अगर कभी आपको ओल्ड ब्रिटिश राज की राजधानी कोलकाता जैसे हलचल भरे शहर के बीच विक्टोरियन युग़ के सार का अनुभव करने का मन करे, तो मुग़ल स्मारक विक्टोरिया मेमोरियल हॉल (Victoria Memorial Hall) घूमने के लिए इसे बुकमार्क ज़रूर कर लें. ये विशाल, चमचमाती सफ़ेद इमारत ‘क्वीन्स वे’ पर स्थित है और इसे भारत और यूनाइटेड किंगडम की महारानी विक्टोरिया के जीवन का जश्न मनाने के लिए बनाया गया था. 

22 जनवरी 1901 को रानी विक्टोरिया के निधन के बाद लॉर्ड कर्ज़न ने उनकी स्मृति में इस विशाल और भव्य इमारत के निर्माण की कल्पना की, जहां सभी को समृद्ध अतीत की एक झलक मिल सकती है. 4 जनवरी 1906 को ‘प्रिंस ऑफ़ वेल्स’ जॉर्ज पंचम द्वारा इसकी आधारशिला रखी गई. जिसके बाद साल 1921 में इस स्मारक को जनता के लिए खोल दिया गया था. आज इस ऐतिहासिक धरोहर का दीदार करने दुनिया भर से तमाम पर्यटक आते हैं.

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कोलकाता में स्थित ये आलीशान स्मारक अपने जीवन का शतक लगा चुकी है. साथ ही सुंदरता और भव्यता का प्रतीक विक्टोरिया मेमोरियल हॉल इतिहास में हुए अनगिनत क्रांतिकारी आंदोलनों का गवाह है. क्या आप जानते हैं कि ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ के दौरान तो इस इमारत को सफ़ेद से काला कर दिया गया था? आइए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं. 

विक्टोरिया मेमोरियल हॉल

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कैसे कलकत्ता ख़ुद ब ख़ुद बन गया ‘द्वित्तीय विश्व युद्ध’ का हिस्सा? 

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भले ही भारत सीधा युद्ध में भाग नहीं ले रहा था. लेकिन कलकत्ता (मौजूदा समय में कोलकाता) एक महत्वपूर्ण ब्रिटिश समझौता और अमेरिकी आधार था. साल 1942-43 के बीच जापानी आर्मी एयरफ़ोर्स ने कलकत्ता पर आक्रमण किया. इसके बाद दिसंबर 1942 में कलकत्ता पहली बार बमबारी का शिकार हुआ. इस दौरान खिदिरपुर बंदरगाह बम विस्फ़ोटों में सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ, क्योंकि ये ब्रिटिश सहयोगियों को लदान की आपूर्ति करने वाला प्राइमरी शिपयार्ड था.

जापानी लड़ाकू विमानों द्वारा हवाई हमले ज़्यादातर रात में किए जाते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटिश रक्षा प्रणाली दिन के उजाले में ज़्यादा ताकतवर थी. अगले कुछ हफ़्तों तक कलकत्ता की रातों का आसमान एक भयंकर युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया था. 

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इस तरह कलकत्ता हुआ ‘ब्लैक आउट’

एक तरफ़ जापानी सेना शहर की वास्तुकला को धड़ल्ले से तबाही की ओर ले जा रही थी. वहीं दूसरी तरफ़ ब्रिटिश सेना इससे निपटने का तरीका ढूंढने में सारा दिमाग़ खपा दे रही थी. आख़िरकार काफ़ी बुद्धि दौड़ाने के बाद सेनाओं को इस बात का अहसास हुआ कि थोड़ी चालबाज़ी से इस मुसीबत को टाला जा सकता है. ख़ासकर अगर आंखों का धोखा पैदा कर दिया जाए, तो काम और आसान हो सकता है. 

नतीज़तन कलकत्ता की सभी गलियों, घरों, दुकानों को सूर्यास्त के साथ ब्लैक आउट कर दिया जाता था. इस कदम से जापानी आर्मी को अपना टारगेट हिट करने में दिक्कत आने लगी. कलकत्ता के सभी वासी रात के दौरान अपनी खिड़कियों, कार की हेडलाइटों को ब्लैक कलर में रंग देते थे. स्ट्रीट लाइट्स को काले कपड़ों से कवर कर दिया जाता था. यहां तक आइकॉनिक हावड़ा ब्रिज़ का उद्घाटन भी उस दौरान चोरी-छुपे कर लिया गया था. 

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विक्टोरिया मेमोरियल हॉल भी हुआ ब्लैक

अब सवाल ये था कि सफ़ेद मकराना संगमरमर से बने भव्य विक्टोरिया मेमोरियल हॉल को चमकदार चांदनी के पीछे कोई कैसे छिपा सकता है? काफ़ी सोच-विचार के बाद ब्रिटिश सरकार ने साल 1943 में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया. वास्तुकला के इस चमत्कार को भी जापानी सेना के आक्रमण से छुपाने के लिए सफ़ेद से काले रंग में रंग दिया गया

ब्रिटिश सरकार अपने इस खुफ़िया प्लान को जापानियों तक लीक नहीं करना चाहती थी. एहतियात के तौर पर, उन्होंने शहर के स्थलों के आस-पास किसी भी तरह की फ़ोटोग्राफ़ी को सख्ती से प्रतिबंधित कर दिया. यही वजह है कि विक्टोरिया मेमोरियल हॉल को ब्लैक करने की घटना की एक भी तस्वीर इतिहास के पन्नों में मौजूद नहीं है. 

मुग़ल सम्राट शाहजहां का काला ताज महल बनाने का एक सपना था, जो कभी साकार नहीं हो पाया. लेकिन कलकत्ता का विक्टोरिया मेमोरियल जो शाही मुग़ल वास्तुकला को मैच करने के लिए बनाया गया था, उसका एक ब्लैक वर्ज़न था तो ज़रूर, लेकिन लोग चाह कर भी उसका दीदार नहीं कर पाए.

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इसका इतिहास तो वाकई काफ़ी दिलचस्प है.