Who Hunted Last Cheetah in India in Hindi: भारतीय भूमि पर चीतों को 70 साल के बाद देखा गया है और ये तब मुमकिन हुआ जब भारत सरकार ने एक ख़ास कदम उठाते हुए दक्षिण अफ़्रीकी देश नामीबिया से 8 चीते मंगवाए. इन चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में रखा गया है. जानकारी के अनुसार, कुछ वक़्त तक ये चीते ख़ास निगरानी में रहेंगे और फिर इन्हें अंदर जंगल में छोड़ दिया जाएगा, ताकि ये प्राकृतिक रूप से शिकार और अपनी प्रजनन क्रिया कर सकें.

देखा जाए, तो बहुतों को इस विषय में जानकारी नहीं होगी कि भारत में आख़िरी चीते कब देखे गए थे. वहीं, ये भी पता नहीं होगा कि किस शख़्स ने भारत के आख़िरी चीतों का शिकार किया था.

इस विषय में पूरी जानकारी (Who Hunted Last Cheetah in India in Hindi) के लिए इस लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ें.  

देश के आख़िरी चीतों के शिकारी की कहानी

Who Hunted Last Cheetah in India in Hindi: साल 1952 में भारत सरकार ने चीतों को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया था और वहीं, भारत में आख़िरी चीते को 1947 में मारा गया था. भारत में चीतों के आख़िरी चीतों की कहानी छत्तीसगढ़ से जुड़ी बतायी जाती है. जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ की कोरिया रिसायत (Korea Dynasty in India) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने देश के आख़िरी तीन चीतों का शिकार किया था. आख़िरी चीते का शिकार करने के बाद कोरिया के महाराजा ने तस्वीर भी खिंचवाई थी. 

BBC के अनुसार, कोरिया रिसायत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव (Maharaja Ramanuj Pratap Singh) ने साल 1947 में रियासत के रामगढ़ क्षेत्र में 3 चीतों का शिकार किया था. बीबीसी की इस रिपोर्ट में वन्यजीव विशेषज्ञ मीतू गुप्ता कहती हैं कि, “Bombay Natural History Society के दस्तावेज़ों में इसका ज़िक्र मिलता है.” बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी को ये जानकारी तस्वीरों सहित महाराजा (Who was Maharaj Ramanuj Pratap Singh in Hindi) के सचीव ने दी थी. आज भी राजमहल के कमरे में मारे गए चीतों को सिर टंगे दिखाई देंगे. 

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साल 1909 में अपने पिता शिवमंगल सिंहदेव के निधन के बाद रामानुज प्रताप सिंहदेव गद्दी पर बैठे थे. वहीं, कहा जाता है कि महाराजा रामानुज शिकार के शौक़ीन थे और रिसायत का एक बड़ा क्षेत्र जंगल से घिरा था, जहां कई तरह के जंगली जानवर मौजूद थे. 

क्यों मारे गये थे चीते?

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Image Source: BBC

Who Hunted Last Cheetah in India in Hindi: इन चीतों का मारने के पीछे की ख़ास वजह बतायी जाती है. इस बात पर महाराजा रामानुज के बेटे रामचंद्र सिंहदेव का कहना है कि वो कुछ गांव वाले उनके पिता के पास पहुंचे थे, क्योंकि जंगली जानवर गांव वालों को शिकार बना रहे थे. गांव वाले भयभीत थे. इसके बाद महाराजा रामानुज अपनी बंदूक लेकर जंगल पहुंचे थे और चीतों का शिकार किया था. 

History of Cheetah in India in Hindi: बेटे रामचंद्र सिंहदेव कहते हैं कि उनके पिता को ये नहीं पता था कि कोई चीता अपने परिवार से भटकर वहां आ गया है. वहीं वो आगे कहते हैं कि, “जिस इलाक़े में चीते मारे गए, वहां चीते थे ही नहीं. चीते तो वहां रहते हैं जहां उन्हें भागने के लिए जगह मिले और ये घना जंगल उनके लिए अनुकूल नहीं था. चीते ग़लती से मारे गये थे.” 

पहले भी लाए गये थे अफ़्रिका से चीते 

Who Hunted Last Cheetah in India in Hindi: ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि अफ़्रिका से चीते मंगवाए हैं. इससे पहले भी अफ़्रिका से चीते मंगवाए जा चुके हैं. The end of a trail The Cheetah in India किताब के अनुसार, बादशाह अकबर के पास एक हज़ार चीते थे और इनका इस्तेमाल हिरण और चिंकारा का शिकार करने के लिये किया जाता था. 

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वहीं, The Tuzuk-e-Jahangiri (जहांगीर की यादें) में भी इस बात का ज़िक्र मिलता है कि अकबर के पास क़रीब 1 हज़ार पालतू चीते थे. इसमें जहांगीर कहते हैं कि उनके पिता ने अपने जीवनकाल में 9 हज़ार चीतों को पाला था. इसलिए इस दौरा को (15वीं-16वीं) को भारत में चीतों का सुनहरा दौर भी कहा जाता है. 

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वहीं, छोटी-छोटी रियासतों (History of Cheetah in India in Hindi) में भी ख़ास शिकार के लिए चीतों का पालने का चलन था. लेकिन, नर और मादा चीतों को बीच संपर्क न बनने के कारण इनकी संख्या कम होती चली गई. वहीं, हालत ये हो गई कि 1918 से 1945 के बीच भारत के अलग-अलग राजाओं ने अफ़्रीका से क़रीब 200 चीते मंगवाए. लेकिन, समय के साथ इनकी संख्या घटती चली गई.