When Radium Took the Lives of Many Girls: रेडियम को अब तक आप एक चमकने वाली चीज़ के रूप में जानते होंगे. इसका इस्तेमाल घड़ियों के डायल पर होता आया है, ताकि अंधेरे में भी वक़्त देखा जा सके. इसके अलावा, घर में सज़ाने वाली चीज़ों और हैंड बैंड्स में भी इसका प्रयोग किया जाता है. लेकिन, इसके इतिहास पर अगर आप गौर करें, तो आपको पता चलेगा कि अनजाने में कई लोग इस चमकने वाली चीज़ के ज़रिये मौत को गले ला चुके हैं. 

इस लेख में हम आपको प्रथम विश्व युद्ध के शुरुआती वक़्त की ओर लिये चलते हैं, जब अमेरिका की कई घड़ी बनाने वाली फ़ैक्ट्रियों में इसका इस्तेमाल सैनिकों के लिए किया जा रहा था, ताकि अंधेरे में भी समय देखा जा सके. 

वहीं, ये जानना भी दिलचस्प होगा कि घड़ी के डॉयल पर रेडियम लगाने वाली लड़कियों को ‘Ghost Girl’ क्यों कहा जाता था? 

Radium
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आइये, विस्तार से पढ़ते (When Radium Took the Lives of Many Girls) हैं आर्टिकल

देशभक्ति दिखाने का एक मौक़ा 

Radium Girl
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Story of Radium Girls in Hindi: प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत में अमेरिका की घड़ी बनाने वाली कई फ़ैक्ट्रियों में रेडियम का इस्तेमाल आम घड़ियों और सेना द्वारा पहने जाने वाली घड़ियों के डॉयल में किया जाता था, ताकि अंधेरे में भी समय देखा जा सके. 

Arlene Balkansky नाम की एक शोधकर्ता के अनुसार, घड़ी के डॉयल पर रेडियम लगाने के काम में सैकड़ों लड़कियां शामिल थीं और वो इस काम को लेकर बड़ी उत्साहित भी थीं. वहीं, जब प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका शामिल हुआ, तो कई लड़कियां इस काम को देशभक्ति के रूप से भी देख रही थीं. रेडियम (History of Radium in Hindi) एक केमिकल एलिमेंट है, जिसकी खोज 1898 में Marie and Pierre Curie ने की थी. 

बहुत लोग इसे उस दौरान चमत्कारी चीज़ समझते थे, इसलिए इसका इस्तेमाल टूथपेस्ट, कोस्मेटिक और कई अन्य चीज़ों में किया जा रहा था. 

कैसे किया जाता था घड़ियों पर रेडियम लगाने का काम

Radium Girl
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Story of Radium Girls in Hindi: घड़ी के डॉयल पर रेडियम लगाने के लिए लड़कियां रेडियम पाउडर को पानी और गोंद के साथ मिलाकर एक पेंट बना लिया करती थीं. इसके बाद ऊंट के बालों से बने ब्रश से रेडियम पेंट को घड़ी के डायल और नंबरों पर लगाया जाता था. वहीं, ब्रश की नोक थोड़ी देर में ख़राब हो जाया करती थी. वहीं ब्रश की दोबारा नोक बनाने के लिए लड़कियों होंठ का सहारा लिया करती थीं. इसका स्वाद अजीब नहीं था और लड़कियां इस तथ्य से वाकिफ़ नहीं थीं कि ये रेडियम उनके लिए घातक साबित हो सकता है. 

डायल पेंट करने वाली लड़कियों को कहा जाता था ‘Ghost Girl’ 

Radium causes death
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रेडियम से घड़ियों के डायल को पेंट करने का काम लड़कियां रोज़ाना करती थीं. वहीं, काम के दौरान लड़कियों के कपड़ों, बालों व त्वचा पर रेडियम के कण गिरते थे, जो चमकते थे. इस वजह से इन लड़कियों को घोस्ट गर्ल कहा जाता था. रेडियम के घातक परिणाम से अनजान लड़कियां इसे अलग तरीक़ें से ले रहीं थीं. वो रोज़ अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर काम करने आती थीं, ताकि जब वो काम के बाद बाहर घूमने जाएं, तो उनके कपड़े चमकें. 

लड़कियां इस न सिर्फ़ कपड़ों बल्कि दांतों और नाखूनों पर भी लगा लिया करती थीं, ताकि वो बॉयफ़्रेंड को सरप्राइज़ कर सकें. 

जब सामने आए रेडियम के घातक परिणाम 

Death by Radium
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When Radium Became Cause of Death: जल्द ही रेडियम के घातक परिणाम सामने आ गए. इसका पहला शिकार अमेलिया मैगिया नाम की लड़की हुई. सबसे पहले दांतों में दर्द हुआ, ख़ून रिसने लगा और साथ ही मवाद आने लगी और मुंह के अल्सर जैसे परिणाम देखने को मिले.  

अमेलिया के निचले जबड़े को काटना पड़ा गया, लेकिन संक्रमण शरीर के बाकी हिस्से में भी फैल गया. वहीं, आगे चलकर उनकी मौत हो गई. 

एक रहस्यमयी मौत 

Radium Poison
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घड़ियों के डॉयल पर रेडियम लगाने वाली लड़कियां गंभीर बीमारियों का शिकार होने लगीं. वहीं, डॉक्टर होनें वाली मौतों के सटीक कारण का पता नहीं लगा पा रहे थे. ग्रेस फ्रेयर नाम की लड़की ने ये काम छोड़ दिया था, लेकिन दो साल बाद उनके भी दांत टूटने लगे और मुंह में फोड़ा निकल आया. जांच कराई तो डॉक्टर ने कहा कि ये पिछले काम की वजह से ऐसा हो सकता है. 

वहीं, जब इस पर अध्ययन किया गया, तो पता चला कि ज़्यादातक काम करने वालों में संक्रमण मौजूद है. वहीं, कई लोगों में Advance Radium Necrosis के लक्षण भी पाए गए थे.  

जब अमेलिया की लाश को निकाला गया 

1927 को ग्रेस फ्रेयर ने यूएस रेडियम कॉर्पोरेशन के खिलाफ़ एक मुक़दमा दायर किया. इस मुकदमे के साथ अन्य चार पीड़ित महिलाएं भी जुड़ीं. वहीं, जांच के लिए जब अमेलिया की लाश को निकाला गया, तो पाया गया कि उसकी हड्डियां चमकदार थीं.  कहते हैं कि 1928 में जब मुक़दमे की पहली सुनवाई हुई, तो उन महिलाओं शपथ के लिए हाथ उठाने तक की हिम्मत नहीं थी. अगली सुनवाई में ये महिलाएं शारीरिक और मानसित तौर से कोट में शामिल होने की स्थिति में नहीं थी. 

बाद में ये महिलाएं कंपनी द्वारा 10 हज़ार डॉलर और बचे जीवन तक प्रतिवर्ष 600 डॉलर देने की बात पर राज़ी हुईं. इसमें सभी मेडिकल और क़ानूनी ख़र्च भी शामिल था.