दुनिया में जिस तरह से इंसानों की ज़िन्दगी में समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, लोग परेशानी में हताश होकर आसमान की तरफ़ ज़रुर देखते हुए नज़र आ जाते हैं. पर कभी किसी ने अपनी परेशानी से आगे बढ़ कर ये सोचा है कि आखिर ये आसमान कैसे बना होगा? ये सितारे कैसे बने होंगे या फिर हमारी आकाशगंगा कैसे बनी होगी? आज इन्हीं सवालों का ज़वाब हम आपके लिए लेकर आये हैं.
इस ब्रह्मांड में अनेक गैलेक्सीज़ है, इनमें हमारी आकाशगंगा भी एक है. इसका निर्माण कैसे हुआ, यह जानने के लिए खगोलविज्ञानी सालों से अनेक रिसर्च करते आ रहे हैं. अब जाकर उन्हें प्रारम्भिक तौर पर दिए गये अनेक उत्पति सिद्धान्तों का पुष्टिकरण प्राप्त हुआ है.
खगोलविज्ञानियों की एक टीम ने मिल कर एक 3D मॉडल के ज़रिये इसे आसानी से प्रदर्शित भी करके दिखाया है. इस टीम ने बताया कि लगभग 13.5 बिलियन साल पहले हमारी आकाशगंगा का बनना शुरू हुआ.
साथ में उन्होंने इस प्रभामंडल में 1,30,000 से ज़्यादा तारों का विश्लेषण किया. इसमें यह पता लगा कि सबसे पहले बना तारा आकाशगंगा के सेंटर में रहता है, उसके बाद बनने वाले तारे उसके चारों तरफ़ आवरण में आते जाते हैं. इस मॉडल में उन्होंने अलग-अलग रंगों के माध्यम से तारों का वर्गीकरण उनकी आयु के आधार पर किया है.
सबसे पहला तारा मौलिक तत्वों से मिल कर बना था, जैसे कि हाइड्रोजन और हीलियम. उसके बाद उसमें मौजूद उसका द्रव्यमान और उसकी गैसेज़ यह तय करती कि उसका व्यवहार किस तरह का होगा. इनके समूह मिल कर बादल जैसी संरचनाओं का निर्माण करते हैं. छोटे क्लाउड्स एक या दो पीढ़ी तक नये तारों का निर्माण करते हैं. उसके बाद वो बड़े क्लाउड्स में मिल जाते हैं.
बड़े क्लाउड्स आकाशगंगा के केंद्र में समा जाने से पहले कई पीढ़ियों तक तारों का निर्माण करते रहते हैं. सभी छोटे और बड़े क्लाउड्स आकाशगंगा से ग्रेविटी के द्वारा बंधे होते हैं. केंद्र में सबसे ज़्यादा ग्रेविटी मौजूद होती है.
यह 3D मॉडल ‘Notre Dame University’ के रिसर्चर्स ने बनाया है. उनकी यह रिसर्च Nature Physics Journal में भी प्रकाशित हो चुकी है. नीले रंग के तारे के केंद्र में हीलियम की मात्रा ज़्यादा होती है, जो कि हमेशा जलती रहती है. उसके बाद समय के साथ उनके रंग में परिवर्तन आते रहते हैं. तारों का रंग सीधे तौर पर उनकी आयु से जुड़ा होता है.
सबसे पुराने तारे गैलेक्सीज़ के सेंटर में होते हैं और सबसे नये तारे सबसे बाहरी हिस्से में होते हैं. जो गैलेक्सी जितनी पुरानी होती है, उसका आकार उतना ही बड़ा होता है.
इस मॉडल को बनाने के लिए ‘Colour Dating Method’ का यूज़ किया गया है. इस मॉडल ने आज तक अनसुलझे रहे अनेक सवालों का ज़वाब निकाल कर दिया है. इस पद्धति से आगे चल कर यह भी पता लगाया जा सकता है कि ब्रह्मांड की उत्पति सही मायनों में किस तरह से हुई थी.
यहां आप वीडियो में इस मॉडल को देख सकते हैं –
अगली बार जब भी हताशा में आकर आसमान को निहारो तो यह याद ज़रुर करना कि यहां से करोड़ों किलोमीटर दूर बहुत कुछ है, जो हर पल टूट भी रहा है और बन भी रहा है. यह ब्रह्मांड अपने अंदर अनेक रहस्यों को समाये हुए है. करोड़ों साल लग जाते हैं, धूल का एक कण बनने में. इस समय भी इस गैलेक्सी में बहुत कुछ बन और बिगड़ रहा होगा. हम पता लगा कर आते हैं, तब तक आप इस जानकारी को शेयर कीजिए.