोनाल्ड केंडल ने सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव का ग़ुस्सा शांत करने के लिए उन्हें पेप्सी का एक प्याला थमा दिया. निकिता को पेय इतना पसंद आया कि उन्होंने तुरंत सोवियत संघ में इसके प्रवेश की अनुमति दे दी. ये वास्तव में डोनाल्ड केंडल की एक शातिर मार्केटिंग स्ट्रेटेजी थी. ये कदम उनके करियर के लिए बेहद मददगार साबित हुआ और उन्हें ‘पेप्सी’ के सीईओ के रूप में नियुक्त कर लिया गया.
डोनाल्ड केंडल और निकिता ख्रुश्चेव की इस बातचीत के दौरान ये भी तय किया गया कि 1985 तक पेप्सी के कट्टर प्रतिस्पर्धी कोका कोला को सोवियत यूनियन में व्यापार करने की अनुमति नही होगी, लेकिन इस दौरान समस्या ये थी कि उस दौर में सोवियत संघ के बाहर रूसी रूबल की वैल्यू न के बराबर थी. इसलिए पेप्सी और सोवियत सरकार को पुराने जमाने की वस्तु विनिमय के सहारे ये डील करनी पड़ी.
‘पेप्सी’ के बदले ‘वोदका’ की डील
इस दौरान ये निर्णय लिया गया कि इस डील के लिए पेय विनिमय सबसे उचित विकल्प रहेगा. ऐसे में रूस ने अपने प्रसिद्ध पेय पदार्थ वोदका (Vodka) के लिए पेप्सी (Pepsi) की अदला-बदली का फ़ैसला लिया. इसके बाद पेप्सी ‘सोवियत संघ’ में बेचा जाने वाला पहला पश्चिमी पेय उत्पाद बन गया और ‘वोदका’ को भी अमेरिका में मादक पेय उत्पाद के रूप में प्रवेश की अनुमति मिल गई.
रूस पर 3 अरब डॉलर का बकाया
सोवियत संघ इसे फ़ायदे का सौदा समझ रहा था, क्योंकि ‘वोदका’ सरकार के स्वामित्व में थी. उस दौर में इसका सोवियत संघ ने बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता था. सन 1989 तक ‘पेप्सी’ ने सोवियत बाज़ार को सालाना 3 अरब डॉलर तक बढ़ा दिया था. लेकिन इधर अमेरिका में वोदका को लेकर समस्याएं पैदा होने लगीं. इसके पीछे दो कारण थे. पहला ये कि ‘पेप्सी’ को ‘वोदका’ की बराबर मात्रा की आवश्यकता नहीं थी और दूसरा सोवियत संघ द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण के चलते अमेरिका में ‘वोदका’ की बिक्री बेहद कम हो गई.
सैन्य उपकरण रखे गिरवी
सोवियत संघ ‘पेप्सी’ की आपूर्ति को बनाए रखने के लिए बेताब था, लेकिन उसके सामने समस्या ये खड़ी हो गई कि ‘पेप्सी’ को भुगतान कैसे किया जाए? इस बीच सोवियत सरकार पेप्सी कंपनी का 3 बिलियन डॉलर बकाया हो गया. सोवियत सरकार इस रकम को चुकाने के लिए अन्य वस्तुओं की तलाश की करने लगी, लेकिन कुछ समझ नहीं आया. ऐसे में सोवियत सरकार ने थक हारकर ‘शीत युद्ध’ में इस्तेमाल हुये ‘सैन्य उपकरणों’ को गिरवी रखने का फ़ैसला किया.
Pepsi
दुनिया की छठी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति
सोवियत संघ ने 3 अरब डॉलर के बकाया के बदले में पेप्सी कंपनी को 17 पनडुब्बियों, 1 क्रूज़र, 1 युद्धपोत और 1 विध्वंसक देने का प्रस्ताव रखा. ऐसे में ‘पेप्सी’ भी रूस में अपना बाज़ार खोना नहीं चाहती थी इसलिए उसने इस सौदे को स्वीकार कर लिया. इस ऐतिहासिक सौदे ने पेप्सी कंपनी को उस समय दुनिया की छठी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति बना दिया था.
ये सैन्य उपकरण पेप्सी (Pepsi) के किसी भी काम के नहीं थे. इसलिए उसने पूरे बेड़े को एक स्वीडिश कंपनी को स्क्रैप रीसाइक्लिंग के लिए बेच दिया.
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