The True Story of Capt. Gopinath: आपने ‘फ़र्श से अर्श’ तक पहुंचने की कई कहानियां सुनी होंगी. ये कहानियां अक्सर हमें प्रेरित करके का काम करती हैं. वैसे भी मशहूर लोगों की सफ़लता की कहानी हमें आकर्षित करती है. हमारे आप-पास ऐसी कई कहानियां मौजूद होती हैं, लेकिन हम इनसे अक्सर अनजान रहते हैं. आज हम आपको ऐसी ही एक कहानी बताने जा रहे हैं जिसमें एक शख़्स ने फ़र्श से अर्श तक पहुंचने की इस कहावत को अपनी मेहनत और जज़्बे से सच कर दिखाया था.

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क्या बैलगाड़ी हांकने वाला एक साधारण सा लड़का एक दिन देश की सबसे सस्ती एयरलाइंस का मालिक बन सकता है? 21वीं सदी में ऐसा नामुमकिन सा लगता है, लेकिन एक शख़्स है जिसने ये असंभव कारनामा कर दिखाया था. असल में आज हम आपको बैलगाड़ी के बहाने कैप्टन गोपीनाथन की कहानी बताने जा रहे हैं. कैप्टन जी. आर. गोपीनाथ (Captain G. R. Gopinath) वही शख़्स हैं जिन्होंने देश के हर आम आदमी के हवाई सपने को पूरा किया था. इस अहमियत को वही शख़्स समझ सकता है जो खु़द सपने देखता हो. लेकिन सफलता की ये कहानी जीतनी आसान लगती है उससे कहीं मश्किल है.

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कौन हैं कैप्टन गोपीनाथ? 

गोरूर रामास्वामी अयंगर गोपीनाथ का जन्म 13 नवंबर,1951 में कर्नाटक के गोरूर के एक छोटे से गांव में हुआ था. परिवार में 8 भाई बहन थे. ऐसे में हर बच्चे की परवरिश पर बराबर ध्यान दे पाना पिता के लिए मुश्किल था. गोपीनाथ के पिता ​किसान होने के साथ ही स्कूल टीचर और कन्नड़ उपन्यासकार थे. इसलिए गोपीनाथ की शुरूआती पढ़ाई घर पर ही हुई. इसके बाद गोपीनाथ 5वीं क्लास में पहली बार एक कन्नड़ स्कूल पहुंचे. पढ़ाई के साथ वे अपने पिता के काम में उनकी मदद भी करते थे. गोपीनाथ ने पिता को आर्थिक मदद देने के लिए बचपन में बैलगाड़ी भी चलाई.

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जी. आर. गोपीनाथ ने साल 1962 में ‘बीजापुर सैनिक स्कूल’ का कठिन टेस्ट पास कर यहां दाखिला लिया. इसी स्कूल ने एनडीए प्रवेश परीक्षा (NDA Entrance Exam) पास करने में उनकी मदद की थी. आख़िरकार 3 साल के कड़े प्रशिक्षण के बाद गोपीनाथ ने पुणे के ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ से शिक्षा पूरी की. फिर देहरादून के ‘इंडियन मिलिट्री अकादमी’ से स्नातक किया. इसके बाद गोपीनाथ ने भारतीय सेना में कैप्टन का कमीशन पद हासिल किया. सन 1971 के ‘बांग्लादेश मुक्ति युद्ध’ में भाग लेने वाले कैप्टन गोपीनाथ भारतीय सेना में 8 वर्षों तक अपनी सेवाएं देने के बाद केवल 28 साल की उम्र में सेना से रिटायर हो गए.

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कैप्टन गोपीनाथ का असली संघर्ष इसके बाद शुरू हुआ. नौकरी छोड़ चुके थे पर परिवार चलाने की आर्थिक ज़िम्मेदारी तो थी ही, साथ ही सपने थे. जो उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ते थे. इस दौरान गोपीनाथ ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर डेयरी फ़ार्मिंग, रेशम उत्पादन, पोल्ट्री फ़ार्मिंग, होटल, एनफ़ील्ड बाइक डील, स्टॉकब्रोकर समेत कई फ़ील्ड में हाथ आजमाया लेकिन उन्हें कहीं भी कोई ख़ास सफलता हाथ नहीं लगी.

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अमेरिका में आया ख़ुद की ‘एयरलाइंस’ शुरू करने का आईडिया

कैप्टन गोपीनाथ ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि, वो साल 2000 में ​अपने परिवार के साथ अमेरिका के फ़ीनिक्स में छुट्टियां मनाने गये हुये थे. इस दौरान एक दिन बालकनी में बैठकर चाय पी रहे थे तभी उनके सिरे की उपर से एक के बाद एक कई हवाई जहाज़ गुज़रे. ये उनके लिए आश्चर्य से भरा विषय था क्योंकि उन दिनों भारत में हवाई सेवाएं इतनी मज़बूत और आसान नहीं थीं. बस यहीं से उन्हें ख़ुद की ‘एयरलाइंस’ शुरू करने का आईडिया आया और हिंदुस्तान के हर एक आम आदमी के हवाई सपने को पूरा करने की कसम खाई.

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कैप्टन गोपीनाथ ने इसके बाद फ़ीनिक्स के इस स्थानीय एयरपोर्ट के बारे में जानकारियां हासिल की तो पता चला कि ये अमेरिका के टॉप-10 एयरपोर्ट में भी शामिल नहीं है. बावजूद इसके इस एयरपोर्ट से प्रतिदिन 1000 उड़ानें ऑपरेट होती हैं और ये हर रोज़ क़रीब 1 लाख यात्रियों को सेवाएं देता था. अगर भारत के लिहाज से देखा जाए तो उस समय भारत के 40 एयरपोर्ट मिलकर भी इतनी उड़ानें नहीं दे पा रहे थे. लेकिन उस दौर में अमेरिका में 1 दिन में 40,000 कमर्शियल उड़ानें चलती, जबकि भारत में केवल 420 उड़ानें ही ऑपरेट हो पाती थीं. 

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शुरू की ख़ुद की एयरलाइंस 

कैप्टन गोपीनाथ को आइडिया आया कि अगर भारत में प्रतिदिन बसों और ट्रेनों में चलने वाले 3 करोड़ लोगों में से केवल 5 फ़ीसदी लोग भी हवाई जहाज़ों से सफर करने लगें तो विमानन बिज़नेस को हर साल 53 करोड़ उपभोक्ता मिलेंगे. बस इसी ख्याल ने उन्हें एविएशन फ़ील्ड में उतार दिया. इस दौरान सबसे मुश्किल काम था पैसों का इंतजाम करना. ऐसे में गोपीनाथ की प​त्नी ने उन्हें अपनी सारी सेविंग्स दे दीं. जबकि दोस्तों ने अपनी FD तोड़कर उन्हें पैसा दिया. 

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बात साल 1997 की है. कैप्टन गोपीनाथ कड़ी मेहनत के बाद Deccan Charters नाम से हेलीकाप्टर सेवा शुरू कर चुके थे. लेकिन आम लोगों का हवाई सफर का सपना पूरा होना अब भी बाकी था. आख़िरकार 25 अगस्त 2003 को कैप्टन गोपीनाथ ने 48 सीटों और 2 इंजन वाले 6 फ़िक्स्ड-विंग टर्बोप्रॉप हवाई जहाज़ों के बेड़े के साथ रीजनल एयरलाइंस एयर डेक्कन (Air Deccan) की स्थापना की. इस दौरान पहली उड़ान दक्षिण भारतीय शहर हुबली से बेंगलुरु रही.

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Air Deccan से शुरुआत में केवल 2000 लोग हवाई सफर कर रहे थे, लेकिन 4 साल के भीतर ही प्रतिदिन 25,000 लोग सस्ती क़ीमतों पर हवाई सफर करने लगे. साल 2007 में देश के 67 हवाईअड्डों से 1 दिन में एयर डेक्कन की 380 उड़ानें चलाई जा रही थीं और कंपनी के पास अब 45 विमान हो चुके थे. इस दौरान उन्होंने नो-फ्रिल एप्रोच को अपनाते हुए, अपने ग्राहकों को अन्य एयरलाइंस की तुलना में आधे दर पर टिकट की पेशकश की. इसमें एक यूनिफार्म इकोनॉमी केबिन क्लास और यात्रा के दौरान खाने-पीने का भुगतान तक शामिल था. इस दौरान कंपनी ने ग्राहकों से कम किराया लिया पर विज्ञापन के ज़रिए अच्छा राजस्व कमाया.

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एयर डेक्कन (Air Deccan) ने अपने यात्रियों को 24 घंटे कॉल सेंटर की सेवा उपलब्ध की, ताकि वो कभी भी टिकट बुक कर सकते हैं. ये सब भारत में पहली बार हुआ था. सबकुछ सही चल रहा था और एयर डेक्कन के विमान हवा से बातें कर रहे थे, लेकिन साल 2007 के अंत तक कई और कंपनियां भी एविएशन फ़ील्ड में उतर आईं. इस दौरान इन एयरलाइंस ने भी शुरूआत में गोपीनाथ के फ़ॉर्मेूले को ही अपनाया और हवाई यात्राओं को आम नागरिकों की पॉकेट के हिसाब से सेट किया. ऐसे में कुछ ही समय बाद ‘एयर डेक्कन’ को दूसरी विमान कंपनियों से कड़ी टक्कर मिलने लगी. इस बीच कंपनी का घाटा बढ़ता गया और कंपनी के लिए बढ़ती क़ीमतों के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल होता गया.

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कैप्टन गोपीनाथ ने सब कुछ ख़त्म होने से पहले ही Air Deccan का सौदा शराब कारोबारी विजय माल्या की कंपनी ‘किंगफिशर’ से कर लिया. इसके बाद माल्या ने विजय एयर डेक्कन को नया नाम दिया ‘किंगफिशर रेड’. गोपीनाथ को भरोसा था कि भले ही वो एयर डेक्कन के साथ नहीं हैं, लेकिन उनका सपना हवाई उड़ान भरता रहेगा. लेकिन ये बात और है कि माल्या कभी भी गोपीनाथ के सपने को संजो नहीं पाए और कंपनी साल 2013 में किंगफ़िशर भी बंद हो गई.

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कैप्टन गोपीनाथ कभी भी नई चीज आजमाने से डरे नहीं. कंपनी बंद होने के बाद साल 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो पाये. आज वो अपने परिवार के साथ बेंगलुरू में रहते हैं. साल 2017 में उन्होंने अपनी दूसरी किताब ‘यू मिस नॉट दिस फ्लाइट: एसेज ऑन इमर्जिंग इंडिया’ लिखी थी. गोपीनाथ कहते हैं कि ‘एयर डेक्कन का सपना अब भी जीवित है और सस्ती उड़ान सेवा के लिए क्रांति अब भी जारी है’.

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साल 2020 में कैप्टन गोपीनाथ की ज़िंदगी पर आधारित Soorarai Pottru नाम की तमिल फ़िल्म बन चुकी है. ये फ़िल्म सुपर-डुपर हिट रही थी. इसमें साउथ के सुपरस्टार सूर्या (Suriya) ने का लीड रोल निभाया था.