बात प्रथम विश्व युद्ध (First World War) के दौरान की है. ब्रिटिश-भारतीय सेना इस दौरान जर्मनी, ऑस्ट्रिया और हंगरी के ख़िलाफ़ ये युद्ध लड़ी थी. ‘प्रथम विश्व युद्ध’ में लाखों भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था. इस दौरान हज़ारों भारतीय सैनिक शहीद भी हुए थे. लेकिन उन्हें शहीदों का वो दर्जा नहीं दिया गया, जो आज मिलता है. प्रथम विश्व युद्ध से पहले तक अंग्रेज़ भारतीयों को सेना में तो शामिल किया करते थे, लेकिन उन्हें कोई भी बड़ी रैंक नहीं दी जाती थी. हालांकि, ‘प्रथम विश्व युद्ध’ में भारतीय सैनिकों के शौर्य और पराक्रम को देख अंग्रेज़ों की सोच में बदलाव आया.

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प्रथम विश्व युद्ध (First World War) ख़त्म होने के बाद सन 1919 में अंग्रेज़ों ने कई भारतीय सैनिकों को ‘किंग्स कमिशन’ दिया गया और उन्हें बतौर अफ़सर ‘ब्रिटिश-भारतीय सेना’ में शामिल किया. ब्रिटिश सेना ने विश्व युद्ध के दौरान क़रीब 12 लाख भारतीय सिपाहियों को युद्ध लड़ने के लिए फ़्रांस, बेल्जियम, मिस्र, मेसोपोटामिया, गालीपोली और सिनाई भेजा था. इन सिपाहियों में से तक़रीबन 1.30 लाख सिख सैनिक थे. इस दौरान 4 भारतीय सैनिकों ने ‘रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स’ और ‘रॉयल एयर फ़ोर्स’ के फ़ाइटर जेट उड़ाए थे. इनमें से एक ग्रुप कैप्टन हरदित सिंह मलिक (Hardit Singh Malik) भी थे, जिन्हें रियल फ़्लाइंग सिख (The Real Flying Sikh) के नाम से भी जाना जाता है.

The Real Flying Sikh

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कौन थे सरदार हरदित सिंह मलिक? 

The Real Flying Sikh: सरदार हरदित सिंह मलिक (Sardar Hardit Singh Malik) एक भारतीय सिविल सर्वेंट और राजनयिक थे. वो कनाडा में पहले भारतीय उच्चायुक्त और फ़्रांस में भारत के राजदूत भी थे. हरदित सिंह मलिक ‘प्रथम विश्व युद्ध’ में ब्रिटिश ‘रॉयल फ्लाइंग कोर’ के साथ पायलट के रूप में उड़ान भरने वाले पहले भारतीय थे. सन 1944 में वो पंजाब में मंत्री के पद पर भी रहे. इसके अलावा हरदित सिंह ने सन 1914 और 1930 के बीच ‘प्रथम श्रेणी क्रिकेट’ भी खेला था.

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सरदार हरदित सिंह मलिक का जन्म 23 नवंबर 1894 में पाकिस्तान के रावलपिंडी (तब का भारत) में हुआ था. वो एक अमीर सिख परिवार से ताल्लुक़ रखते थे. 14 साल की उम्र में उनके माता-पिता बहादुर मोहन सिंह और लाजवंती सिंह ने आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया था. सन 1912 में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड के Balliol College से हिस्ट्री की पढ़ाई की. यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले वाले वो अपने परिवार के पहले सदस्य थे. हरदित पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि खेल-कूद में भी आगे थे. सन 1915 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की.

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पढ़ाई ही नहीं, खेल में भी थे माहिर  

यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के दौरान हरदित सिंह मलिक ‘ससेक्स क्रिकेट क्लब’ की तरफ़ से क्रिकेट भी खेलते थे. इस दौरान उन्होंने 18 प्रथम श्रेणी मैच खेले थे. सन 1914 में ससेक्स के लिए 5 काउंटी चैम्पियनशिप मैच भी खेले. रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स (RFC) में शामिल होने के बावजूद वो सन 1921 में ‘ससेक्स’ के लिए फिर से क्रिकेट खेले. इस दौरान उन्होंने ‘ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी’ के लिए 1 मैच खेला था. सन 1923 के बीच भारत में ‘लाहौर टूर्नामेंट’ में सिखों और हिंदुओं की टीम से भी खेला. हरदित सिंह मलिक ने इसके अलावा गोल्फ़ में ‘ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय’ का प्रतिनिधित्व भी किया, उन्होंने गोल्फ़ में ‘ऑक्सफ़ोर्ड ब्लू’ मार्क हासिल किया था.

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1916 में जॉइन की ‘फ़्रेंच सेना’

सन 1915 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन करने के बाद हरदित सिंह मलिक रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स (RFC) में शामिल होन चाहते थे. लेकिन ‘रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स’ में भारतीयों के लिए कोई वैकेंसी नहीं थी. इसके बाद सन 1916 में उन्होंने बतौर एम्बुलेंस ड्राइवर ‘French Red Cross’ जॉइन कर ली. हरदित को जब ‘फ्रैंच एयर फ़ोर्स’ ने ‘Aeronautique Militaire’ से जुड़ने का ऑफ़र दिया तो ये बात ऑक्सफ़ोर्ड के ट्यूटर Sligger Urquhart को पता लग गयी. उन्होंने तुरंत ‘रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स’ के कमांडर David Henderson को खत लिखकर हरदित को मौका देने की सिफ़ारिश कर डाली. आख़िरकार 6 अप्रैल 1917 को उन्हें ‘रॉयल फ़्लाइंग कॉर्प्स’ में सेकंड लेफ़्टिनेंट के रूप में मानद अस्थायी कमीशन मिला.

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कैसे पड़ा फ़्लाइंग सिख नाम? 

हरदित सिंह मलिक ने 1 अप्रैल 1917 से ‘नंबर 1 आर्मामेंट स्कूल’ में प्रशिक्षण लेना शुरू किया और 13 जुलाई 1917 को उन्हें ‘नंबर 26 स्क्वाड्रन’ में बतौर फ़्लाईंग ऑफ़िसर नियुक्त कर लिया गया. हरदित सिंह मलिक भारत के पहले ‘फ़ाइटर पायलट’ थे जो ‘ब्रिटिश एयरफ़ोर्स’ की तरफ़ से लडे, लेकिन अपनी शर्तों पर. दरअसल, हरदित सिंह मलिक पग्ग धारी सिख थे इसलिए उन्होंने फ़्लाईंग के दौरान अपनी पगड़ी उतारने से इंकार कर दिया था. हालांकि, बाद में उन्होंने एक विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया फ़्लाईंग हेलमेट पहना जो उनकी पगड़ी पर फिट था. उनके असामान्य हेलमेट की वजह से उनका निकनेम ‘Flying Hobgoblin’ रखा गया. इसी वजह से उन्हें ‘Flying Sikh’ भी कहा जाता था. 

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फ़ाइटर जेट पर 400 बुलेट्स लगने के बाद भी बच निकले

सन 1917 में हरदित सिंह मलिक को No. 28 Squadron RFC में तैनात कर दिया गया. इस दौरान पश्चिमी मोर्चे पर ‘Sopwith Camel’ नामक फ़ाइटर जेट उड़ाने लगे. इस दौरान उनके कमांडर कनाडाई मेजर विलियम बार्कर थे, जिन्होंने बाद में विक्टोरिया क्रॉस जीता था. हरदित मलिक ने 18 अक्टूबर, 1917 को पहली बार कार्रवाई करते हुए 1 जर्मन विमान को मार गिराया था. इस दौरान उन्हें जीत का श्रेय दिया गया था. 26 अक्टूबर को फ़्रांस और इटली के लड़ाकू अभियानों के दौरान उन्होंने 1 जर्मन विमान समेत दुश्मन के कई सैनिकों को मार गिराया था, लेकिन डॉग-फ़ाइट के दौरान उनके दाहिने पैर में चोट लग गई. बावजूद इसके वो अपने साथियों के साथ जर्मन विमानों पर घात लगाकर हमला करते रहे और वहां से बच निकले. हालांकि, बेस पर लौटने तक वो गंभीर रूप से घायल और बेहोश हो गए थे. इस दौरान उनके प्लेन पर दुश्मनों ने 400 से ज़्यादा बुलेट्स दागे थे. 

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‘इंडियन सिविल सर्विसेज़’ के लिए ‘ब्रिटिश एयर फ़ोर्स’ छोड़ दी  

The Real Flying Sikh: हरदित सिंह मलिक गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद जीवित बच निकले. युद्ध ख़त्म होने के बाद उन्होंने ‘इंडियन सिविल सर्विसेज़’ जॉइन किया. इस दौरान हरदित सिंह मलिक ने ये भांप लिया था कि ‘ब्रिटिश एयर फ़ोर्स’ में भारतीय पायलट्स के लिए ज़्यादा स्कोप नहीं है. प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सिपाहियों की जांबाज़ी को पहचान दी. भारत को एक Sopwith Camel प्लेन दिया गया. इस प्लेन को हरिदत मलिक ख़ुद उड़ाकर मैंचेस्टर तक लेकर गए.

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भारत की आज़ादी के बाद सरदार हरदित सिंह मलिक को कनाडा में भारत का पहला ‘हाई कमिश्नर’ बनाकर भेजा गया. इस दौरान उन्होंने भारतीयों को कनाडा की नागरिकता दिलाने में अहम भूमिका निभाई. सन 1956 में फ़्रांस में भारतीय राजदूत की भूमिका निभाने के बाद वे रिटायर हुए. आख़िरकार 31 अक्टूबर 1985 को 90 साल की उम्र में सरदार हरदित सिंह मलिक ने अंतिम सांस ली. मार्च 2021 में ब्रिटिश सरकार ने सरदार हारदित सिंह मलिक की एक प्रतिमा लगाने की घोषणा की थी. The Real Flying Sikh