Facts About Proclaimed Offender: पुलिस कार्रवाई में ऐसे कई लॉ एंड ऑर्डर होते हैं जिन्हें आम लोगों को समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है. इन्हीं लॉ एंड ऑर्डर के तहत किसी भी आरोपी को सज़ा सुनाई जाती है या उसे बरी किया जाता है. इसके अलावा, कई बार अपराधियों को उनके लापरवाह और ग़ैर-ज़िम्मेदार रवैय्ये के चलते ‘भगोड़ा’ या ‘तड़ीपार’ घोषित किया जाता है.

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हाल ही में, 23 अप्रैल को पंजाब पुलिस ने मोगा के रोडेवाल गुरुद्वारे के बाहर सुबह पौने सात बजे अपराधी अमृतपाल सिंह को 37 दिनों के बाद गिरफ़्तार किया गया, जिसके ऊपर देश के ख़िलाफ़ साजिश, अवैध हथियार जुटाने सहित कई आरोप लगाए गए हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत भी उस पर कार्रवाई की गई है. गिरफ़्तारी के बाद से ही अमृतपाल सिंह को भगोड़ा कहा जा रहा है. आख़िर किसी भी अपराधी को भगोड़ा (Facts About Proclaimed Offender) कब कहा जाता है, साथ ही हमारा क़ानून क्या कहता है आइए जानते हैं.

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किसी अपराधी को भगोड़ा घोषित कैसे किया जाता है. सबसे पहले उसके ख़िलाफ़ कोर्ट ग़ैर ज़मानती वॉरंट जारी करता है. इसके बाद, कई बार नोटिस और समन मिलने के बाद भी जब वो कोर्ट में या पुलिस के सामने पेशी नहीं देता है. legalservicesindia के अनुसार, वॉरंट जारी होने के बाद भी देश छोड़कर भागने की कोशिश करता है ऐसे में CrPC की धारा 82 के तहत आरोपी को भगोड़ा घोषित किया जाता है. इसे क़ानूनी भाषा में ‘फ़रार व्यक्ति की उद्घोषणा’ कहकर पुकारा जाता है. इसे ही हम आम भाषा में ‘भगोड़ा’ कहते हैं.

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एक बार जब न्यायालय संतुष्ट हो जाता है कि कोई भी व्यक्ति जिसके ख़िलाफ़ वॉरंट जारी किया गया है, फ़रार हो गया है या ख़ुद को छुपा रहा है ताकि इस तरह के वॉरंट से बच सके, तो अदालत ऐसे व्यक्ति के ख़िलाफ़ उद्घोषणा जारी कर देती है. CrPC की धारा 82(4) के अनुसार, जो व्यक्ति 302, 304, 364, 367, 382, ​​392, 393, 394, 395 के तहत दंडनीय अपराधी है. सात ही, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के 396, 397, 398, 399, 400, 402, 436, 449, 459 या 460 के तहत भी अपराधी है तो ऐसा व्यक्ति अगर उद्घोषणा द्वारा निर्दिष्ट स्थान और समय पर उपस्थित होने में विफल रहता है, तो न्यायालय जो चाहे वो फ़ैसला लेकर उसे ‘उद्घोषित अपराधी’ घोषित कर सकता है.

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दरअसल, इस कैटेगरी में उन आरोपियों को रखा जाता है जो पैसों की हेरा-फेरी या धोखाधड़ी करते हैं. जैसे, लेन-देन में बेईमानी करना, मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स की चोरी करना, नकली सरकारी स्टाम्प या करंसी बनाना, आदि. इसके अलावा, जब किसी अपराधी को भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है तो CrPC की धारा 83 के तहत कोर्ट कभी भी उसकी आय और संपत्ति की कुर्की करने के आदेश दे सकता है.

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कुर्की करने के भी नियम होते हैं. कोर्ट एकदम से कुर्की नहीं करती है उससे पहले आरोपी को पेश होने का मौक़ा देती है अगर आरोपी ख़ुद न आकर अपने वक़ील को भेजता है और वक़ील हफ़्ते भर के अंदर उसकी पेशी की तारीख़ को सुनिश्चित करता है तो कोर्ट के द्वारा कुर्की को रोक दिया जाता है.

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आपको बता दें, भगोड़ा घोषित होने वाला व्यक्ति इस टैग को हटवाने के लिए 30 दिन के अंदर हाई कोर्ट में अपील कर सकता है. विशेष अदालत के फ़ैसले के 30 दिन से कुछ दिन भी ऊपर होने पर उसे देरी की वजह बतानी होगी अगर वजह जायज़ होगी तो उसकी अपील पर सुनवाई की जाएगी.